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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल सेवा कर

  • 28 Jan 2021
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में डिजिटल सेवा कर के औचित्य , चुनौतियों व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

हाल ही में संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (United States Trade Representative- USTR) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में  कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा लागू किया गया 2% डिजिटल सेवा कर (Digital Services Tax) अमेरिकी व्यवसायों के साथ भेदभाव करता है और यह व्यवस्थित अंतर्राष्ट्रीय कर कानून के सिद्धांतों की अवहेलना करता है।   

डिजिटल सेवा कर का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि अनिवासी (Non-resident) डिजिटल सेवा प्रदाता भारतीय डिजिटल बाज़ार में अर्जित राजस्व का उचित कर अदा करें। भारत सरकार द्वारा लाया गया 2% डिजिटल सेवा कर ऐसे राजस्व पर लागू होगा जिसे अनिवासी डिजिटल सेवा प्रदाताओं द्वारा भारत में दी जाने वाली डिजिटल सेवाओं के माध्यम से अर्जित किया गया है, इन सेवाओं में डिजिटल प्लेटफाॅर्म सेवाएँ, डिजिटल कंटेंट की बिक्री और डेटा से संबंधित सेवाएँ आदि शामिल हैं।

वर्तमान में जब डिजिटल अर्थव्यवस्था अपने आप में अर्थव्यवस्था का एक अलग क्षेत्र बनती जा रही है, ऐसे में अमेरिका (जहाँ से अधिकांश डिजिटल सेवा प्रदाता आते हैं) जैसे विकसित देशों को यह समझना होगा कि कर संरक्षण या इससे जुड़े अन्य मुद्दों के लिये डिजिटल अर्थव्यवस्था को शेष अर्थव्यवस्था से अलग रख पाना कठिन होगा। 

नोट: 

  • भारत, वर्ष 2016 में समानता शुल्क (इक्विलाइज़ेशन लेवी)  लागू करने वाला विश्व का पहला देश बना, परंतु यह लेवी ऑनलाइन विज्ञापन सेवा तक ही सीमित थी। (आमतौर पर इसे "डिजिटल विज्ञापन कर" या "डीएटी" के रूप में जाना जाता है।) 
  • मार्च 2020 में  सरकार ने इसके दायरे को बढ़ाते हुए कई डिजिटल सेवाओं (जिसमें ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सेवाएँ भी हैं) को भी इसमें शामिल कर दिया। इसके तहत अब एक भारतीय उपयोगकर्त्ता द्वारा किसी अनिवासी कंपनी को किये गए भुगतान पर 2% लेवी लागू होगी। 

USTR द्वारा जताई गई चिंताएँ और प्रतिवाद: 

  • USTR द्वारा ‘यूएस ट्रेड एक्ट, 1974’ (US Trade Act, 1974) की धारा 301 के तहत एक जाँच की गई, गौरतलब है कि ‘यूएस ट्रेड एक्ट का यह प्रावधान USTR को  किसी भी अन्य देश की ऐसी कार्रवाई पर उचित प्रतिक्रिया देने के लिये अधिकृत करता है जो भेदभावपूर्ण है और अमेरिकी वाणिज्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
  • USTR की रिपोर्ट में डीएसटी को दो मामलों में भेदभावपूर्ण पाया गया: 
    • पहला, DST अमेरिकी व्यवसायों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है क्योंकि विशेष रूप से भारत के घरेलू डिजिटल व्यवसायों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
    • दूसरा, इस रिपोर्ट के अनुसार, DST गैर-डिजिटल सेवा प्रदाताओं द्वारा प्रदान की जा रही समान सेवाओं तक विस्तारित नहीं है। 
  • हालाँकि भारत ने स्पष्ट किया कि DST किसी भी तरह से एक व्यवसाय के परिचालन के आकार या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
    • हालाँकि यह प्रतीत होता है कि DST मुख्य रूप से अमेरिकी कंपनियों पर लागू है परंतु ऐसा इसलिये है क्योंकि भारतीय डिजिटल बाज़ार में अमेरिकी मूल की कंपनियों का ही प्रभुत्व रहा है। 
    • इसके अतिरिक्त भारत में स्थायी निवास वाली किसी भी कंपनी को इसके दायरे से बाहर इसलिये रखा गया है क्योंकि ऐसी कंपनियाँ पहले से ही भारत के स्थानीय कर कानूनों के अधीन हैं।

DST का औचित्य: 

  • अंतर्राष्ट्रीय कर कानून पर लंबित वार्ता: डिजिटल कंपनियों की आर्थिक गतिविधियों पर कर लागू करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय कर कानून में सुधार के एजेंडे को औपचारिक रूप से आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Economic Co-operation and Development- OECD) के आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण कार्यक्रम (Base Erosion and Profit Shifting- BEPS) के अंदर तैयार किया गया था।
    • हालाँकि इसकी शुरुआत के सात वर्ष बाद भी वर्तमान में इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है।
    • इस विलंब के कारण कई देशों को भय है कि उन्हें कर लागू करने के अपने अधिकार को खोना पड़ सकता है। अतः कई देशों ने या तो डिजिटल सेवा कर लागू कर दिया है या उन्होंने इससे जुड़े कानूनी बदलाव प्रस्तावित किये हैं।

नोट:

