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टीबी और वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति (End TB and global health diplomacy)

  • 10 Nov 2018
  • 11 min read

संदर्भ

“एक राष्ट्र के लिये स्वयं की देखभाल करना पर्याप्त था लेकिन आज यह पर्याप्त नहीं है।“ यह कथन विशेष रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र में बिल्कुल सच है। स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की सीमा राष्ट्रीय सीमाओं से आगे बढ़ गई हैं और इसके लिये वैश्विक शक्तियों द्वारा कार्रवाई की आवश्यकता होती है, जो लोगों के स्वास्थ्य को निर्धारित करती हैं। स्वास्थ्य मुद्दों के व्यापक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों ने कूटनीति की दुनिया में स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक राजनयिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की वृद्धि की है। आज की अंतःस्थापित दुनिया में एक राष्ट्र का स्वास्थ्य अब एक आंतरिक मामला नहीं है, बल्कि हाल ही में स्वास्थ्य को कूटनीति और विदेश नीति में अपना स्थान कायम कर लिया है। ‘वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति’ शब्द का उद्देश्य बहु-स्तरीय और बहु-अभिनेता वार्ता प्रक्रियाओं को कैप्चर करना है जो स्वास्थ्य हेतु वैश्विक नीति को आकार देते हैं।

भारत और स्वास्थ्य कूटनीति

  • स्वास्थ्य विदेश नीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों में से एक है क्योंकि यह तीन वैश्विक एजेंडों का अभिन्न अंग बन गया है, जो इस प्रकार है :
  • सुरक्षा - रोगजनकों के जानबूझकर फैलाव और मानवीय संघर्षों, प्राकृतिक आपदाओं तथा आपात स्थिति में वृद्धि के डर से प्रेरित।
  • आर्थिक  - खराब स्वास्थ्य न केवल वैश्विक बाज़ार के विकास पर आर्थिक प्रभाव से संबंधित है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधित वस्तुओं और सेवाओं में बढ़ते वैश्विक बाज़ार के लाभ से भी संबंधित है।
  • सामाजिक न्याय - संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों का समर्थन करते हुए सामाजिक मूल्य और मानव अधिकार के रूप में स्वास्थ्य को मज़बूत करना, दवाइयों और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के लिये वकालत और उच्च आय वाले देशों को वैश्विक स्वास्थ्य पहलों की विस्तृत श्रृंखला में निवेश करने के लिये आकर्षित करना।
  • कूटनीति का हालिया क्षेत्र होने के नाते भारतीय राजनयिकों और विदेश नीति के प्रैक्टिशनरों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की राजनयिक पहल हेतु समझ विकसित करना शुरू कर दिया है।
  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभागों के कर्मचारियों को राजनयिकों से जोड़ा है। उनकी आम चुनौती एक जटिल प्रणाली को नेविगेट करना है जो घरेलू और विदेशी नीति की शक्ति रेखाओं को जोड़ते हैं और लगातार प्रभावित करते हैं तथा जहाँ बीमारी, सुरक्षा (खतरों या अन्य मुद्दों के फैलने के मामले में) के लिये तत्काल निर्णय और कुशल वार्ता की आवश्यकता होती है।
  • भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य सहायता क्षेत्र में एक अभिन्न भूमिका निभाई है, जिससे यह भारत के विदेशी सहायता कार्यक्रम का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है और इसका महत्त्व हाल ही के वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है।
  • भारतीय नीति निर्माताओं का मानना ​​है कि देश के स्वास्थ्य सहायता कार्यक्रम का दायरा स्वास्थ्य सहायता पहलों में देश के निजी स्वास्थ्य क्षेत्र और नागरिक समाज के अवसरों की खोज करने हेतु जारी रहेगा।
  • बुनियादी सहायता, मानव संसाधन, शिक्षा और क्षमता निर्माण के माध्यम से स्वास्थ्य सहायता का पता लगाया जा सकता है। स्वास्थ्य सहायता आम तौर पर द्विपक्षीय स्वास्थ्य सहायता, स्वास्थ्य आईटी और फार्मा इत्यादि के रूप में देखी जा सकती है। वर्ष 2009 से भारत ने दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के लगभग 20 देशों के लिये द्विपक्षीय स्वास्थ्य परियोजनाओं में कम-से-कम 100 मिलियन अमरीकी डॉलर निवेश किए हैं।
  • उल्लेखनीय है कि इस साल पहली बार भारतीय चिकित्सक -उप - टीबी कार्यकर्त्ता डब्ल्यूएचओ की शीर्ष प्रबंधन टीम में शामिल हुआ है।
  • टीबी को खत्म करना भारत की छवि निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण कारक साबित होगा और वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति नेटवर्क को भी प्रभावित करेगा।
  • भारत सरकार ने इस साल दो घोषणाओं के साथ नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा में सुधार करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी प्रदर्शन किया है, जिसमें सबसे पहला विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य से 10 साल पहले ही वर्ष 2025 तक तपेदिक (टीबी) को समाप्त करने हेतु संकल्प तथा दूसरा, प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (PMJE) के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने की दिशा में एक कदम जो दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा योजना के रूप में प्रचारित है।

