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राजद्रोह पर पुनर्विचार

  • 03 Sep 2018
  • 9 min read

संदर्भ

पाँच दशकों में तीसरी बार विधि आयोग भारतीय दंड संहिता की धारा 124A की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है। विधि आयोग ने अपने परामर्श पत्र में इस विषय पर पुनर्विचार करने की बात कही है और जनता के लिये इस विषय पर राष्ट्रीय बहस हेतु विभिन्न मुद्दों को प्रस्तुत किया गया है। सत्ता के खिलाफ लिखने, बोलने या दृश्य फिल्म की प्रस्तुति पर प्रतिबंध प्रथम दृष्टया वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन माना जाता है और हर जगह शासक अपने खिलाफ असंतोष को भड़काने वाले प्रयासों और कटु आलोचनाओं को रोकने का प्रयास करते हैं। इसी संदर्भ में औपनिवेशिक शासन के तहत अधिनियमित भारतीय दंड संहिता की धारा 124A एक प्रासंगिक कानूनी माध्यम बनी हुई है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 124Aक्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के अनुसार, "बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, जो कोई भी भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष (Disaffection) उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, उसे आजीवन कारावास या तीन वर्ष तक की कैद और ज़ुर्माना अथवा सभी से दंडित किया जाएगा।"

परामर्श रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • विधि आयोग ने अपने परामर्श पत्र में कहा है कि एक जीवंत लोकतंत्र में सरकार के प्रति असहमति और उसकी आलोचना सार्वजनिक बहस का प्रमुख मुद्दा है।
  • इस संदर्भ में आयोग ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A, जिसके अंतर्गत राजद्रोह का प्रावधान किया गया है, पर पुनः विचार करने या उसे रद्द करने का समय आ गया है।
  • आयोग ने इस बात पर विचार करते हुए कि मुक्त वाक् एवं अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र का एक आवश्यक घटक है, के साथ "धारा 124A को हटाने या पुनर्परिभाषित करने के लिये सार्वजनिक राय आमंत्रित की है।
  • पत्र में कहा गया है कि भारत को राजद्रोह के कानून को क्यों बरकरार रखना चाहिये जबकि इसकी शुरुआत अंग्रेज़ों ने भारतीयों के दमन के लिये की थी और उन्होंने अपने देश में इस कानून को समाप्त कर दिया है। उल्लेखनीय है कि राजद्रोह के तहत तीन वर्ष से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
  • इस तरह आयोग ने कहा कि राज्य की कार्रवाइयों के प्रति असहमति की अभिव्यक्ति को राजद्रोह के रूप में नहीं माना जा सकता है।
  • एक ऐसा विचार जो कि सरकार की नीतियों के अनुरूप नहीं है, की अभिव्यक्ति मात्र से व्यक्ति पर राजद्रोह का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि अपने इतिहास की आलोचना करने और प्रतिकार करने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत सुरक्षित है।
  • राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा करना आवश्यक है, लेकिन इसका दुरुपयोग स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर नियंत्रण स्थापित करने के उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।
  • आयोग ने कहा कि लोकतंत्र में एक ही पुस्तक से गीतों का गायन देशभक्ति का मापदंड नहीं है। लोगों को उनके अनुसार देशभक्ति को अभिव्यक्त करने का अधिकार होना चाहिये।
  • अनुचित प्रतिबंधों से बचने के लिये मुक्त वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों की सावधानी पूर्वक जाँच करनी चाहिये। किंतु आयोग ने कहा है कि यदि न्यायालय की अवमानना के संदर्भ में सज़ा का प्रावधान है तो सरकार की अवमानना के संदर्भ में क्यों नहीं होना चाहिये?

इस धारा से जुड़ी समस्याएँ  

  • केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा अक्सर कार्यकर्त्ताओं, विरोधियों, लेखकों और यहाँ तक ​​कि कार्टूनिस्टों के खिलाफ इस धारा के प्रयोग की खबरें दोहराई जाती हैं।
  • उल्लेखनीय है 1870 में संभावित विद्रोह के डर से औपनिवेशिक शासकों द्वारा देशद्रोह कानून को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में शामिल किया गया था। आज़ादी के बाद इसे खत्म किये जाने की मांग के बावजूद यह आज भी कानून की किताबों में बना हुआ है।
  • धारा 124A को लगातार कई पीढ़ियों द्वारा पुनर्विचार करके इसे बचाकर रखा गया है, किंतु पूरी तरह से निरस्त नहीं किया जाता है।
  • वर्ष 1968 में विधि आयोग की एक पूर्व रिपोर्ट में इस खंड को रद्द करने के विचार को खारिज कर दिया गया था।
  • वर्ष 1971 में पैनल चाहता था कि कानून द्वारा स्थापित सरकार के अतिरिक्त संविधान, विधायिका और न्यायपालिका को कवर करने के लिये भी इस अनुभाग का विस्तार किया जाए, क्योंकि इन संस्थानों के खिलाफ 'असुरक्षा' को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये।
  • राजद्रोह पर प्रावधान के लिये सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि इसकी परिभाषा बहुत व्यापक है। अतः इसके दुरुपयोग की घटनाएँ भी कम नहीं है।
  • आज सरकारों के बीच यह कानून इतना लोकप्रिय हो गया है कि तमिलनाडु के कुंडकुलम में एक गाँव पर इसलिये देशद्रोह कानून थोप दिया गया था, क्योंकि वे वहाँ परमाणु सयंत्र बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे।
  • इतना ही नहीं, वर्ष 2014 में झारखंड में तो विस्थापन का विरोध कर रहे आदिवासियों पर भी देशद्रोह कानून चलाया गया था।
  • हालाँकि, राजद्रोह कानून के विरोधी अक्सर दावा करते हैं कि आईपीसी की धारा 124 A, अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ की भावना के प्रतिकूल है।
  • अनुच्छेद 19 ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ की बात करता है और इसका नियम 1 (A) कहता है कि “सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति का अधिकार होगा”, किंतु इस स्वतंत्र वाणी अथवा अभिव्यक्ति पर निश्चित प्रतिबंध भी लगाता है।
  • बेशक, सरकार या सरकारी नीतियों की आलोचना करना राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है, लेकिन राजद्रोह का मुकदमा तभी दायर होना चाहिये, जब किसी व्यक्ति या किसी समूह द्वारा देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता पर सवाल खड़ा किया जाए।

आगे की राह

दरअसल, हमें यह समझना होगा कि न तो सरकार और राज्य एक हैं, और न ही सरकार तथा देश। सरकारें आती-जाती रहती हैं, जबकि राज्य बना रहता है। राज्य संविधान, कानून और सेना से चलता है, जबकि राष्ट्र अथवा देश एक भावना है, जिसके मूल में राष्ट्रीयता का भाव होता है। इसलिये कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि राजद्रोह राष्ट्रभक्ति के लिये आवश्यक हो जाए। ऐसी परिस्थिति में सरकार की आलोचना नागरिकों का पुनीत कर्त्तव्य होता है। अतः सत्तापक्ष को धारा 124A का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। सच कहें तो देशद्रोह शब्द एक सूक्ष्म अर्थों वाला शब्द है, इससे संबंधित कानूनों का सावधानी पूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिये। 

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