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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

खुले में अनाज भंडारण की समस्या

  • 06 Sep 2018
  • 9 min read

संदर्भ

भारत में बरसात के मौसम में गर्मी के साथ हवा में उपस्थित आर्द्रता कवक/फफूंद की उत्त्पत्ति के लिये ज़िम्मेदार कारक है। इन दिनों कवक के हमले से खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के लिये हम अपने घरों में अच्छी तरह से फिटिंग वाले ढक्कन तथा सीलबंद प्लास्टिक बैग, एयरटाइट कंटेनरों में खाद्य पदार्थों का भंडारण करते हैं। इसी तरह भारत में अधिकांश अनाज, जिसे सरकार द्वारा किसानों से खरीदा जाता है, सीएपी या कवर और प्लिंथ विधि (plinth method) का उपयोग करके संग्रहीत किया जाता है। एक आँकड़े के मुताबिक भारतीय खाद्य निगम के गोदामों और किराये वाली जगहों पर इस तरह के ढाँचे में 30.52 मिलियन टन चावल, गेहूँ, मक्का, चना और ज्वार का भंडारण किया जाता है। इस लेख में हम अन्य देशों की तुलना में भारत में किये जाने वाले खाद्य पदार्थों के भंडारण की खराब स्थिति से उत्त्पन्न समस्यायों के साथ नीति-निर्माताओं के समक्ष उत्त्पन्न प्रश्नों की चर्चा करेंगे।

भारत के खाद्य भंडारण की अन्य देशों से तुलना

  • दुनिया के अन्य हिस्सों में अनाज सिलो (silos) में संग्रहीत होता है। यहाँ संग्रहीत अनाज को नमी से दूर रखा जाता है ताकि फफूंद और कीट के हमलों को रोका जा सके।
  • उत्तरी अमेरिका के मध्य-पश्चिम में 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान अनाज को निर्यात करने के लिये बड़े अनाज सिलो और रेलवे प्रणाली का निर्माण किया गया।
  • वर्तमान में अमेरिका ने अपने वार्षिक अनाज उत्पादन के बराबर ही स्थायी भंडारण क्षमता स्थापित कर ली है।
  • भारत में सरकार ने देश की ज़रूरतों के लिये केवल चार सिलो जो कि कोलकाता, चेन्नई, मुंबई और हापुड़-गाज़ियाबाद में हैं, को पर्याप्त माना गया है।
  • हाल ही के आँकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सबसे आधुनिक 500 टन की स्टोरेज क्षमता वाला सिलो स्थापित किया गया है।
  • भारत में शेष अनाज को इतनी खराब स्थिति में संग्रहीत किया जाता है कि कटाई के बाद अनाज का 10% नुकसान होता है, जिसमें से 6% (करीब 1800000 टन) भंडारण के अभाव में खराब हो जाता है।
  • इसका मतलब यह है कि जो अनाज जनता को उपभोग के लिये प्राप्त होता है वह नमी के साथ कवकयुक्त होता।
  • इसी संदर्भ में बासमती चावल को निर्यात करने के लिये पंजाब ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी में 50,000 टन की स्टोरेज क्षमता का एक आधुनिक, तापमान नियंत्रित अनाज सिलो बनाया है, लेकिन सुविधा भारतीय बाज़ार के लिये उपलब्ध नहीं है।

