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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत–अमेरिका व्यापारिक संबंधों की दिशा

  • 16 Mar 2017
  • 5 min read

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के संबध में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के रुख को देखते हुए भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों पर करीबी नज़र रखने वाले भी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अमेरिका की वर्तमान नीतियाँ भारत के लिये चिंता का विषय हैं या ये नीतियाँ भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगाढ़ता लाएंगी।

वर्तमान स्थिति

  • डोनाल्ड ट्रम्प के रुख को भारत के लिये सही नहीं मानने वालों का तर्क है कि अमेरिका की सरंक्षणवादी नीतियाँ भारत के मेक इन इंडिया के सापेक्ष नहीं है। वहीं ट्रम्प की नीतियों को भारत के हित में मानने वाले लोगों का कहना है कि टीटीपी ( ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप) से अमेरिका का हट जाना भारत के लिये हितकारी है क्योंकि भारत टीटीपी में शामिल नहीं है।

  • हालाँकि अब अमेरिका की नीतियों के सन्दर्भ में विचारों और मान्यताओं को विराम देने का समय आ गया है क्योंकि हाल ही में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल का वार्षिक व्यापार नीति एजेंडा सामने आया है, जिसमें भारत के लिये प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्माण होता दिख रहा है।

भारत की प्रमुख चिंताएँ 

  • गौरतलब है कि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल का वार्षिक व्यापार नीति एजेंडा के पहले ही डॉक्यूमेंट में इस बात का वर्णन किया गया है कि अमेरिका, विश्व व्यापार संगठन को अब महत्त्व नहीं देगा। डॉक्यूमेंट के हवाले से कहा गया है कि विश्व व्यापार संगठन के निर्देश अमेरिका के लिये तब तक बाध्यकारी नहीं है जब तक कि अमेरिकी कांग्रेस इसकी मंजूरी नहीं दे देती। विदित हो कि अमेरिका जहाँ विश्व व्यापार संगठन को गंभीरता से नहीं ले रहा वहीं भारत विश्व व्यापार संगठन के निर्देशों का पालन करने वाले देशों में से एक है, और यह भारत के लिये शुभ संकेत नहीं है।

  • विदित हो कि इस डॉक्यूमेंट मे इस बात का उल्लेख किया गया है कि अमेरिका उन देशों के खिलाफ़ आक्रामक नीतियाँ लाएगा, जिन्होंने अमेरिकी सामानों पर उच्च टैरिफ ड्यूटी लगा रखी है। उल्लेखनीय है भारत में टैरिफ दरें वैश्विक औसत से दुगुनी अधिक हैं। जब अमेरिका ऐसे देशों के विरुद्ध, उपलब्ध तमाम आक्रामक विकल्पों के आजमाने पर विचार कर रहा है तो हो सकता है भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्ते खट्टे हो जाएँ।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • जब अमेरिका डब्लूटीओ को महत्त्व नहीं दे रहा है तो इन परिस्थितियों में भारतीय और अमेरिकी निवेशकों की चिंता यह है कि क्या कोई ऐसी संधि या प्रणाली है जहाँ वे विवादों का निपटारा करा सकते हैं और अपने निवेश को संरक्षित रख सकते हैं। अतः भारत को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय निवेश को अमल में लाना होगा ताकि भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में मज़बूती बनी रहे। साथ ही दोनों देशों के बीच एक मज़बूत बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) संरक्षण व्यवस्था का भी निर्माण करना होगा, जिससे नवोन्मेषकों के हितों का संरक्षण किया जा सके।

  • हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र में चीन की मुखरता का मुकाबला करने के लिये अमेरिका, भारत को अपने साथ लाना चाहता है। भारत के लिये यह सामरिक लाभ की स्थिति है लेकिन उसे इसका आर्थिक लाभ उठाना होगा, ज़ाहिर है आने वाले समय में भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंध बहुत हद तक भारत की कुटनीतिक सफलता पर निर्भर करेंगे और आर्थिक क्षेत्र में व्यापार एवं सहयोग बढ़ाने के लिये दोनों पक्षों की संभावित नीतियों पर चर्चा करनी होगी।

निष्कर्ष

भारत असीम संभावनाओं वाला देश है क्योंकि इसके 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है और अमेरिका भी इस तथ्य से पूरी तरह से अवगत है अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत की क्षमताओं को देखते हुए वर्तमान समस्याओं के बावजूद भारत में निवेश के लिये स्पष्ट और अपरिवर्तनीय प्रतिबद्धता दिखाना अमेरिका के भी हित में है।

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