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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान और भारत

  • 25 Feb 2018
  • 10 min read

संदर्भ:
आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, 2018 (ASEAN-India Commemorative Summit) 25-26 जनवरी को नई दिल्ली में आरंभ होने वाला है। गौरतलब है कि आसियान की स्थापना वर्ष 1967 में बैंकॉक डिक्लेरेशन (Bangkok declaration) के ज़रिये हुई तब से लेकर अब तक अपने 50 वर्षों के इतिहास में आसियान ने क्षेत्रीय सहयोग की मिसाल कायम की है।

आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, 2018

  • सम्मेलन की थीम: साझा मूल्य, सामान्य लक्ष्य (“Shared Values, Common Destiny”)
  • सम्मलेन का महत्त्व: एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (भारत) और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण ब्लॉक (आसियान देशों) के बीच साझा सहयोग को बढ़ावा।
  • वर्षगाँठों के आईने में सम्मलेन: यह भारत-आसियान संवाद सम्मेलन की 25वीं, शिखर वार्ता की 15वीं और सामरिक साझेदारी की 5वीं वर्षगाँठ होगी।

आसियान की पृष्ठभूमि:

  • आसियान की स्थापना 8 अगस्त,1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी।
  • वर्तमान में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके दस सदस्य देश हैं। इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में स्थित है।

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आसियान के लक्ष्य एवं उद्देश्य

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  • सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना:
    ► आसियान डिक्लेरेशन के अनुसार, आसियान का लक्ष्य दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेज़ी लाने हेतु निरंतर प्रयास करना है।
  • पारस्परिक सहयोग एवं संधि को बढ़ावा देना:
    ► आसियान देशों में न्याय और कानून के शासन के माध्यम से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना इसका एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
    ► साथ ही आसियान संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का पालन के प्रति भी दृढ-प्रतिज्ञ है।
  • प्रशिक्षण एवं अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना:
    ► आसियान देशों के बीच शैक्षणिक, पेशेवर, तकनीकी और प्रशासनिक क्षेत्रों में प्रशिक्षण और अनुसंधान सुविधाओं के संबंध में परस्पर सहयोग को बढ़ावा देना आसियान का एक प्रमुख उद्देश्य है।
  • कृषि एवं उद्योग तथा संबंधित क्षेत्रों का विकास:
    ► कृषि और उद्योगों की बेहतरी हेतु परस्पर संबंधों को मज़बूती देना तथा आपसी व्यापार को विस्तार देना आसियान के लक्ष्यों में प्रमुखता से शामिल है।
    ► आसियान के लक्ष्यों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं, परिवहन और संचार सुविधाओं में सुधार तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार के प्रयास करना भी शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ अनुपूरक संबंध:
    ► मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के उद्देश्यों के सापेक्ष साझा सहयोग को बढ़ावा देना भी आसियान का एक प्रमुख उद्देश्य है।

भारत के लिये आसियान का महत्त्व

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  • एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार:
    ► गौरतलब है कि आसियान, भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार (trade-partner) जबकि भारत आसियान के लिये उसका सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
  • भारत के लिये आर्थिक तौर पर महत्त्वपूर्ण:
    ► दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र आर्थिक रूप से अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। इस क्षेत्र का आर्थिक-वाणिज्यिक महत्त्व इसलिये भी बढ़ जाता है, क्योंकि भारत द्वारा इस क्षेत्र में भारी निवेश किया गया है।
    ► गौरतलब है कि पिछले दो दशकों में भारत का आसियान देशों में निवेश 70 अरब डॉलर रहा है और भविष्य में इसमें वृद्धि की व्यापक संभावनाएँ हैं।
  • भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण:
    ► देश का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील होने के साथ अल्प-विकास का भी शिकार रहा है और इस दृष्टि से आसियान के साथ सहयोग भारत के लिये अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है।
    ► उदाहरण के लिये, आसियान में शामिल सिंगापुर द्वारा उत्तर-पूर्व में स्थित असम में कई कौशल विकास केंद्र खोले गए हैं।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण कारण:
    ► विश्व की कुल जनसंख्या की एक-तिहाई भारत और आसियान देशों की सम्मिलित जनसंख्या है।
    ► भारत और आसियान की अर्थव्यवस्था साथ मिलकर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
    ► अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और मैरीटाइम सुरक्षा के मज़बूतीकरण और आतंकवाद निरोधक उपायों के लिये भी भारत-आसियान सहयोग महत्त्वपूर्ण है।

समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

  • भारत और आसियान देशों के लिये बुनियादी ढाँचे का विकास और कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
  • भारत-म्याँमार-थाईलैंड (आईएमटी) त्रिपक्षीय राजमार्ग और कालादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट एंड ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के क्रियांवयन में सामने आ रही समस्याएँ इन चुनौतियों के प्रमुख कारण हैं।
  • साथ ही तेल एवं गैस भंडार की दृष्टि से समृद्ध दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावों के कारण भी कनेक्टिविटी का संकट उत्पन्न हो गया है।
  • चीन के अनिश्चित व्यवहार के कारण हिंद महासागर में भी अनिश्चितता बढ़ गई है।

आगे की राह

  • दोनों पक्षों को अपने कनेक्टिविटी कॉरिडोर को ट्रेड कॉरिडोर के रूप में विकसित करने के प्रयास करने होंगे।
  • साथ ही भारत और आसियान को मुक्त व्यापार समझौते का भी इष्टतम उपयोग करना होगा।
  • चीन के बढ़ते प्रभुत्व का सामना करने के लिये भारत के पास सबसे बेहतर विकल्प यही है कि वह आसियान के साथ बेहतर संबंधों के ज़रिये दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाए।
  • भारत को बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों को आर्थिक रूप से एकीकृत करना चाहिये, ताकि किसी भी मुद्दे पर वे भारत की चिंताओं के प्रति सजग रहें।
  • दरअसल, आसियान क्षेत्रीय एकीकरण के पारंपरिक तरीके को आधार बनाकर आगे बढ़ रहा है, जो कि वस्तु एवं सेवाओं तथा निवेश आदि के मुक्त प्रवाह पर आधारित है।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया में परिस्थितियों में बदलाव के इस दौर में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को सुदृढ़ बनाने के साथ नवाचार को बढ़ावा देने की महती आवश्यकता है।

निष्कर्ष

  • आसियान ने अपने संचालन के आरंभिक वर्षों के दौरान कुछ विशेष मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया। एक बार तय लक्ष्यों की प्राप्ति के उपरांत ही उसने अन्य क्षेत्रों में कदम रखे।
  • आपसी विवादों का सौहार्द्रपूर्ण समाधान प्रस्तुत करना आसियान की सफलता का एक बड़ा कारण है। साथ ही व्यापार को बढ़ावा देने के लिये आसियान ने आर्थिक विकास और आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है। 
  • अंतर्राज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसने ‘आसियान व्यापक निवेश समझौते’ (ASEAN Comprehensive Investment Agreement- ACIA) की व्यवस्था की है।
  • गौरतलब है कि आसियान के सदस्य देश अब अपने-अपने यहाँ प्रवेश के नियमों में ढील देने के लिये सहमत हो गए हैं। बेहतर कनेक्टिविटी आज विकास और समृद्धि की पहली शर्त है।
  • ऐसे में भारत को चाहिये कि वह अपनी भौगोलिक विशेषताओं का लाभ उठाते हुए बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करे।
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