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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समुदाय महिला आरक्षण को वीटो नहीं कर सकते हैं

  • 08 Feb 2017
  • 9 min read

पृष्ठभूमि

1 फरवरी को नागालैंड (Nagaland) में शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies) के लिये प्रस्तावित चुनावों को महिलाओं के लिये 33% आरक्षण के प्रावधान के सम्बन्ध में हुए विरोध के परिणामस्वरूप स्थगित कर दिया गया है|

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2012 के सितम्बर माह में नागालैंड राज्य की विधानसभा ने महिलाओं को प्रदान किये गए आरक्षण के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया था| 
  • हालाँकि, वर्ष 2016 के नवम्बर माह में राज्य की विधानसभा द्वारा वर्ष 2017 में होने वाले चुनावों की राह को आसान बनाने के लिये इस प्रस्ताव को वापस ले लिया गया था| 
  • नागालैंड की राज्य विधानसभा और टी.आर.ज़ीलेंग (T.R. Zeliang) की सरकार द्वारा यह निर्णय नागा मदर एसोसिएशन (Naga Mothers’ Association - NMA) द्वारा दाखिल की गई एक याचिका के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के एक अंतरिम आदेश के प्रतिउत्तर में लिया गया है|
  • ध्यातव्य है कि नागा मदर एसोसिएशन द्वारा अपनी याचिका के समर्थन में यह तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 243 (T) में निहित प्रावधान नागालैंड पर भी समान रूप से लागू होते हैं|
  • विदित हो कि संविधान के इस अनुच्छेद के तहत नगरपालिका निकायों में महिलाओं के लिये 33 % आरक्षण का प्रावधान निहित है|
  • उल्लेखनीय है कि उक्त विषय के संबंध में नागा होहो (Naga Hoho), नागा जनजाति के सर्वोच्च निकाय द्वारा नागा मदर एसोसिएशन के विपरीत दृष्टिकोण अपनाया गया, जिसमें यह कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 371 (अ) में निहित प्रावधानों में  नागालैंड की प्रथागत परम्पराओं (Customary Traditions) और कानूनों को संसद द्वारा पारित किये गए कानूनों की तुलना में अधिक प्राथमिकता प्रदान की गई है| 
  • इसके अतिरिक्त, इस पुरुष प्रधान जनजाति निकाय द्वारा इस बात पर भी विशेष ज़ोर दिया कि नागा समाज किसी भी प्रकार के सकारात्मक कार्य के लिये महिलाओं को समान प्रतिनिधित्व का अवसर प्रदान करता है|

वास्तविक स्थिति 

  • वास्तविकता में, नागालैंड के एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के 53 वर्षों बाद भी राज्य की विधानसभा में किसी महिला को निर्वाचित नहीं किया गया है|
  • जबकि राज्य में स्थित ग्रामीण विकास निकायों (Village development boards) में भी महिलाओं के लिए 25% पद आरक्षित है|
  • परन्तु अधिकांश जनजातीय निकायों (जो जनजाति संस्कृति और परम्परा के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं) पर पुरुषों का प्रभुत्व जारी है| संभवतः यही कारण है कि अधिकतर संपत्ति और विरासत अधिकार (Property and Inheritance Rights) महिलाओं के खिलाफ हैं|