खराब भंडारण से उत्पन्न  समस्या

  • फफूंद लगा अनाज विभिन्न बीमारियों का कारण बनता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "माइकोटॉक्सिन्स", जो फफूंद लगे अनाज/खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं तथा मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं और एफ्लाटॉक्सिन (कैंसर पैदा करने), ट्राइकोथेसेन, ओक्रेटॉक्सिन्स, साइट्रिनिन और अन्य विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भोजन में एफ्लाटॉक्सिन की उच्च सांद्रता पेट दर्द, उल्टी, हेपेटाइटिस और कभी-कभी मौत का कारण भी बनता है।
  • यही कारण है कि पारंपरिक जानकारी के अनुसार, फफूंद लगे भोजन को खराब माना जाता है। उल्लेखनीय है कि आज भी हमारे यहाँ अनाज, विशेष रूप से गेहूँ  और धान, बरसात के मौसम में तिरपाल के नीचे सड़क पर संग्रहीत किया जाता है।
  • इसके बाद अनाज को आटा या आटा आधारित उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है, जिन्हें हम फफूंद से बचाने के लिये एयरटाइट कंटेनर में स्टोर करते हैं।
  • ऐसी स्थिति में माइकोटॉक्सिन अनाज के संग्रहण के समय से ही इसमें मौजूद रहते हैं और बाद में भोजन के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि माइकोटॉक्सिन स्वाभाविक रूप से कुछ कवकों द्वारा उत्पादित विषाक्त पदार्थ होते हैं और भोजन में पाए जाते हैं।
  • विभिन्न फसलों और खाद्य पदार्थों जैसे कि अनाज, नट, मसाले, सूखे फल, सेब और कॉफी सेम में अक्सर ये गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में बढ़ते हैं।
  • माइकोटॉक्सिन से स्वास्थ्य पर विभिन्न प्रकार के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते है और यह मनुष्यों तथा पशुओं दोनों के लिये गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा कर करता है।
  • माइकोटॉक्सिन से स्वास्थ्य पर के कई प्रतिकूल प्रभाव जैसे- प्रतिरक्षा की कमी और कैंसर आदि होने का खतरा रहता है।
  • सरकार माइकोटॉक्सिन युक्त अनाज के घातक परिणामों से अवगत है। फिर भी किसानों से फफूंद लगे अनाज की खरीद को रोकने के लिये कोई नियम नहीं है और न ही सीएपी विधि का उपयोग करके कवक संक्रमण से बचाए गए अनाज की सीमा पर कोई अध्ययन किया गया है।
  • इन सबके बावजूद हम भारतीय बाज़ार में उपलब्ध तैयार माल की गुणवत्ता और स्वाद की तुलना अन्य देशों में बने उत्पादों से करते हैं जो तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।

नीति-निर्माताओं के समक्ष उत्पन्न प्रश्न

  • जब भारत में स्टील, सीमेंट और अन्य भवन सामग्री, धन तथा तकनीकी जानकारियाँ बहुतायत में उपलब्ध हैं, तो सरकार उचित तरीके से अनाज भंडारण के लिये युद्ध स्तर पर प्रयास क्यों नहीं कर रही है? हमें संसद में नीति-निर्माताओं से इस संदर्भ में प्रश्न पूछने की ज़रूरत है।
  • साथ ही यह प्रश्न भी महत्त्वपूर्ण है कि मौसम की स्थिति को देखते हुए मानसून के महीनों के दौरान, यह कैसे स्वीकार्य है कि हमारे खाद्यान्न, जो कि लोगों द्वारा खरीदा जाता है, को टैरपॉलिन के नीचे खुले में रखा जाता है तथा टैरपॉलिन के नीचे 30 मिलियन टन अनाज भंडारित होने पर हम बढ़ती अर्थव्यवस्था के विषय में कैसे बात कर सकते हैं?
  • हालाँकि, अनाज उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया है, फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिये कोई प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है कि सालाना खरीदे जाने वाले अनाज को अच्छी तरह से संग्रहीत या भंडारित किया जाए?

आगे की राह 

  • वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद अनाजों के भंडारण की असक्षमता एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है।
  • दरअसल, भारत में अधिक उत्पादन के बावजूद यह समस्या अधिकांश आबादी को गरीबी और भूखमरी की ओर धकेलता है।
  • अतः इस कार्य के लिये नीति-निर्माताओं की सकारात्मक मंशा और एक सजग उपभोक्ता की आवश्यकता है, जो अपने अधिकारों के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक हों।
  • इसके अलावा नागरिक समाज द्वारा सरकार की लापरवाही के प्रति समय-समय पर आवाज़ उठाने की भी आवश्यकता है।
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