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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रामीण भारत में डिजिटलीकरण

  • 21 Nov 2017
  • 8 min read

संदर्भ 

डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत में नीतिगत स्तर पर कई कदम उठाए गए हैं। इसके अंतर्गत बैंक-खातों को आधार से जोड़ना, विभिन्न आँकड़ों का डिजिटल रूप में संग्रहण, नोटबंदी के द्वारा डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना आदि कई प्रयास शामिल हैं। 

डिजिटलीकरण के लिये नीतिगत प्रयास करना इस मुद्दे का एक पहलू मात्र है। इन नीतिगत प्रयासों की सफलता इस बात में निहित है कि भारत के दूर-दराज़ के गाँवों में निवास करने वाली आबादी के बीच डिजिटल तकनीक की स्वीकार्यता कितनी है, क्योंकि इसके बिना एक डिजिटल रूप से विभाजित भारत का निर्माण होगा, जिसमें देश के डिजिटल पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर रहने वाले ग्रामीण समुदायों का सशक्तीकरण एक कठिन चुनौती बन जाएगा। 

कुछ विचारणीय आँकड़े

  • भारत में कुल मोबाइल फोन उपभोक्ताओं में से मात्र 33% ही स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं, जिसके 2019 तक बढ़कर 40% तक होने की संभावना है।
  • बिजली डिजिटल अर्थव्यवस्था का इंजन है। एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार भारत के लगभग 22% ग्रामीण घरों में आज भी बिजली नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की तो लगभग आधी ग्रामीण आबादी विद्युत सुविधाओं से वंचित है।
  • एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार 19% भारतीय आबादी आज भी औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था से दूर और वित्तीय रूप से बहिष्कृत है। ई-वालेट या अन्य डिजिटल पेमेंट के तरीकों से भुगतान के लिये व्यक्ति का एक क्रियाशील बैंक-खाता, इंटरनेट की सुविधा वाला मोबाइल फोन या क्रेडिट-डेबिट कार्ड होना चाहिये।  औपचारिक-वित्तीयन के दायरे से बाहर रहने वाली आबादी के लिये डिजिटलीकरण एक अप्रासंगिक व्यवहार है। 

ग्रामीण भारत में डिजिटलीकरण के समक्ष चुनौतियाँ

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  • डिजिटलीकरण के लिये आवश्यक अवसंरचना की अपर्याप्तता, जैसे-बिजली, ब्रॉडबैंड नेटवर्क कनेक्टिविटी, बैंकिंग सुविधाओं की कमी आदि।
  • भुगतान के लिये ग्रामीण आबादी नकद पर जितना विश्वास करती है और उसके इस्तेमाल में सहज होती है, उतनी सहज वह डिजिटल भुगतान तकनीकों के प्रति नहीं होती। इसके पीछे ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले भी एक कारण है।
  • भारत की ग्रामीण आबादी डिजिटल रूप से अशिक्षित है। डिजिटल व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा को पढ़ने, लिखने, समझने और संप्रेषित करने तथा नई तकनीकों के प्रति अज्ञानता डिजिटल ग्रामीण भारत की राह में बाधा है। 
  • देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मूल रूप से अनौपचारिक (असंगठित) क्षेत्र से संबंधित है, जिसके संचालन के लिये नकद का उपयोग डिजिटल भुगतान की बजाय ज़्यादा आसान होता है।
  • देश के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में खाप पंचायतों व अन्य धार्मिक समूहों द्वारा महिलाओं के मोबाइल फोन इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जाना आम बात है। GSMA-रिपोर्ट 2016 (शीर्षक- कनेक्टेड वूमन) के अनुसार भारत में 72% महिलाएँ मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करती हैं। स्टैटिस्टा नामक पोर्टल के अनुसार शहरी भारत में मोबाइल फोन का उपयोग करने वाली 38% महिलाएँ ही इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं, जबकि ग्रामीण भारत में यह आँकड़ा मात्र 12% है।  

संभावित उपाय

  • डिजिटलीकरण के लिये आवश्यक अवसंरचना में निवेश किया जाना चाहिये। क्षेत्रीय भाषा से संचालित होने वाले तथा कम लागत में विशेष रूप से तैयार किये गए मोबाइल फोन ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल-व्यवहार को प्रेरित कर सकते हैं। 
  • सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक अबाधित बिजली-आपूर्ति, सस्ती इंटरनेट-कनेक्टिविटी, ऑनलाइन सुविधा प्रदान करने वाली बैंकिंग सेवाओं की व्यवस्था करने से ग्रामीण  भारत न केवल डिजिटल रूप से साक्षर होगा, बल्कि उसका सामाजिक-आर्थिक उत्थान भी संभव हो सकेगा।
  • संस्थागत ऋण की व्यवस्था, JAM-ट्रिनिटी के उचित क्रियान्वयन से तथा भू-आलेखों के डिजिटलीकरण आदि के द्वारा ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति को अनौपचारिक से औपचारिक व्यवस्था में परिवर्तित करने में सहायता मिल सकती है। 
  • डिजिटल भुगतान आदि के समय होने वाली ऑनलाइन धोखाधड़ी से निपटने के लिये सरकार को साइबर सुरक्षा मज़बूत करनी चाहिये। एक सुरक्षित साइबर-स्पेस ग्रामीणों को डिजिटल व्यवहार के लिये प्रेरित करेगा।
  • व्यापारिक गतिविधियों के दौरान डिजिटल भुगतान के लिये दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों आदि पर POS- मशीनों (पॉइंट ऑफ सेल) आदि की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिये। 
  • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) के तहत 6 करोड़ ग्रामीण परिवारों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। बेहतर परिणाम की प्राप्ति के लिये इस योजना में और अधिक लक्षित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। बेतरतीब तरीके से 6 करोड़ ग्रामीण परिवारों की बजाय ग्रामीण भारत में काम करने वाले 8.5 लाख स्वास्थ्य कर्मियों और तक़रीबन 18 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को डिजिटल साक्षर बनाकर लगभग पूरी ग्रामीण आबादी तक डिजिटलीकरण की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।

निष्कर्ष

डिजिटलीकरण उत्पादन और वितरण प्रक्रिया में सुधार लाता है और आर्थिक-विकास को गुणात्मक रूप से प्रभावित करता है। लेकिन डिजिटल इंडिया जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य वाले अभियान तभी सफल होंगे, जब भारत के डिजिटल पिरामिड के सबसे निचले स्तर अर्थात् ग्रामीण भारत को डिजिटल रूप से साक्षर न बना दिया जाए। साथ ही ग्रामीण भारत का आर्थिक रूप से भी इतना सक्षम होना ज़रूरी है कि डिजिटलीकरण के लिये आवश्यक उपकरणों तक उसकी आसान पहुँच बनी रहे। 

ग्रामीण और शहरी भारत के बीच के डिजिटल डिवाइड को कम करके ही देश में शत-प्रतिशत डिजिटलीकरण को प्राप्त किया जा सकता है। 

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