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नए नोटों को जारी करने के संबंध में आरबीआई की रिपोर्ट पर विवाद

  • 12 Jan 2017
  • 7 min read

पृष्ठभूमि

  • विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद से भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता और भूमिका पर सवाल उठते रहें हैं| अनेक लोगों का मानना है कि रिजर्व बैंक ने अपनी स्वयात्तता को भुला दिया है और यह सरकार के हाथों की कठपुतली बन गया है| कई लोग तो यह भी कह रहे हैं कि विमुद्रीकरण के दौरान आरबीआई ने अपनी भूमिका का सही ठंग से अनुपालन नहीं किया है| 
  • इन सभी बातों के बीच वित्त मंत्रालय को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, “विमुद्रीकरण और नए नोटों को जारी करने का निर्णय लेने के लिये 8 नवम्बर, 2016 को आरबीआई के केन्द्रीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई थी| विदित हो कि इसी दिन विमुद्रीकरण और नए नोटों को जारी करने की घोषणा की गई थी| 
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का दावा करने वाले सरकार के इस निर्णय के पीछे की तैयारियों एवं कारणों को जानना दिलचस्प होगा| 


नए नोट ज़ारी करने की प्रक्रिया का आरम्भ

  • मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से आरबीआई ने वर्ष 2014 में सरकार को 5000 और 10,000 के नोटों की आवश्यकता के बारे में अवगत कराया था| सरकार आरबीआई के इस सुझाव पर विचार करती रही और मई 2016 में सरकार ने आरबीआई से अधिकारिक रूप से नए नोट जारी करने के लिये कहा|
  • मई 2016 में ही आरबीआई ने नए नोटों के आकार, स्वरूप, रंग और थीम के बारे में सरकार को अपनी अनुशंसा दी थी, जिस पर सरकार ने अपनी अंतिम स्वीकृति जून 2016 में दी और साथ ही छापेखानों को नए नोटों की छपाई के लिये तैयार रहने को कह दिया गया| गौरतलब है कि इस समय तक सरकार और आरबीआई दोनों नए नोटों को प्रचलन में लाने पर ही विचार कर रहे थे|

नोटबंदी और नए नोट जारी करने के फैसले कब और कैसे हुए एक-साथ?

  • 7 नवम्बर, 2016 को सरकार ने आरबीआई को सुझाव दिया कि “कालेधन में नकदी की बड़ी भूमिका होती है, साथ ही, जाली नोटों की घटनाओं में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी में नकली करेंसी का उपयोग हो रहा है; इसलिये सरकार इन नोटों को बंद करने की सिफारिश करती है”| साथ ही, सरकार की ओर से कहा गया कि इन मामलों को पर त्‍वरित काम किया जाए|
  • सरकार ने आरबीआई को सलाह दी कि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 की धारा 26 (2)  के प्रावधानों के अनुसार आरबीआई अपने केंद्रीय बोर्ड के निदेशकों को सरकार के विमुद्रीकरण से संबंधित सुझावों के बारे में बाताए| सरकार की इस सलाह पर गौर करने के लिये अगले ही दिन आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें विचार-विमर्श करने के बाद 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने और उनकी कानूनी वैधता खत्‍म करने संबंधी सरकार की सलाह पर सहमति की मुहर लगा दी गई|

विवाद क्या है?

  • सरकार की अनुशंसा पर आरबीआई के केन्द्रीय बोर्ड की मुहर लगते ही उसी दिन शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन दिया और नोटबंदी का ऐलान कर दिया| हालाँकि, आठ दिन बाद राज्‍य सभा में नोटबंदी पर बहस के दौरान केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि नोटबंदी का फैसला आरबीआई के बोर्ड ने लिया था और फिर इसे सरकार के पास भेजा था तथा सरकार ने इस निर्णय की सराहना करते हुए इसे मंजूरी दे दी| 

निष्कर्ष

  • वित्त मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के प्रस्ताव से जुड़ा औपचारिक पत्र बोर्ड के पास जब भेजा गया तभी इसकी बैठक हुई| हालाँकि, एक अन्य रिपोर्ट यह इंगित करती है कि रिजर्व बैंक, प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों की एक टीम ने इस घोषणा से करीब छह महीने पहले से ही नोटबंदी का खाका खींचना शुरू कर दिया था| 
  • इसकी कवायद इतने पहले शुरू होने का एक मतलब यह लगाया जा रहा है कि रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को भी इसकी जानकारी रही होगी और वे इस फैसले के पक्ष में नहीं थे| हो सकता है कि यही वजह रही हो कि उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं मिला| इस कयास को रघुराम राजन के 2014 के एक बयान से बल मिलता दिखता है जिसमें उनका कहना था कि विमुद्रीकरण की बजाय कर सुधारों पर ध्यान दिया जाना चाहिये|
  • ध्यातव्य है कि आरबीआई अधिनियम, 1934 सरकार को केंद्रीय बैंक को दिशा-निर्देश देने का अधिकार देता है| इसके अनुसार, आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की मंज़ूरी के बाद केंद्र सरकार किसी भी मूल्य के नोटों को अमान्य करार दे सकती है|
  • यह सच है कि काला धन, जाली करेंसी और आतंकवादी गतिविधियों में काले धन के इस्तेमाल पर विमुद्रीकरण से अंकुश तो लगेगा, लेकिन जिन परिस्थितियों में विमुद्रीकरण की घोषणा की गई है उससे आरबीआई की स्वायत्तता पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं|
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