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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंडो-पैसिफिक में उभरते नए अवसर

  • 18 Nov 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 15/11/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The EU’s role in the Indo-Pacific” लेख पर आधारित है। इसमें यूरोपीय संघ के लिये चीन के विरुद्ध सहयोगी के रूप में भारत के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मज़बूती से पैर जमाने हेतु आगे के रास्ते के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

बीते कुछ वर्षों में विश्व के आर्थिक और राजनीतिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र हिंद-प्रशांत की ओर स्थानांतरित हो रहा है। अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा में पहले की तुलना में तीव्रता के साथ इस क्षेत्र ने अत्यंत महत्त्व हासिल कर लिया है।    

‘क्वाड’ का तेज़ी से विकास, ’ऑकस’ (AUKUS) साझेदारी का उदय और कई अन्य लघु-पक्षीय गठबंधनों का उभार स्वयं में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बढ़ते महत्त्व की पुष्टि करता है।   

जबकि चीन व्यापार से लेकर सैन्य शक्ति और प्रौद्योगिकी तक सभी क्षेत्रों में लगातार प्रमुख भूमिका निभाने लगा है और अमेरिकी सर्वोच्चता अपने पतन की ओर अग्रसर है, यूरोपीय संघ का आगे आना बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जिसका आर्थिक भविष्य और भू-राजनीतिक प्रासंगिकता दोनों अलंघनीय रूप से एशिया में विकास से संबद्ध हैं।       

भारत को इस क्षेत्र में यूरोपीय संघ के प्रवेश का स्वागत करना चाहिये और क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, शक्ति प्रतिद्वंद्विता जैसी चिंता के साझा विषयों को संयुक्त रूप से संबोधित करना चाहिये।

हिंद-प्रशांत में यूरोपीय संघ की बढ़ती रुचि

  • यूरोप और हिंद-प्रशांत क्षेत्र का सदियों पुराना संपर्क: यूरोप का एशिया से पुराना, मज़बूत और बहुस्तरीय संबंध रहा है। एशिया को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दृष्टिकोण से देखा और परखा जाता है।  
    • कम-से-कम वर्ष 2018 के बाद से फ्राँस, नीदरलैंड, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों ने हिंद-प्रशांत के प्रति अपनी विशिष्ट नीतियों की घोषणा की है।
  • एशिया और प्रशांत क्षेत्र के साथ यूरोपीय संघ के वर्तमान संबंध: ब्रसेल्स यूरोपीय संघ और हिंद-प्रशांत को ’प्राकृतिक भागीदार क्षेत्रों’ (Natural Partner Regions) के रूप में देखता है।  
    • यूरोपीय संघ पहले से ही हिंद महासागर के तटवर्ती राज्यों, आसियान क्षेत्र और प्रशांत द्वीप राज्यों में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी है। 
    • यूरोपीय संघ की हालिया हिंद-प्रशांत रणनीति, व्यापक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी को बढ़ाने का लक्ष्य रखती है। 
  • संलग्नता के पीछे के हित: यूरोपीय संघ निम्न परिदृश्यों का सामना करने की स्थिति में है: 
  • हिंद-प्रशांत के लिये यूरोपीय संघ की हालिया पहल: यूरोपीय संघ की परिषद द्वारा अप्रैल, 2021 में अपने आरंभिक नीति निष्कर्षों की घोषणा के बाद सितंबर, 2021 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिये यूरोपीय संघ की रणनीति (EU strategy for cooperation in the Indo-Pacific) का अनावरण किया जाना इस संबंध में उल्लेखनीय कदम है।    
  • हिंद-प्रशांत के लिये विजन: इस क्षेत्र में यूरोपीय संघ की भविष्य की प्रगति ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’ (Rules-Based International Order) के सिद्धांतों पर आधारित है; जो व्यापार एवं निवेश, सतत् विकास लक्ष्य एवं बहुपक्षीय सहयोग के लिये एकसमान अवसर को बढ़ावा देता है; और मानवाधिकारों एवं लोकतंत्र की रक्षा करता है।  
    • यह ग्रीन ट्रांजीशन, महासागरीय शासन, डिजिटल शासन एवं भागीदारी, संपर्क, सुरक्षा एवं रक्षा और मानव सुरक्षा में सहयोग की भी परिकल्पना करता है।    

