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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-यूनाइटेड किंगडम: प्रौद्योगिकी क्षेत्र सहयोग

  • 16 Dec 2021
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 14/12/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Delhi To London” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के लिये प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यूनाइटेड किंगडम के साथ सहयोग में निहित अवसरों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

जब भी भारत प्रमुख शक्तियों के साथ प्रौद्योगिकीय सहयोग के बारे में सोचता है तो वह आमतौर पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान को संदर्भित करता है। रक्षा प्रौद्योगिकियों में रूस को भी एक प्रमुख शक्ति माना जाता है।  

बीते कुछ समय में चीन का उभार भी प्रमुख प्रौद्योगिकीय शक्ति के रूप में हुआ है, हालाँकि उसकी विस्तारवादी नीतियों के कारण भारत के साथ उसके अनुकूल संबंध नहीं हैं।

किंतु भारत की प्रौद्योगिकीय परिकल्पना में यूनाइटेड किंगडम एक ‘मिसिंग लिंक’ की तरह है, जो औद्योगिकीकरण की राह पर जाने वाले विश्व का पहले राष्ट्र होने और वैज्ञानिक अनुसंधान एवं तकनीकी विकास की एक लंबी परंपरा रखने के बावजूद भारत के लिये प्रौद्योगिकीय सहयोग हेतु शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है।   

भारत, यूनाइटेड किंगडम और प्रौद्योगिकी

  • ग्लोबल इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी रैंकिंग में यूनाइटेड किंगडम: लंदन, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे शीर्ष रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों के साथ ब्रिटेन दुनिया की शीर्ष प्रौद्योगिकी शक्तियों में से एक है।  
    • हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा वर्ष 2020 में जारी ‘वर्ल्ड् साइबर पावर इंडेक्स’ में वह चीन के पीछे लेकिन रूस से आगे तीसरे स्थान पर था, जबकि भारत इस सूचकांक में 21वें स्थान पर था।   
    • वर्ष 2021 में ‘विश्व बौद्धिक संपदा संगठन’ (WIPO) ने वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index) में ब्रिटेन को चौथा स्थान दिया था, जबकि इस रैंकिंग में भारत 46वें स्थान के साथ बहुत पीछे रहा। 
  • अन्य क्षेत्रों में ब्रिटेन का प्रभाव: भारत के विदेश मंत्री ने कई बार दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में ब्रिटेन के लगातार बने हुए महत्त्व को रेखांकित किया है।  
    • यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य, एक प्रमुख वित्तीय केंद्र और उच्च शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख केंद्र है।   
    • यह वैश्विक समुद्री पहुँच और दुनिया भर में राजनीतिक प्रभाव भी रखता है।   
  • यूनाइटेड किंगडम की साइबर रणनीति, 2022: ’प्रतिस्पर्द्धी युग में वैश्विक ब्रिटेन: सुरक्षा, रक्षा, विकास और विदेश नीति की एकीकृत समीक्षा’ (Global Britain in a Competitive Age: An Integrated Review of Security, Defence, Development, and Foreign Policy) नाम लंदन में प्रकाशित रिपोर्ट एक नई प्रौद्योगिकीय क्रांति को साकार करने की दिशा में ब्रिटेन की प्रतिबद्धता को प्रकट करती है।   
    • वर्ष 2022 में ब्रिटेन द्वारा एक नई साइबर रणनीति की घोषणा भी अपेक्षित है। इन पहलों में शामिल कुछ प्रमुख विषय या थीम हैं: 
      • ब्रिटेन में क्षेत्रीय और सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।  
      • एक प्रमुख विज्ञान शक्ति के रूप में ब्रिटेन की विशेष स्थिति सुनिश्चित करना। 
      • ब्रिटेन के भविष्य के आर्थिक विकास के संचालन के लिये तकनीकी नवाचार पर ध्यान देना। 
      • नए तकनीकी खतरों के विरुद्ध आंतरिक सुरक्षा लचीलेपन का निर्माण करना।  
      • नई तकनीकों की मदद से खुफिया तंत्र का आधुनिकीकरण करना। 
      • राष्ट्रीय रक्षा रणनीति में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी नई क्षमताएँ भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण बन गई हैं, जितने युद्ध-टैंक, जहाज़ और लड़ाकू जेट जैसे सैन्य हार्डवेयर।
      • अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में द्वेषपूर्ण अभिकर्त्ताओं का मुकाबला करने के लिये प्रौद्योगिकीय शक्ति का प्रसार करना। 
  • भारत-यूनाइटेड किंगडम संबंध में विद्यमान समस्याएँ:
    • भारत-यूनाइटेड किंगडम के मध्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निम्न सहयोग: यद्यपि माना जाता है कि दिल्ली और लंदन के बीच जल्द ही एक व्यापार समझौता संपन्न होना तय है, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निहित अत्यधिक संभावनाओं के बावजूद इस दिशा में अधिक प्रयास नहीं किया गया है।   
    • अपेक्षा है कि दिसंबर, 2021 में आहूत कार्नेगी इंडिया के ‘ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट’ में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में साझेदारी की कुछ संभावनाओं पर प्रकाश पड़ सकेगा।   
    • संबंध का ‘पाकिस्तान दृष्टिकोण’: भारत के साथ ब्रिटेन के संबंध कभी भी उतने आशाजनक नहीं दिखे जितने अभी हैं, बल्कि द्विपक्षीय संबंधों पर लोकप्रिय आख्यान सदैव अतीत में ही उलझा हुआ रहा है।  
      • दिल्ली का विदेश नीति तबका लंदन को देखने में कभी भी पाकिस्तान के दृष्टिकोण को अलग नहीं कर सका है।
      • लंदन द्वारा पाकिस्तान की पैरवी करना हमेशा से दिल्ली के लिये चिंता का विषय रहा है। 
    • औपनिवेशिक दृष्टिकोण: भारत-यूनाइटेड किंगडम संबंधों की सीमितता का एक कारण औपनिवेशिक दृष्टिकोण भी रहा है, जिसने पारस्परिक धारणाओं को विकृत किया है। 
      • भारतीय राजनीतिक और नौकरशाह वर्गों के बीच ब्रिटेन के विरुद्ध उपनिवेशवाद-विरोधी रोष कभी भी छुपा हुआ नहीं रह सका है। 
      • स्वयं ब्रिटेन के लिये भारत के प्रति अपने पूर्वाग्रहों को दूर करना कठिन ही रहा है। 

