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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कॉलेजियम प्रणाली की समीक्षा

  • 06 Jul 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?

  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहते हुए भारतीय न्यायपालिका की अवमानना करने हेतु न्यायाधीश सी.एस. कर्णन को 9 मई 2017 को छह माह की कैद की सज़ा सुनाई गई थी, परन्तु इससे स्वयं सर्वोच्च न्यायालय में विवाद छिड़ गया है कि पुरानी हो चुकी न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली की गुणवत्ता को संज्ञान में लिया जाना चाहिये अथवा नहीं।
  • विदित हो की अपने एक निर्णय में न्यायाधीश जे.चेलामेश्वर का कहना था कि न्यायाधीश कर्णन की एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति करना, इस प्रणाली की असफलता का प्रतीक है। साथ ही न्यायाधीश चेलामेश्वर ने यह बताया कि न्यायाधीश कर्णन का मामला ऐसा अकेला मामला नहीं है।
  • दरअसल, न्यायपालिका के अन्य सदस्यों के आचरण की ऐसी कई अन्य घटनाएँ भी मौजूद हैं, जिससे निश्चित ही इस व्यवस्था की कमियों का पता चलता है। 

क्या है कॉलेजियम व्यवस्था ?

  • देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है।
  • 1990 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बाद यह व्यवस्था बनाई गई थी। कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य‍न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है।
  • सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • हाईकोर्ट के कौन से जज पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम व्य‍वस्था का उल्लेख न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधन प्रावधान में।

“राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग” के सबंध में विवाद

  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
  • वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को यह कहते हुए असंवैधानिक करार दिया था कि ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ अपने वर्तमान स्वरूप में न्यायपालिका के कामकाज में एक हस्तक्षेप मात्र है।
  • उल्लेखनीय है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाले इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केन्द्रीय विधि मंत्री और दो जानी-मानी हस्तियाँ भी इस आयोग का हिस्सा थीं।
  • आयोग में जानी-मानी दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोक सभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल थे।
  • आयोग के सम्बन्ध में एक दिलचस्प बात यह थी कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफ़ारिश नहीं करेगा।
  • गौरतलब है कि शीर्ष न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में व्यापक पारदर्शिता लाने की बात हमेशा से हो रही है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अभी तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है और शीर्ष न्यायलयों में न्यायधीशों के बहुत से पद रिक्त हैं।
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