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दिवाली के पटाखों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश

  • 25 Oct 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली के दौरान उपयोग किये जाने वाले पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे से जुड़े उद्योगों के अधिकारों तथा जनता के स्वास्थ्य के मध्य सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न किया है। 

निर्णय से जुड़े प्रमुख बिंदु

  • पटाखे जलाने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय-सीमा तय की है जो कि इस प्रकार है-
    ♦ दिवाली के दिन 8 PM से 10 PM।
    ♦ क्रिसमस और नए साल की पूर्व संध्या पर 11:55 PM से 12:30 AM।
  • पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) द्वारा पटाखों में लिथियम, आर्सेनिक, लेड और पारा जैसे प्रतिबंधित रसायनों की उपस्थिति का परीक्षण किया जाएगा।
  • PESO यह सुनिश्चित करेगा कि बाज़ार में केवल ऐसे पटाखे ही उपलब्ध हों जिनसे उत्पन्न शोर का डेसिबल निर्धारित डेसिबल से ज़्यादा न हो।

क्यों होता है पटाखों के जलने से प्रदूषण?

  • पटाखों के जलने पर उनमें उपस्थित मैग्नीशियम और एल्युमीनियम जैसे रासायनिक लवणों के कारण चमक उत्पन्न होती है, जबकि इसमें ईंधन के रूप में गन पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका निर्माण चारकोल और सल्फर से किया जाता है।
  • जब पटाखों को जलाया जाता है तो वे सभी लवण जो रंग उत्पन करते हैं, सीधे पीएम 2.5 और पीएम 10 में बदल जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, गन पाउडर में जो सल्फर मौजूद होता है वह सल्फर-डाइऑक्साइड में बदल जाता है जो कि एक विषाक्त गैस है।
  • आश्चर्यजनक है कि वर्ष 2017 में पटाखों के अधिक उपयोग के बावजूद भी दिवाली के दिन पिछले वर्ष की तुलना में प्रदूषण का स्तर कम रहा। 
  • इसका कारण यह है कि शीत प्रदूषण का स्तर कई अन्य कारकों (जैसे- गंगा के मैदानी क्षेत्रों में धान की फसल में लगने वाली आग, जलावन के लिये डीज़ल का उपयोग करना और ठंडा मौसम जो प्रदूषकों के फैलाव में अवरोध उत्पन्न करता है) से भी प्रभावित होता है। ध्यातव्य है कि ये कारक साल-दर-साल परिवर्तित होते रहते हैं।
  • पटाखों में बेरियम साल्ट के प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
  • कम उत्सर्जन वाले पटाखों (ग्रीन क्रैकर्स) के प्रयोग पर भी जोर दिया गया है जो PM को 30-35% तक कम कर देगा तथा नाइट्रस ऑक्साइड तथा सल्फर डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में काफी कमी लाएगा।
  • ऑनलाइन इ-कॉमर्स की वेबसाइट के द्वारा पटाखों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।

पृष्ठभूमि

  • 9 अक्तूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली के पहले दिल्ली एनसीआर इलाके में पटाखों की बिक्री को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया था।
  • कोर्ट ने यह हवाला दिया था कि संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) आम जनता तथा पटाखा निर्माताओं दोनों के लिये लागू होता है। इसलिये पटाखे के देशव्यापी प्रतिबंध पर विचार करते हुए संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।

ग्रीन क्रैकर्स

  • ग्रीन क्रैकर्स ऐसे पटाखे हैं जिन्हें फोड़ने के पश्चात् हानिकारक रसायनों तथा गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है। ऐसे पटाखों में हानिकारक संघटकों का प्रयोग नहीं किया जाता है जो वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।
  • सेंट्रल इलेक्ट्रोकेमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (CECRI), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल केमिकल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने कुछ 'ग्रीन क्रैकर्स' पटाखे, जैसे- सेफ वॉटर रिलीज़र (SWAS), सेफ थर्माइट क्रैकर (STAR) तथा सेफ मिनिमल एल्युमीनियम (SAFAL) विकसित किये हैं।

निष्कर्ष

इस प्रतिबंध का प्रभावी या अप्रभावी सिद्ध होना आगे का विषय है। परंतु पिछले साल लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद भी प्रदूषण का उच्च स्तर यह दर्शाता है कि प्रदूषण के अन्य स्रोत जैसे- वाहनों से होने वाले उत्सर्जन, उद्योगों से निकलने वाली दूषित गैसें तथा अन्य कारकों को सरकार द्वारा नज़रंदाज़ किया गया है। अतः केवल पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर प्रदूषण के स्तर में वांछित कमी की इच्छा करना प्रासंगिक प्रतीत नहीं होता है। यह आवश्यक है कि सरकार वर्ष भर अन्य स्रोतों के माध्यम से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण करने हेतु भी इसी प्रकार के ठोस कदम उठाए।

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