  • BEPS का तात्पर्य ऐसी कर परिवर्जन रणनीतियों से है जिनके तहत कंपनियाँ कर नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाकर अपने लाभ को किसी ऐसे स्थान या क्षेत्र में हस्तांतरित कर देती हैं जहाँ या तो टैक्स होता ही नहीं और यदि होता भी है तो बहुत कम अथवा नाम-मात्र होता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में बदलाव:
    • डिजिटल सेवा करों (DST) का प्रसार अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में हो रहे बदलाव की ओर संकेत करता है।
    • भारत जैसे देश जो डिजिटल निगमों के लिये एक बड़ा बाज़ार प्रदान करते हैं, इन निगमों की आय पर कर लागू करने हेतु व्यापक अधिकार की अपेक्षा करते हैं।
  • असमान डिजिटल शक्ति: डिजिटल अर्थव्यवस्था का कराधान अपेक्षाकृत जटिल और विवादास्पद मुद्दा बन गया, क्योंकि वर्तमान में डिजिटल सेवा प्रदाताओं तथा उपभोक्ताओं में भारी विषमता है।
    • इसके अलावा कर अधिकारों का पुनर्वितरण भारत और अमेरिका जैसे देशों के राजस्व पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है। यह एक सर्वसम्मति आधारित समाधान को प्राप्त करना कठिन बनाता है।
    • ऐसे में देशों का दावा है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की उतरोत्तर वृद्धि और पारंपरिक अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण को देखते हुए नए कर नियमों को अपनाना आवश्यक हो गया है। 

डीएसटी से जुड़ी चिंताएँ:  

  • डिजिटल उपभोक्ताओं के भार में वृद्धि: विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियों द्वारा DST का भार उपभोक्ताओं को स्थानांतरित किया जा सकता है। हालाँकि भारतीय ग्राहकों को इसे कर के रूप में भुगतान नहीं करना होगा, परंतु इसके कारण उन्हें सेवाओं के लिये अधिक धन खर्च करना पड़ सकता है। जो इस कर को लागू करने के उद्देश्य के विपरीत कंपनियों से उचित कर वसूल करने की बजाय ग्राहकों की चुनौतियों को बढ़ा सकता है।
  • प्रतिकारी टैरिफ: USTR की जाँच से प्रतिशोधी शुल्कों का खतरा पैदा हो सकता है, गौरतलब है कि ऐसा ही एक टैरिफ अमेरिका द्वारा फ्राँस पर लागू किया गया था।
    • इसके अतिरिक्त यह डिजिटल व्यापार युद्ध  जैसे परिदृश्य में बदल सकता है और भारत के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उद्योग को क्षति पहुँचा सकता है।
  • दोहरा कराधान:  सरकार के इस निर्णय को कई देशों द्वारा एकतरफा कदम बताया गया और इसकी कड़ी आलोचना की गई। उनके अनुसार यह कदम दोहरे कराधान को बढ़ावा दे सकता है।

आगे की राह: 

  • डिजिटल कराधान का नया मॉडल:  अंतर्राष्ट्रीय कर सुधार द्वारा जिस मुख्य समस्या को हल करने का प्रयास किया जा रहा है, वह यह है कि डिजिटल निगम पारंपरिक निगमों के विपरीत भौतिक रूप से उपस्थिति के बिना एक बाज़ार में कार्य कर सकते हैं।
    • इसलिये एक विशेष क्षेत्राधिकार में कर लागू करना डिजिटल अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ अच्छी तरह से समन्वय नहीं बनाए रख सकता।
    • इस चुनौती से निपटने के लिये देशों का सुझाव है कि कर लागू करने के एक नए आधार (जैसे-किसी देश में उपयोगकर्त्ताओं की संख्या) का निर्धारण कुछ सीमा तक इस चुनौती को संबोधित कर सकता है।
    • यूरोपीय संघ और भारत इस दृष्टिकोण को अपनाने के समर्थकों में शामिल थे।
  • बहुपक्षीय समझौता वार्ताओं को आगे बढ़ाना: वर्तमान में जब डिजिटल अर्थव्यवस्था और इसके प्रभावों का विकास जारी है, ऐसे में OECD के स्तर पर बहुपक्षीय समाधान में तेज़ी लाई जानी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त इसे कई मुद्दों पर राजनीतिक सहमति की भी आवश्यकता होगी, जिसमें मध्यस्थता के लिये एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया की स्थापना जैसे संवेदनशील मामले भी शामिल हैं।

निष्कर्ष:  

वर्तमान में जब विश्व के अधिकांश देश कर (TAX) पर संप्रभुता की बढ़ती मांग के लिये अपनी प्रतिक्रियाओं को समन्वित करने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में डिजिटल सेवा कर (DST), वैश्विक कर संधियों के बाहर एक अंतरिम विकल्प प्रदान करता है। यह वर्तमान कर सीमा के दायरे से बाहर की आय पर कर लागू करने के लाभ के साथ डिजिटल कर की चुनौती को हल करने हेतु वार्ताओं के लिये एक आधार प्रदान करता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘ डिजिटल सेवा कर’ से आप क्या समझते हैं?  डिजिटल अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास और इसके वैश्वीकरण से उत्पन्न चुनौतियों को हल करने में डिजिटल सेवा कर की भूमिका तथा इसकी प्रमुख समस्याओं पर चर्चा कीजिये।

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