आगे की राह

  • मौजूदा मतभेदों से आगे बढ़ना: भारत अपने औपनिवेशिक अनुभवों से बाहर निकल चुका है और अब ब्रिटेन के साथ एक पूर्व शासक के बजाय बराबरी का व्यवहार करता है। भारत अगले एक-दो वर्ष में जीडीपी रैंकिंग में ब्रिटेन से आगे निकलने के लिये भी तैयार है।     
    • लंदन की दक्षिण एशियाई नीति पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, दिल्ली अब पाकिस्तान के साथ भारत के राजनीतिक विवादों में एक विशेष भूमिका रखने के उसके दावों की अनदेखी कर सकती है।
    • इसके साथ ही, दिल्ली को ब्रिटेन के साथ व्यापक रणनीतिक संभावनाओं को चिह्नित करना चाहिये और इस दिशा में सहयोग के लिये अपनी राजनीतिक पूँजी का निवेश करना चाहिये।   
  • यूनाइटेड किंगडम की महत्त्वाकांक्षी नीतियाँ भारत के लिये एक अवसर: लंदन प्रौद्योगिकी की वैश्विक व्यवस्था को फिर से आकार देने के लिये समान विचारधारा वाले देशों का गठबंधन बनाने की इच्छा रखता है।  
    • इसमें ‘एंग्लोस्फीयर’—अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के पारंपरिक रूप से करीबी भागीदारों के साथ-साथ जापान और भारत जैसे अन्य भागीदारों के साथ प्रौद्योगिकीय संबंधों को सशक्त करना शामिल है।
    • ब्रिटिश नीति के ये सभी तत्व अर्थव्यवस्था, राजनीति और सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के अपने हितों के साथ संबद्ध हैं।  
      • यूनाइटेड किंगडम की प्रौद्योगिकी पहलें ‘क्वाड’ के प्रौद्योगिकीय एजेंडे के भी अनुरूप हैं।  
    • ये सभी अवसर भारत को यूनाइटेड किंगडम के साथ सहयोग करने के पर्याप्त कारण प्रदान करते हैं।
  • दिल्ली और लंदन के एक-दूसरे के प्रति बदलते दृष्टिकोण: पाकिस्तान के लगातार सापेक्षिक पतन (जहाँ इसकी अर्थव्यवस्था अब भारत के दसवें हिस्से के बराबर रह गई है) और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की गहरी होती रणनीतिक साझेदारी के साथ ब्रिटेन भारतीय उपमहाद्वीप के प्रति अपने अतीत के दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने हेतु प्रेरित हो रहा है।     
    • अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई की दक्षिण एशिया नीतियों में "इंडिया फर्स्ट" को महत्त्व दिलाने में अपनी कूटनीतिक सफलता के साथ भारत को विश्वास है कि यूनाइटेड किंगडम के दृष्टिकोण को भी बदला जा सकता है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में सहायता की पेशकश: भारत 21वीं सदी की महाशक्ति के रूप में उभर रहा है और निकट भविष्य में विश्व की सबसे बड़ी प्रभावकारी शक्तियों में से एक बनने की राह पर है।     
    • यह वैश्विक दौड़ में नए भागीदारों की तलाश कर रहा है जो यूनाइटेड किंगडम के लिये एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। यूनाइटेड किंगडम शिक्षा, अनुसंधान, नागरिक समाज और रचनात्मक क्षेत्र में भारत के लिये व्यापक पेशकश कर सकता है।
    • इसके अलावा, भारत का कुशल श्रम, तकनीकी सहयोग और जीवंत बाज़ार ब्रिटेन के लिये भी बहुत से अवसरों के द्वार खोलता है।
      • इस संदर्भ में, भारत को ब्रिटेन से एक ऐसी पहल की आवश्यकता है जो ब्रिटेन में भारतीय आईटी पेशेवरों और कुशल कार्यबल को काम करने की अनुमति प्रदान करे।

निष्कर्ष

  • दिल्ली के लिये लंदन के साथ नया गठबंधन चार क्षेत्रों में लाभ लेकर आएगा— घरेलू समृद्धि का सृजन, राष्ट्रीय सुरक्षा की वृद्धि, वैश्विक प्रौद्योगिकी पदानुक्रम में ऊपर बढ़ना और एक स्वतंत्र, खुले एवं लोकतांत्रिक वैश्विक प्रौद्योगिकीय व्यवस्था के निर्माण में योगदान। 
  • यूनाइटेड किंगडम की आगामी साइबर रणनीति 2022 भी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत को सहयोग के लिये अवसर प्रदान कर सकती है।

अभ्यास प्रश्न: यद्यपि माना जाता है कि दिल्ली और लंदन के बीच जल्द ही एक व्यापार समझौता संपन्न होना तय है, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निहित अत्यधिक संभावनाओं के बावजूद इस दिशा में अधिक प्रयास नहीं किया गया है। टिप्पणी कीजिये।

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