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विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन

  • 06 Sep 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

5 सितंबर, 2019 को विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन (WHO’s Regional Committee for South-East Asia) की बैठक संपन्न हुई।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक में सदस्य देशों ने वर्ष 2023 तक दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र से खसरा और रूबेला को समाप्त करने का संकल्प लिया है।
  • विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन का यह 72वां सत्र था। इसका आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में किया गया।
  • खसरा और रूबेला दोनों बिमारियों की पहचान व बीमारी के दौरान निगरानी हेतु उच्च गुणवत्ता युक्त लैब की आवश्यकता होती है। सदस्य देशों के मध्य इसकी आपूर्ति पर सहमती बनी है। उपरोक्त लैब की सहायता से इन बिमारियों से निपटने की प्रक्रिया में तीव्रता आएगी।
  • इस सत्र में सभी देशों ने वर्ष 2023 तक खसरा और रूबेला वायरस के प्रसार को रोकने के लिये राजनीतिक, सामाजिक और वित्तीय सहायता जुटाने का संकल्प लिया।
  • इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सदस्य देशों ने राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर लोगों में खसरा और रूबेला के प्रति प्रतिरक्षा प्रणालियों को मजबूत करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • वर्ष 2014 से खसरा उन्मूलन और रूबेला नियंत्रण दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र की प्रमुख प्राथमिकता रही है। भूटान, कोरिया डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक, मालदीव, श्रीलंका और तिमोर-लेस्ते से खसरा का उन्मूलन हो चुका है, जबकि बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और तिमोर-लेस्ते आदि देशों ने रूबेला को नियंत्रित किया है।
  • सदस्य देशों ने "खसरा और रूबेला उन्मूलन 2020-2024 के लिये रणनीतिक योजना" को अपनाया है। यह क्षेत्र में खसरा और रूबेला उन्मूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सहायक सिद्ध होगी।
  • खसरा के उन्मूलन से इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगभग 500,000 बच्चों की मृत्यु को रोका जा सकेगा जो इस बीमारी के कारण होती हैं।
  • जबकि रूबेला एवं जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (Rubella and Congenital Rubella Syndrome-CRS) के उन्मूलन से लगभग 55,000 मामले को नियंत्रित किया जा सकेगा।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2014 में ‘खसरा उन्मूलन और रूबेला एवं जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (Rubella and Congenital Rubella Syndrome-CRS) नियंत्रण 2020’ कार्यक्रम को क्षेत्र के आठ फ्लैगशिप कार्यक्रमों में से एक घोषित किया गया। इसके तहत सदस्य देशों में एक क्षेत्रीय रणनीतिक योजना लागू की गई थी।
  • वर्ष 2014-17 की अवधि में खसरे के कारण होने वाली मृत्यु दर में 23% की गिरावट दर्ज की गई है।

भारत के संबंध में

  • नवीनतम ‘ग्लोबल मीज़ल्स एंड रूबेला अपडेट’ के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 में खसरा और रूबेला के क्रमश: 56,399 और 1,066 मामलों की पुष्टि हुई है, और भारत इन बीमारियों के उन्मूलन लक्ष्य से काफी दूर है।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में ‘खसरा और रूबेला टीकाकरण कार्यक्रम’ (MR Vaccination program) शुरू किया।
  • इसके तहत 9 माह से 15 वर्ष के आयु के सभी बच्चों का टीकाकरण किया जायेगा।
  • इसके अतरिक्त सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme -UIP) एवं ‘मिशन इंद्रधनुष’ के माध्यम से भी खसरा-रूबेला के उन्मूलन के प्रयास किये जा रहे हैं।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन

(WHO’s Regional Committee for South-East Asia)

  • विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन, दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन की शासी निकाय (governing body) है, जिसमें क्षेत्र के 11 सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
  • यह समिति क्षेत्र में स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास की प्रगति की समीक्षा करने के लिये प्रति वर्ष बैठक का आयोजन करता है।
  • यह समिति सदस्य देशों के लिये स्वास्थ्य के मुद्दों पर संकल्प (Resolution) तैयार करती है।
  • बांग्लादेश, भूटान, कोरिया डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक, इंडिया, इंडोनेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, तिमोर-लेस्ते इसके सदस्य देश हैं।

खसरा (Measles)

  • खसरा वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारी है जो वैश्विक स्तर पर छोटे बच्चों में मृत्यु का कारण बनती है।
  • खसरा (Measles) श्वसन प्रणाली में वायरस, विशेष रूप से मोर्बिलीवायरस (Morbillivirus) के जीन्स पैरामिक्सोवायरस (Paramicovirus) के संक्रमण से होता है।
  • इसके लक्षणों में बुखार, खाँसी, नाक का बहना, लाल आँखें और एक सामान्यीकृत मेकुलोपापुलर एरीथेमाटस चकते भी शामिल हैं।

रूबेला (Rubella)

  • रुबेला को “जर्मन खसरा” के नाम से भी जाना जाता है, यह बीमारी रुबेला वायरस के कारण होती है।
  • यह संक्रमित व्यक्ति की नाक और ग्रसनी से स्राव की बूंदों से या फिर सीधे रोगी व्यक्ति के संपर्क में आने पर फैलता है।
  • आमतौर पर इसके लक्षण कम ज़ाहिर होते हैं। नवजात बच्चों में बुखार, सिरदर्द, संक्रामक चकत्ते और कान के पीछे या गर्दन की लसिका ग्रंथियों में वृद्धि होना। हालाँकि, कभी-कभी कोई लक्षण नहीं भी पाया जाता है।
  • रुबेला विकसित हो रहे भ्रूण में विसंगतियाँ भी पैदा कर सकता है। वस्तुतः जन्मजात रुबेला सिंड्रोम (Congenital Rubella Syndrome- CRS) उन महिलाओं के बच्चों में होने की संभावना ज़्यादा होती है जो गर्भावस्था के पहले 3 महीनों के दौरान इससे संक्रमित हुई हों।
  • CRS के लक्षणों में बहरापन, अंधापन, दिल की विकृतियाँ और मानसिक विकास में कमी शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू

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