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भारतीय अर्थव्यवस्था

रुपए के मूल्य में गिरावट के मायने

  • 20 Aug 2018
  • 7 min read

संदर्भ

व्यापक व्यापार घाटे के साथ हाल ही में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट दर्ज़ की गई और कुछ ही समय पहले यह अब तक के निचले स्तर पर पहुँच गया। रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक सभी के लिये चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में यह जानकारी होना आवश्यक है कि रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट के मायने क्या हैं?

रुपया कमज़ोर या मज़बूत क्यों होता है?

  • विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है। 
  • अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात मूल्य में कमी।
  • उदहारण के लिये भारत को कच्चा तेल आदि खरीदने हेतु मूल्य डॉलर के रूप में चुकाना होता है, इस प्रकार भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से जितने डॉलर खर्च कर तेल का आयात किया उतना उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ इसके लिये भारत उतने ही डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करे तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में हुई कमी को पूरा किया जा सकता है। लेकिन यदि भारत से किये जाने वाले निर्यात के मूल्य में कमी हो तथा आयात कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी स्थिति में डॉलर खरीदने की ज़रूरत होती है तथा एक डॉलर खरीदने के लिये जितना अधिक रुपया खर्च होगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।

विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?

प्रत्येक देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिसका प्रयोग वस्तुओं के आयत –निर्यात में किया जाता है, इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। भारत में समय-समय पर इसके आंकडे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।

मुद्रास्फीति पर असर

  • मुद्रा के मूल्य में ह्रास का पहला प्रभाव है कि आयात महँगा हो जाता है, जबकि निर्यात सस्ता।
  • इसका कारण स्पष्ट है कि समान मात्रा में किसी वस्तु के आयात के लिये खरीदार को अधिक रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जबकि उतनी ही मात्रा में निर्यात करने पर दूसरे देश को कम डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।
  • अधिक महँगे आयात के कारण मुद्रास्फीति के बढ़ने की संभावना होती है, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ कच्चा तेल, रत्न एवं आभूषण के साथ इलेक्ट्रिक वस्तुओं का एक बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है।
  • इसके अलावा,  कमज़ोर होता रुपया तेल आयात के बिल को भी प्रभावित करता है क्योंकि इससे प्रति बैरल कच्चे तेल की खरीद पर अधिक रुपए खर्च होते हैं, जो मुद्रास्फीति को बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाता है।

मुद्रास्फीति (Inflation)

  • जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं।
  • अत्यधिक मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होती है, जबकि 2 से 3% की मुद्रास्फीति की दर अर्थव्यवस्था के लिये उचित होती है।
  • मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है, मांग कारक और मूल्य वृद्धि कारक से। मुद्रास्फीति के कारण अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में मंदी आ जाती है।
  • मुद्रास्फीति का मापन तीन प्रकार से किया जाता है:- थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एवं राष्ट्रीय आय विचलन विधि से।

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पर क्या असर पड़ता है?

  • सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारकों की संख्या को देखते हुए यह एक और जटिल सवाल है। एक तरफ, महँगे और तैयार माल की कीमतों में होने वाली वृद्धि का सकल घरेलू उत्पाद पर सकारात्मक प्रभाव होना चाहिये। लेकिन उच्च कीमतों के कारण मांग में कमी हो सकती है।
  • रुपए में कमज़ोरी के कारण निर्यात में वृद्धि होती है, जबकि आयात में कमी हो सकती है।

आपके लिये रुपए के मूल्य में गिरावट का क्या मतलब है?

  • भारत अपनी ज़रूरत का अधिकांश पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। रुपए में गिरावट के कारण पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महँगा हो जाएगा जिसके कारण तेल कंपनियाँ पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं। इन कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप माल की ढुलाई में वृद्धि होगी, जिसके चलते महँगाई बढ़ सकती है। 
  • भारत कच्चे तेल के अलावा बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है। रुपए में कमज़ोरी से घरेलू बाज़ार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतों में भी वृद्धि हो सकती है।
  • रुपए में गिरावट के कारण माल एवं तेलों के महँगे होने के अलावा विदेशों में भ्रमण अधिक महँगा हो जाता है क्योंकि भारतीय पर्यटकों को डॉलर के मुकाबले अधिक रुपए अदा करने पड़ते हैं। इसके विपरीत घरेलू पर्यटन में वृद्धि हो सकती क्योंकि अधिकतर पर्यटक इस दौरान भारत आते हैं क्योंकि उनकी मुद्रा अब और अधिक खरीद कर सकती है। 
  • मध्यम अवधि में निर्यात उन्मुख उद्योग भी अधिक नौकरियाँ सृजित कर सकते हैं।
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