संबद्ध चुनौतियाँ

  • अमेरिका और चीन की तुलना में यूरोपीय संघ की सुरक्षा और रक्षा क्षमताएँ बेहद सीमित हैं। 
  • यूरोपीय संघ आंतरिक विभाजनों से ग्रस्त है; कई राज्य चीन को एक बड़े आर्थिक अवसर के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य चीन की चुनौती के पूर्ण स्वरूप के प्रति पूरी तरह से सचेत हैं। 
    • उनका मानना ​​​​है कि यूरोप के हितों की पूर्ति न तो एशिया में चीन के प्रभुत्व से होगी, न ही द्विध्रुवीयता से उभरे एक नए शीत युद्ध से।
  • यूरोपीय संघ विविध जोखिमों का सामना कर रहा है; उसका निकटतम पड़ोसी रूस एक अधिक पारंपरिक खतरा है जो चीन की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। 
    • इसलिये, यूरोपीय संघ के लिये क्वाड के साथ सहयोग करना एक आसान चयन होना चाहिये। हालाँकि, हाल ही में AUKUS साझेदारी ने यूरोपीय संघ के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य फ्राँस को निराश ही किया। 

आगे की राह

  • आर्थिक क्षमताओं को मज़बूत करना: आर्थिक संबंधों के पक्ष में असंतुलन (अमेरिका और चीन की तुलना में) को दूर करने के लिये, यूरोपीय संघ को फ्राँस एवं उन सदस्य देशों को पर्याप्त अवसर और समर्थन देने की आवश्यकता होगी, जो हिंद-प्रशांत के साथ उल्लेखनीय संबंध रखते हैं।    
  • नए गठबंधन: भारत को ब्रिटेन के साथ रणनीतिक समन्वय का निर्माण भी करना चाहिये, क्योंकि ब्रिटेन अपनी 'ग्लोबल ब्रिटेन' रणनीति के एक अंग के रूप में एशिया में अपनी भूमिका का विस्तार करने की तैयारी कर रहा है।  
    • एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में यूरोपीय संघ के पास ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और न्यूज़ीलैंड के साथ अपनी व्यापार वार्ता में सफलता प्राप्त करने की प्रबल संभावना है; साथ ही, वह पूर्वी अफ्रीकी समुदाय के साथ आर्थिक साझेदारी समझौते के लिये विचार-विमर्श को पूरा कर लेने की ओर अग्रसर है।   
    • यह सब और इससे भी आगे की प्रगति के लिये, यूरोपीय संघ को अपने वित्तीय संसाधनों और नई प्रौद्योगिकियों को भागीदारों के साथ साझा करने के लिये भी तत्परता बढ़ानी चाहिये।  
  • भारत-यूरोपीय संघ सहयोग: भारत के पास यूरोपीय संघ से संलग्नता के अपने विशिष्ट कारण हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में उसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति के लिये भारत-यूरोपीय संघ की घनिष्ठ भागीदारी की आवश्यकता है।  
    • भारत-यूरोपीय संघ व्यापक व्यापार समझौते पर हाल की पुनःवार्ता और एक विशिष्ट निवेश संरक्षण समझौते द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की दिशा में प्रमुख कदम हैं।
      • दोनों पक्षों के बीच उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों में सहयोग भी वांछनीय है।
    • फ्राँस, जर्मनी और यू.के के साथ रक्षा संबंधों को मज़बूत और उन्नत करना भी भारत की एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता बनी रहनी चाहिये। 
    • अपने रणनीतिक संबंधों पर अधिकाधिक ध्यान और अन्य समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ संलग्नता रख भारत और यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत में एक स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी और नियम आधारित व्यवस्था को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 

निष्कर्ष

  • यूरोपीय संघ स्वयं के हितों के प्रति अधिक स्पष्टता, चीन के साथ अधिक मुखरता और भारत के साथ अधिक सहयोग के माध्यम से हिंद-प्रशांत में अपने लिये एक सुविधाजनक स्थिति का निर्माण कर सकता है।
  • वैश्विक साझा हितों की सुरक्षा करने, स्थिरता बनाए रखने एवं सहकारी तरीके से आर्थिक समृद्धि का समर्थन करने और साथ मिलकर एक स्थिर बहुध्रुवीय व्यवस्था को आकार देने के लिये हितों और साझा मूल्यों के बढ़ते अभिसरण से क्षेत्र में भारत-यूरोपीय संघ के गहरे सहयोग का अवसर उत्पन्न होगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘हिंद-प्रशांत में चीनी प्रभुत्व की वृद्धि और अमेरिकी वर्चस्व में गिरावट के परिदृश्य में यूरोपीय संघ साझा हितों और चिंताओं के क्षेत्र में सहयोग के लिये भारत का एक मज़बूत सहयोगी हो सकता है।’’ टिप्पणी कीजिये।

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