चुनौतियाँ एवं विवाद

  • स्पष्ट है कि उपरोक्त तर्कों के आधार पर इसमें पहला मुद्दा स्थानीय रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं की शक्ति के विरुद्ध संविधान की रिट एवं सर्वोच्च न्यायालय का था|
  • यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि हालाँकि स्थानीय रीति-रिवाजों के संबंध में नागा होहो के अभिव्यक्ति के अधिकार को भी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है परन्तु, इस समय इस पहलू पर ध्यान केन्द्रित करने से वास्तविक मुद्दे के पिछड़ने की प्रबल संभावना है|
  • अत: जहाँ तक बात है लिंग आधारित अधिकारों की तो ऐसा कईं बार हुआ है जब भारतीय कानून तथा समुदाय आधारित परम्पराएँ एवं रीति-रिवाज़ एक दूसरे के विरुद्ध गए है| समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर चलने वाली बारहमासी बहस तथा हाल ही महिलाओं के अधिकारों के संबंध में उठे विवाद इसके जीवंत उदाहरण हैं|  
  • हालाँकि ये सभी मुद्दे नागालैंड के अद्वितीय इतिहास, जनजातीय स्थिति, संविधान में वर्णित भारत संघ के साथ एक विशेष संबंध तथा देश के इतिहास में अब तक के सबसे लम्बे विद्रोह के सामने बहुत अधिक गौण है|
  • इतना ही नहीं मात्र एक प्रगतिशील भारतीय कानून के द्वारा नागा राष्ट्रवाद (Naga nationalism) को कमज़ोर किया जा सकता है|
  • अब बात करते हैं आरक्षण की| हालाँकि महिला सशक्तीकरण का लक्ष्य स्वंय में एक बहुत बड़ा संकल्प है, तथापि क्या आरक्षण की नीति इसकी प्राप्ति हेतु एक सटीक एवं उचित है?  
  • ध्यातव्य है कि इस विषय में उस समय भी व्यापक चर्चा की गई थी जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (United Progressive Alliance) सरकार द्वारा विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण के संवैधानिक संशोधन को प्रस्तुत किया गया था|
  • भारत में हमेशा से ही विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी कम रही हैं| यही कारण है कि विधानसभाओं में महिला भागीदारी के मामले में भारत का विश्व के 193 अंतर-संसदीय संघों (Inter-Parliamentary Union) के क्रम में बहुत ही निम्न स्थान (145 वाँ) है| इन संघों की सूची में भारत पड़ोसी राष्ट्र पकिस्तान, बांग्लादेश तथा नेपाल से भी पीछे है| 
  • इसके अतिरिक्त विकास की मुख्यधारा में महिलाओं की साझेदारी को बढ़ावा प्रदान करने हेतु लाए गए मुख्य विकल्पों में एक अन्य विकल्प विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण देने के साथ-साथ राजनैतिक दलों द्वारा बाँटे जाने वाले चुनावी टिकटों में भी महिलाओं के लिये आरक्षण की व्यवस्था करना था|
  • परन्तु व्यावहारिक रूप से यह आसान नहीं है क्योंकि राजनैतिक दलों द्वारा ऐसी सीटों पर महिलाओं को टिकट नहीं दिया जा सकता है जहाँ उनकी जीत के विषय में पहले से ही संदेह व्याप्त हो|
  • इसके अतिरिक्त आरक्षण के विषय में दूसरा विरोध इस बात पर है कि क्या महिला सशक्तीकरण को उस स्थिति में बढ़ावा प्रदान किया जा सकता है जहाँ एक महिला ही दूसरी महिला के विरुद्ध चुनाव लड़ रही हो?
  • परन्तु स्थानीय निकाय चुनावों में (जहाँ महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया है) यह देखने में आया है कि महिलाएँ अब धीरे-धीरे उन सीटों पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर रही हैं जो उनके लिये आरक्षित नहीं हैं|
  • फ़्रांस के पूर्व मंत्री फ्रेंकोइस गिरोंद (Françoise Giroud) ने एक बार कहा था कि महिलाएँ केवल तभी पुरुषों के समान हो सकती हैं, जब अक्षम महिलाओं की भी ऐसी महत्त्वपूर्ण नौकरियों में भागीदारी हो जैसी नौकरियाँ पुरुष करते हैं| इससे प्रेरणा लेते हुए नागालैंड की राज्य सरकार की अपेक्षा वहाँ के पुरुषों को इस बात को पूर्णतया स्वीकार करना चाहिये|
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