भारतीय राजव्यवस्था
प्रतिष्ठा का अधिकार बनाम गरिमा का अधिकार
- 20 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली के एक न्यायालय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री द्वारा एक पत्रकार के खिलाफ उसके ट्वीट्स को लेकर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए दायर किये गए आपराधिक मानहानि के मुकदमे को खारिज़ कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
न्यायालय द्वारा लिया गया संज्ञान:
- न्यायालय ने कार्यस्थल पर होने वाले शोषण के बारे में संज्ञान लिया, क्योंकि आरोपी पत्रकार के खिलाफ यौन उत्पीड़न की घटना के समय यौन उत्पीड़न संबंधी शिकायत निवारण तंत्र की कमी थी।
- यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशाखा दिशा-निर्देश जारी करने और कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013) को लागू करने से पहले का मामला था।
न्यायालय का निर्णय:
- महिलाओं के जीवन और गरिमा के अधिकार की कीमत पर प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा नहीं की जा सकती।
- प्रतिष्ठा का अधिकार:
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न अंग है।
- इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 499 (आपराधिक मानहानि) का अर्थ भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना नहीं है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि विभिन्न सामाजिक हितों को जनता के साझा मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित करके सेवा प्रदान की जाए।
- जीवन का अधिकार (अनुच्छेद-21):
- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।
- यह हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार:
- वर्ष 1978 के मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 को एक नया आयाम दिया और यह माना कि जीने का अधिकार केवल एक शारीरिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसके दायरे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
- महिला को अपनी पसंद के किसी भी मंच पर दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है।
मानहानि:
क्या है मानहानि?
- भारत में मानहानि एक सिविल दोष (Civil Wrong) और आपराधिक कृत्य दोनों हो सकते हैं।
- इन दोनों के मध्य अंतर इनके द्वारा प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों में अंतर्निहित है।
- सिविल दोष के अंतर्गत मुआवज़े के माध्यम से किसी हानि की क्षतिपूर्ति की जाती है और कृत्य में सुधार का प्रयास किया जाता है, जबकि मानहानि के आपराधिक मामलों में किसी गलत कृत्य के लिये अपराधी को दंडित कर दूसरे लोगों को ऐसा न करने के लिये संदेश देने की वकालत की जाती है।
मानहानि संबंधी कानून:
- भारतीय कानूनों में आपराधिक मानहानि को विशेष रूप से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 के तहत अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि नागरिक मानहानि ‘अपकृत्य कानून’ (कानून का एक क्षेत्र जो गलतियों को परिभाषित करने के लिये अन्य कानूनों पर निर्भर नहीं होता है, लेकिन इसे गलत तरीके से परिभाषित करने करने वाले मामलों पर संज्ञान लेता है) पर आधारित होता है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार, जो कोई भी बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृष्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति पर कोई लांछन लगाता या प्रकाशित करता है कि उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँचे या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए ऐसे लांछन लगाता या प्रकाशित करता है जिससे उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँचे, तो तत्पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके द्वारा उस व्यक्ति की मानहानि करना कहलाएगा।
अपवाद:
- धारा 499 के अनुसार, सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिये अपेक्षित है, किसी ऐसी बात का लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ति के संबंध में सत्य हो, मानहानि नहीं है, | यह बात लोक कल्याण के लिये है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न है ।
दंड:
- भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि के लिये दो वर्ष तक का साधारण कारावास और जुर्माना या दोनों को एक साथ लगाने का भी प्रावधान किया गया है।
वैधता:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 के सुब्रहमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले में आपराधिक मानहानि कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।