मुख्य मुद्दा

  • भारत को वर्ष 2025 तक टीबी से मुक्ति के लिये सालाना 15-20% की दर से टीबी के संचार में कमी लानी होगी। वर्तमान में, यह एक कठिन काम प्रतीत होता है।
  • हालाँकि, टीबी के परीक्षण और उपचार सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क उपलब्ध है और रोगी पूरी तरह ठीक होने तक प्रति माह ₹ 500 के पोषण प्रोत्साहन का दावा कर सकते हैं किंतु भारत में टीबी की वर्तमान गिरावट दर 1-2% है, जो चिंताजनक है।
  • टीबी के शुरुआती लक्षण गैर विशिष्ट हैं और अधिक सामान्य रूप से होने वाली स्थितियों के समान हैं जैसे कि मौसमी फ्लू के परिणामस्वरूप माध्यमिक संक्रमण।
  • निजी चिकित्सक टीबी के परीक्षणों के आदेश देने से पहले एंटीबायोटिक उपचार के माध्यम से अन्य बीमारियों का इलाज़ करने से मनाही करते हैं। इस तरह विलंबित टीबी निदान टीबी के फैलने का सबसे बड़ा जोखिम कारक है।
  • अनुमानित मरीजों में से आधे या तो टीबी से ग्रसित होने से अनजान है या टीबी ‘निक्षय’ के लिये सरकार की ई-रजिस्ट्री में उनके नाम दर्ज नहीं है। 

  • उल्लेखनीय है कि ‘निक्षय’ टीबी रोगियों की निगरानी के लिये एक वेब आधारित समाधान पोर्टल है।
  • संक्रमित मरीज समुदाय में दूसरों लोगों संक्रमित करते हैं। जब तक वे ठीक नहीं हो जाते हैं तब तक टीबी का प्रसार नहीं रोका जा सकता है। गैर-विशिष्ट एंटीबायोटिक पाठ्यक्रम, जोखिम को कई गुना बढ़ाते हैं, जिससे संक्रमण एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बन जाता है।
  • तमाम नकद प्रोत्साहनों के बावजूद, निजी क्षेत्र की व्यापक सुविधाएँ टीबी रोगियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की अपेक्षा आकर्षित करती हैं। स्थायी रूप से मरीजों द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र का लाभ न लेने से निजी क्षेत्र का विस्तार हुआ है और उनके राजस्व में भी वृद्धि हुई है।

आगे की राह

  • सरकार के लंबे समय से संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) ने अब चयनित जनसंख्या समूहों के लिये एक सक्रिय केस आधारित खोज अभियान शुरू किया है। यह उन लोगों के लिये है जो सामाजिक, चिकित्सकीय या व्यावसायिक रूप से दूसरों की तुलना में अधिक कमज़ोर हैं यानी गाँव, कस्बों, जेलों तथा शरणार्थी  या एड्स रोगियों को लक्षित करना।
  • इस स्क्रीनिंग के पहले तीन चरणों में 12,000 से अधिक नए मरीजों की पहचान की गई और शेष आबादी में भी टीबी के मामलों की विधिवत जाँच और इलाज किया जाएगा।
  • निजी क्षेत्रों के लगभग 50-55% डॉक्टर अनुभवी हैं, किंतु उनके पास कोई डिग्री नहीं है। दरअसल, यह वह स्थान है जहाँ सारी रणनीतियाँ विफल हो जाती हैं इसलिये नकली चिकित्सकों को चिकित्सा प्रथाओं से बेदखल किया जाना चाहिये।
  • उल्लेखनीय है कि मुंबई और पटना में सार्वजनिक-निजी साझेदारी के नए मॉडल का परीक्षण किया जा रहा है, जिसमें निजी चिकित्सकों को रोगियों का प्रबंधन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, बशर्ते वे ‘ई-निक्षय’ की अधिसूचना को पूरा करें और देखभाल उपचार प्रोटोकॉल के मानकों का पालन करें।
  • इसके अतिरिक्त बाल्यावस्था में होने वाले टीबी को समाप्त करने की दिशा में रोडमैप तैयार किया जाना चाहिये और यह प्राथमिक फोकस का केंद्र बिंदु भी होना चाहिये।
  • हालाँकि, टीबी के लिये अतिरिक्त बजट पर विचार करना सरकार के लिये एक असहज चुनौती पैदा कर सकती है, लेकिन यह वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति में नेतृत्व प्राप्त करने के लिये निर्विवाद रूप से उचित मूल्य है।
  • नई प्रदाता-केंद्रित रणनीतियों के अलावा, यह समय की मांग है कि समाज को इस कलंक से मुक्ति पाए और टीबी परीक्षण पर जोर दिया जाए, अगर किसी की खांसी सप्ताह भर से अधिक समय के लिये बनी रहती है।
  • गौरतलब है कि पोलियो उन्मूलन भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम था इसी प्रकार टीबी उन्मूलन करने वाला पहला राष्ट्र बनना भी भारत के लिये एक विशाल छलांग होगा।
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