भारतीय राजव्यवस्था
उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठें
- 30 Sep 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने न्यायपालिका के समक्ष लंबित मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिये उच्चतम न्यायालय की चार क्षेत्रीय पीठों के गठन का सुझाव दिया है।
पृष्ठभूमि
- विश्व का पहला संवैधानिक न्यायालय वर्ष 1920 में यूरोप के ऑस्ट्रिया में और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी में स्थापित किया गया था।
- वर्तमान में 55 देशों में संवैधानिक न्यायालय हैं, जिनमें से अधिकांश यूरोपीय या नागरिक कानून न्यायालय हैं।
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी भारतीय गणतंत्र के शुरुआती दशकों में प्रमुख रूप से एक संवैधानिक न्यायालय के तौर पर ही कार्य किया और इसके द्वारा प्रतिवर्ष 70 से 80 निर्णय दिये जाते थे।
- लेकिन लंबित वादों की बड़ी संख्या के चलते संवैधानिक पीठ द्वारा निपटाए जाने वाले मामलों की संख्या अब घटकर प्रतिवर्ष 10-12 हो गई है।
लंबित मामलों की समस्या
वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में 65,000 से अधिक मामले लंबित हैं और अपीलों के निपटान में कई वर्ष लग जाते हैं। बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने के निम्नलिखित कारण है-
- अधिक कार्यभार के कारण सभी प्रकार के मामलों को निपटाने के लिये प्राय: न्यायाधीश दो या तीन न्यायाधीशों वाली बेंच में बैठते हैं जिनमें फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने या हटाने अथवा पुलिस आयुक्त द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग जैसे कई गैर-संवैधानिक और अपेक्षाकृत छोटे मामले शामिल होते हैं।
- कई बार तो उच्चतम न्यायालय के समक्ष सरदारों पर बनने वाले चुटकुलों पर प्रतिबंध लगाने या मुस्लिमों को देश से बाहर भेज दिया जाना चाहिये जैसी मांगों पर भी जनहित याचिकाएँ आती हैं।
- लंबित मामलों का कार्यभार इस कारण भी है कि भारत का उच्चतम न्यायालय शायद दुनिया का सबसे शक्तिशाली न्यायालय है, जिसका क्षेत्राधिकार बहुत व्यापक है।
- यह केंद्र और राज्यों के बीच अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच के मामलों को सुनता है, नागरिक और आपराधिक मुकदमों पर अपील सुनता है और राष्ट्रपति को विधिक मामलों पर सलाह भी देता है।
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के सवाल पर कोई भी व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय में जा सकता है।
क्या है संवैधानिक पीठ?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिये संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पाँच न्यायाधीश होंगे।
- हालाँकि इसमें पाँच से अधिक न्यायाधीश भी हो सकते हैं जैसे- केशवानंद भारती केस में गठित संवैधानिक पीठ में 13 न्यायाधीश थे।
विधि आयोग की सिफारिशें
- 10वें विधि आयोग (वर्ष 1984) की 95वीं रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत के उच्चतम न्यायालय के दो प्रभाग होने चाहिये। एक अपीलीय प्रभाग और दूसरा संवैधानिक प्रभाग, जिनमें केवल संवैधानिक कानून से जुड़े मामलों की ही सुनवाई होगी।
- 11वें विधि आयोग (वर्ष 1988) ने 125वीं रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय को दो हिस्सों में विभाजित करने की सिफारिश को लागू किये जाने का समर्थन किया।
- इसके बाद 18वें विधि आयोग ने 229वीं रिपोर्ट (वर्ष 2009) में सिफारिश की कि संवैधानिक और अन्य संबद्ध मुद्दों से निपटने के लिये दिल्ली में एक संविधान पीठ स्थापित की जाए।
- इसके अलावा विशेष क्षेत्र के उच्च न्यायालयों के आदेश/निर्णय से उत्पन्न सभी अपीलीय मामलों से निपटने के लिए उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली, दक्षिणी क्षेत्र में चेन्नई/हैदराबाद, पूर्वी क्षेत्र में कोलकाता तथा पश्चिमी क्षेत्र में मुंबई में अपीलीय बेंच स्थापित किये जाए।
- ध्यातव्य है कि विश्व के कई देशों में अपीलीय कोर्ट हैं जो गैर-संवैधानिक विवादों और अपील संबंधी मामलों का निपटारा करते हैं।
क्षेत्रीय पीठें सृजित करने हेतु तर्क
- अनुच्छेद 39ए कहता है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे जिससे समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह विशिष्टतया यह सुनिश्चित करने के लिये कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
- लेकिन किसी मामले की सुनवाई के लिये दिल्ली जाना या उच्चतम न्यायालय के वकील की फीस अदा करना अधिकांश वादियों के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है।
- अनुच्छेद 130 के अनुसार राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ भारत का मुख्य न्यायाधीश दिल्ली में या किसी अन्य स्थान पर भी सुनवाई कर सकता हैं।
- उच्चतम न्यायालय के नियम भी मुख्य न्यायाधीश को भारत में बेंच गठित करने की शक्ति देते हैं।
- वर्ष 2004, वर्ष 2005 और वर्ष 2006 में संसद की स्थायी समितियों ने सिफारिश की थी कि उच्चतम न्यायालय की बेंच कहीं और स्थापित की जाए।
- वर्ष 2008 में समिति ने सुझाव दिया कि परीक्षण के लिये कम-से-कम एक पीठ चेन्नई में स्थापित की जाए।
- लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कहा कि यह उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा को कमज़ोर करेगा।