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भारतीय राजव्यवस्था

अधिकरण सुधार विधेयक, 2021

  • 19 Aug 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

सर्वोच्च न्यायालय; अधिकरण सुधार विधेयक, 2021; शक्तियों के पृथक्करण; 42वें संशोधन अधिनियम, 1976

मेन्स के लिये

अधिकरण का संक्षिप्त परिचय,  अधिकरण सुधार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सरकार को चुनौती दी है कि वह अधिकरण सुधार विधेयक, 2021 को पेश करने के कारणों को प्रदर्शित करने वाले तथ्यों को उजागर करें।

प्रमुख बिंदु 

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए मुद्दे:

    • असंवैधानिक विधायी अधिभावी: विधेयक पर चर्चा का अभाव था तथा सरकार ने मद्रास बार एसोसिएशन मामले (2021) में न्यायालय द्वारा रद्द किये गए उन्हीं प्रावधानों को फिर से लागू किया है।
      • यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किसी निर्णय के "असंवैधानिक विधायी अधिभावी" के समकक्ष है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का बार-बार उल्लंघन: अधिकरण की उचित कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के लिये कोर्ट द्वारा समय-समय पर जारी किये गए निर्देशों का केंद्र द्वारा बार-बार उल्लंघन किया जा रहा है।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकरण के सदस्यों तथा अध्यक्षों की सेवा की शर्तों और कार्यकाल के संबंध में अध्यादेश के प्रावधानों को रद्द कर दिया था।. 
    • कार्यकाल की सुरक्षा: अधिकरण सुधार विधेयक, 2021 पचास वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों की अधिकरण में नियुक्तियों पर रोक लगाता है। यह कार्यकाल की अवधि/सुरक्षा को कमज़ोर करता है।
    • शक्तियों के पृथक्करण को कमज़ोर करना : विधेयक केंद्र सरकार को चयन समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर निर्णय लेने की अनुमति देता है, अधिमानतः ऐसा सिफारिश की तारीख से तीन महीने के भीतर होगा।
      • विधेयक की धारा 3(7) शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए केंद्र सरकार को खोज-सह-चयन समिति द्वारा दो नामों के एक पैनल की सिफारिश को अनिवार्य बनाती है।
    • अधिकरण में रिक्त पद : भारत में अब 16 अधिकरण हैं जिनमें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, आर्म्ड फोर्सेज़ अपीलेट ट्रिब्यूनल, डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल और अन्य शामिल हैं, जिसमें अधिक रिक्तियाँ विद्यमान हैं।
      • बड़ी संख्या में सदस्यों और अध्यक्ष पदों की रिक्तियाँ तथा उन्हें भरने में अत्यधिक देरी के कारण अधिकरण कमज़ोर हो गए हैं।
    • निर्णयन प्रक्रिया के लिये अहितकर : इन मामलों को त्वरित ही उच्च न्यायालयों या वाणिज्यिक सिविल अदालतों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
      • नियमित अदालतों में विशेषज्ञता की कमी निर्णयन प्रक्रिया के लिये हानिकारक हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (FCAT) ने विशेष रूप से सेंसर बोर्ड के फैसलों के खिलाफ  एक अपील करने वाले मामलों की सुनवाई की, जबकि ऐसे मामले के लिये विशेष न्यायालय होते है जिसमें कला और सिनेमा में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
      • इसके अतिरिक्त कुछ अधिकरण और अपीलीय निकायों के विघटन एवं उनके कार्यों को उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित करने की आलोचना इस आधार पर की जा सकती है कि भारतीय अदालतें पहले से ही अपने मौजूदा मामलों के भार (caseload) के बोझ से दबे हैं।

    अधिकरण सुधार विधेयक, 2021:

    • मौजूदा निकायों का विघटन: यह विधेयक कुछ अपीलीय निकायों को भंग करने और उनके कार्यों को अन्य मौजूदा न्यायिक निकायों को स्थानांतरित करने का प्रावधान करता है। उदाहरण के लिये ‘फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण’ द्वारा सुने जाने वाले विवादों को उच्च न्यायालय को हस्तांतरित कर दिया जाएगा।
    • मौजूदा निकायों का विलय: वित्त अधिनियम, 2017 ने डोमेन के आधार पर अधिकरणों का विलय किया है। उदाहरण के लिये ‘प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण’ को ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण’ के साथ मिला दिया गया है।
    • खोज-सह-चयन समितियाँ: ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी। इस समिति में शामिल होंगे:
      • अध्यक्ष के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (निर्णायक मत के साथ)।
      • केंद्र सरकार द्वारा नामित दो सचिव।
      • वर्तमान या निवर्तमान अध्यक्ष या उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश, और
      • मंत्रालय का सचिव जिसके अधीन न्यायाधिकरण का गठन किया गया है (मतदान अधिकार के बिना)।
    • राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण: इसमें अलग खोज-सह-चयन समितियाँ शामिल होंगी, जिसकी अध्यक्षता संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ अध्यक्ष (निर्णायक मत के साथ) द्वारा की जाएगी।
    • पात्रता और कार्यकाल: विधेयक में चार वर्ष के कार्यकाल का प्रावधान है (अध्यक्ष के लिये 70 वर्ष की ऊपरी आयु सीमा और सदस्यों के लिये 67 वर्ष)।
      • इसके अलावा इसके तहत अध्यक्ष या सदस्य की नियुक्ति के लिये 50 वर्ष को न्यूनतम आयु आवश्यकता के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
    • ट्रिब्यूनल या अधिकरण के सदस्यों को हटाना: विधेयक के मुताबिक, केंद्र सरकार, खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर किसी भी अध्यक्ष या सदस्य को पद से हटा सकती है।

    अधिकरण:

    • 'ट्रिब्यूनल' (Tribunal) शब्द की व्युत्पत्ति 'ट्रिब्यून' (Tribunes) शब्द से हुई है जो रोमन राजशाही और गणराज्य के अंतर्गत कुलीन मजिस्ट्रेटों की मनमानी कार्रवाई से नागरिकों की सुरक्षा करने के लिये एक आधिकारिक पद था।
    • यह एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था (Quasi-Judicial Institution) है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को हल करने के लिये स्थापित किया जाता है।
      • यह विवादों के अधिनिर्णयन, संघर्षरत पक्षों के बीच अधिकारों के निर्धारण, प्रशासनिक निर्णयन, किसी विद्यमान प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा जैसे विभिन्न कार्यों का निष्पादन करती है।
    • इसका उद्देश्य न्यायपालिका के कार्यभार को कम करना या तकनीकी मामलों के लिये विषय विशेषज्ञता सुनिश्चित करना हो सकता है।
    • संवैधानिक प्रावधान:
      • अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे। इन्हें भारतीय संविधान में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया।
        • अनुच्छेद 323-A: यह अनुच्छेद प्रशासनिक अधिकरण (Administrative Tribunal) से संबंधित है।
        • अनुच्छेद 323-B: यह अन्य मामलों के लिये अधिकरणों से संबंधित है।
        • अनुच्छेद 262: राज्य/क्षेत्रीय सरकारों के बीच अंतर-राज्य नदियों के जल संबंधी विवादों के संबंध में अधिनिर्णयन के लिये भारतीय संविधान में केंद्र सरकार की एक भूमिका तय की गई है।

    स्रोत: द हिंदू

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