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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण एशिया का “नया” स्वरूप

  • 23 Apr 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी की कॉमनवेल्थ हेड्स ऑफ गवर्नमेंट बैठक में हिस्सा लेने के संदर्भ में भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति की संक्षिप्त समीक्षा की जानी आवश्यक है।

भारत की विदेश नीति के कुछ महत्त्वपूर्ण घटक

  • गुटनिरपेक्षता आंदोलन (NAM): ऐतिहासिक रूप से, भारत ने शीत युद्ध के दिनों में संयुक्त राज्य अमेरिका अथवा रूस में से किसी भी गुट में शामिल होने से इनकार कर दिया था तथा इसके सभी सदस्य-राष्ट्रों द्वारा नीति स्वायत्ता की पैरोकारी की गई थी।
  • नेबरहुड फर्स्ट’: प्रधानमंत्री द्वारा इस नीति को प्रस्तावित किया गया था जिसके तहत यह प्रस्तावित किया गया कि भारत के पड़ोसी देशों को राजनैतिक एवं कूटनीतिक रूप से प्राथमिकता दी जाएगी।
  • एक्ट ईस्ट नीति- इस नीति के साथ ही भारत द्वारा आसियान तथा अन्य पूर्वी एशियाई देशों में अधिक अग्रसक्रिय भूमिका अपनाने पर बल दिया गया।
  • इंडियन ओशन आउटरीच: इस नीति में भारत के द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में इसके समुद्री पड़ोसियों के साथ अधिक आर्थिक एवं सुरक्षा सम्बन्धी सहयोग को प्रस्तावित किया गया।

♦ प्रधानमंत्री द्वारा सभी पड़ोसी देशों की यात्रा की गई तथा उन्हें भारत का साथ एवं सहायता के प्रति आश्वस्त भी किया गया। 

दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों की वर्तमान स्थिति 

  • श्रीलंका: शुरुआत में भारत - श्रीलंका के बीच संबंधों में गर्माहट थी लेकिन वहाँ की घरेलू राजनितिक परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण भारत के साथ उसके संबंध भी प्रभावित हो रहे हैं।
  • नेपाल: कुछ समय पहले नेपाल में भारत की उग्र रूप से आलोचना करने वाला दल राजनैतिक बहुमत के साथ सत्तासीन हुआ है। हालाँकि नेपाल के प्रधानमन्त्री की हालिया भारत यात्रा से संबंधों में सुधार के संकेत प्राप्त हुए हैं।
  • सेशेल्स: सोशेल्स में भारत द्वारा सैन्य सुविधा निर्मित करने के प्रयासों का विपक्षियों द्वारा पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है।
  • इसके साथ ही, मालदीव में भारत की साख पहले से कमज़ोर है।
  • बांग्लादेश एवं अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत के सुरक्षा सहयोग के कारण संबंध प्रगाढ़ हुए हैं।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ 

  • चीन की बढ़ती पैठ: चीन की मंशा एवं क्षमता भारत के लिये एक चुनौती बन चुकी है क्योंकि दक्षिण एशिया में चीन के प्रवेश के साथ ही अन्य छोटे देश भारत के साथ अपने कारोबार में इस प्रतिस्पर्द्धा का फायदा उठाएंगे।
  • आतंकवाद एवं पाकिस्तान पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण भारत अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में कम सक्रिय रूप से कार्य कर पाया है।
  • दक्षिण एशिया में भारत का संरचनात्मक तथा भौगोलिक प्रभुत्व भारत के पड़ोसियों को उससे जुड़ने की राह में अवरोध उत्पन्न कर रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, दक्षिण एशियाई राष्ट्र राजनैतिक रूप से नाजुक मोड़ पर हैं जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र में आर्थिक परियोजनाएँ आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। इसके चलते इस क्षेत्र में भारत के आर्थिक लाभ के लिये अधिक संभावनाएँ उपलब्ध नहीं हैं।

आवश्यक कदम

  • भारत की नीति में ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन’ पर अधिकाधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह भारत को दक्षिण एशिया में अपनी बंगाल की खाड़ी से संबंधित पहचान का लाभ उठाने में मदद कर सकता है।
  • रूस-चीन- पाकिस्तान के उभरते त्रिभुज का सामना करने के लिये भारत को अधिक सृजनात्मक तथा नूतन रणनीति का निर्माण करना होगा।
  • सरकार की प्रमुख पहलों पर संस्थागत समन्वय एवं त्वरित कार्यवाही आवश्यक है।
  • एक राष्ट्रीय स्तर के सुरक्षा सिद्धांत के साथ निवेश एवं बाज़ार उदारीकरण के माध्यम से आर्थिक मोर्चे पर अगुआई से ही दक्षिण एशिया में भारत नेतृत्व की भूमिका में आ सकता है।
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