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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

हथकरघा क्षेत्र में सुधार

  • 09 Dec 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, हथकरघा  उद्योग, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस

मेन्स के लिये:

हथकरघा क्षेत्र : चुनौतियाँ एवं सुधार 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने हथकरघा क्षेत्र में महामारी से उत्पन्न मुद्दों को बढ़ावा देने और उनका समाधान करने के लिये कई कदम उठाए हैं।

  • एक टेक्सटाइल को केवल बुनाई के लिये इस्तेमाल होने वाले धागे या उससे बने कपड़े के रूप में समझा जा सकता है।
  • जबकि, हथकरघा टेक्सटाइल के निर्माण का एक भाग है, इसमें बुनाई में श्रमिक और मशीनें शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
    • अनुरोध करने वाले राज्य: वस्त्र मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अपने राज्य हथकरघा निगमों/सहकारिता/एजेंसियों से हथकरघा बुनकरों/कारीगरों के पास तैयार इन्वेंट्री की खरीद करने का अनुरोध किया है।
    • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस ( GeM) पोर्टल पर बुनकरों का पंजीकरण: सरकार द्वारा गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस से बुनकरों को जोड़ने के लिये कदम उठाए गए हैं।
      • इस कदम से बुनकर अपने उत्पादों को सीधे विभिन्न सरकारी विभागों और संगठनों को बेचने में सक्षम होंगे।  
      • अब तक लगभग 1.50 लाख बुनकरों को GeM पोर्टल से जोड़ा जा चुका है।
    • हथकरघा उत्पादक कंपनियों की स्थापना: उत्पादकता, विपणन क्षमताओं को बढ़ाने और बेहतर आय सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न राज्यों में 128 हथकरघा उत्पादक कंपनियों का गठन किया गया है।
    • आसान ऋण नीति: रियायती ऋण/बुनकर मुद्रा योजना के तहत वित्तीय सहायता, ब्याज सबवेंशन/रियायत, क्रेडिट गारंटी प्रदान की जाती है।
    • डिज़ाइन संसाधन केंद्र: नई दिल्ली, मुंबई आदि जैसे प्रमुख शहरों में बुनकर सेवा केंद्रों में डिज़ाइन संसाधन केंद्र (DRC) स्थापित किये गए हैं।
      • इन DRC का उद्देश्य हथकरघा क्षेत्र में डिज़ाइन-उन्मुख उत्कृष्टता का सृजन और निर्माण करना है।
      • इसमें बुनकरों, निर्यातकों, विनिर्माताओं और डिज़ाइनरों को नमूना/उत्पाद सुधार तथा विकास के लिये डिज़ाइन रिपॉजिटरी तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने की भी परिकल्पना की गई है।
    • हथकरघा निर्यात संवर्द्धन परिषद (HEPC) की स्थापना: हथकरघा उत्पादों के विपणन को बढ़ावा देने के लिये हथकरघा निर्यात संवर्द्धन परिषद (Handloom Export Promotion Council- HEPC) वर्चुअल मोड में अंतर्राष्ट्रीय मेलों का आयोजन करती रही है। 
      • 23 ई-कॉमर्स संस्थाओं को हथकरघा उत्पादों के ई-विपणन को बढ़ावा देने के कार्य में लगाया गया है।
    • कच्चे माल की आपूर्ति योजना: हथकरघा बुनकरों को सूत उपलब्ध कराने के लिये  यह योजना पूरे देश में लागू की जा रही है।
      • योजना के तहत वस्त्र क्षेत्र में कच्चे माल के लिए प्रतिपूर्ति और मूल्य सब्सिडी प्रदान की जाती है।
    • बुनकरों को शिक्षित करना: बुनकरों को उनके कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये विभिन्न हथकरघा योजनाओं का लाभ उठाने के लिये शिक्षित करने हेतु  विभिन्न राज्यों में कई चौपालों का आयोजन किया गया।
  • वस्त्र उद्योग का महत्त्व:
    • यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
    • भारत में कच्चे माल और श्रम की प्रचुर आपूर्ति के निम्नलिखित कारण है:
      • कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है जिसकी वैश्विक उत्पादन में  25% हिस्सेदारी  है।
      • चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक देश है।
      • मानव निर्मित रेशों (पॉलिएस्टर और विस्कोस) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत में एक विस्तृत घरेलू बाज़ार उपलब्ध है।

भारतीय वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ

  • अत्यधिक खंडित: भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है और इसमें मुख्य तौर पर असंगठित क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्यम उद्योगों का प्रभुत्व देखने को मिलता है।
  • पुरानी तकनीक: भारतीय वस्त्र उद्योग के समक्ष नवीनतम तकनीक तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है (विशेषकर लघु उद्योगों में) और ऐसी स्थिति में यह अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में वैश्विक मानकों को पूरा करने में विफल रहा है।
  • कर संरचना संबंधी मुद्दे: कर संरचना जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वस्त्र उद्योग को महँगा एवं अप्रतिस्पर्द्धी बनाती है। 
  • स्थिर निर्यात: इस क्षेत्र का निर्यात स्थिर है और पिछले छह वर्षों से 40 अरब डॉलर के स्तर पर बना हुआ है।
  • व्यापकता का अभाव: भारत में परिधान इकाइयों का औसत आकार 100 मशीनों का है जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति कारखाना औसतन कम-से-कम 500 मशीनें हैं।
    • विदेशी निवेश की कमी: ऊपर दी गई चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में विदेशी निवेशक वस्त्र क्षेत्र में निवेश करने के बारे में बहुत उत्साहित नहीं हैं जो कि चिंता का क्षेत्र भी है।
      • हालाँकि इस क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों के दौरान निवेश में तेज़ी देखी गई है, इस उद्योग ने अप्रैल 2000 से दिसंबर 2019 तक केवल 3.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया।

आगे की राह

  • एक संगठित क्षेत्र की ओर: भारत वस्त्र उद्योग के लिये मेगा अपैरल पार्क और सामान्य बुनियादी ढाँचे की स्थापना करके इस क्षेत्र को संगठित कर सकता है।
    • इससे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होगी और भारतीय खिलाड़ियों को संचालन में अधिकतम दक्षता के साथ तेज़ी से तथा कम लागत पर उत्पादन करने में मदद मिलेगी।
  • उद्योग के आधुनिकीकरण को सुगम बनाना: अप्रचलित मशीनरी और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण पर ध्यान देना चाहिये। यह वस्त्र उद्योग के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है तथा इस तरह निर्यात भी बढ़ा सकता है।
    • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS) और एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों को सबसे प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिये।
  • तर्कसंगत श्रम कानूनों की आवश्यकता: कई उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ पैनलों ने फर्म के आकार की सीमा संबंधी शर्तों को हटाने और ‘हायरिंग एंड फायरिंग’ (Hiring and Firing) प्रक्रिया में लचीलेपन की अनुमति देने की सिफारिश की है।
    • इस प्रकार ऐसे श्रम कानूनों के शीघ्र युक्तिकरण की आवश्यकता है।
  • निर्यात बढ़ाना: भारत को निर्यात अवसरों को बढ़ाने के लिये विकसित देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने की भी आवश्यकता है।
    • इस तरह के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और UK जैसे बड़े वस्त्र बाज़ारों में शुल्क मुक्त पहुँच हासिल करने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत-पीआईबी

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