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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मौद्रिक नीति संचरण पर RBI की अध्ययन रिपोर्ट

  • 31 Mar 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के विकास अनुसंधान समूह (Development Research Group-DRG) के एक अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार वित्तीय प्रणाली में घर्षण (Friction) कम होने पर मौद्रिक नीति संचरण में सुधार होता है। 
  • DRG को RBI द्वारा तात्कालिक मुद्दों पर त्वरित नीति-उन्मुख अनुसंधान करने के लिये अपने आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के तहत गठित किया जाता है। 

क्या था DRG का अध्ययन?

  • 'भारत में मौद्रिक नीति संचरण में वित्तीय घर्षण की भूमिका' नामक DRG के अध्ययन में एक अपूर्ण प्रतिस्पर्द्धी बैंकिंग क्षेत्र का मॉडल विकसित किया गया और मौद्रिक नीति संचरण में विभिन्न वित्तीय घर्षणों की भूमिका की जाँच की गई। 
  • इस अध्ययन में पाया गया कि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के कमज़ोर संचरण के पीछे वित्तीय बाजारों में घर्षण प्रमुख कारण है। 
  • DRG के अनुसार जमाकर्ता आधार (Depositors’ Base) के रूप में वित्तीय समावेशन को बढ़ाकर और परिवारों के लिये कोलैटरल बाधाओं (collateral constraints) को कम कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। 
  • ऋण लेने के लिये ऋणकर्त्ता द्वारा ऋणदाता के पास गिरवी रखी गई संपत्ति अथवा परिसंपत्ति को कोलैटरल कहा जाता है।
  • आसान कोलैटरल मानदंड द्वारा परिवारों की उधार लेने की क्षमता में इज़ाफा कर मौद्रिक नीति संचरण में सुधार किया जा सकता है। 
  • किसी अर्थव्यवस्था में वित्तीय लेन-देन की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागतों को फ्रिक्शन कॉस्ट कहा जाता है। एक घर्षणरहित (Frictionless) वित्तीय व्यवस्था में लेन-देन लागतें शून्य होती हैं।

क्या है इस घर्षण का कारण?

  • सूचनाओं की उपलब्धता के संदर्भ में विषमता की उपस्थिति, अनुबंधों की सीमित प्रवर्तन क्षमता तथा आर्थिक एजेंटों के बीच मौजूद विविधता से वित्तीय बाज़ार संबंधी लेन-देनों में घर्षण पैदा होता है जो मौद्रिक नीति संचरण तंत्र में समायोजन और इसके प्रसार की गति को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • DRG ने ऋण बाज़ार में घर्षण मापदंडों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आठ तिमाहियों की अवधि के लिये सिमुलेशन प्रयोग किया और यह पाया कि जैसे-जैसे ट्रांजेक्सन कॉस्ट कम होती गई वैसे-वैसे मौद्रिक नीति संचरण में सुधार देखा गया। 
  • DRG के अनुसार क्रेडिट चक्र को सुचारु बनाने के लिये नीतिगत ब्याज दर अर्थात् रेपो रेट में समायोजन मुद्रास्फीति और उत्पादन में अस्थिरता को बढ़ा देता है।
  • इसके बजाय मुद्रास्फ़ीति स्थिरीकरण RBI के लिये अधिक वांछनीय नीतिगत विकल्प है क्योंकि यह कल्याणकारी नुकसान (Welfare Loss) को और कम करता है।
  • निष्कर्षत: मौद्रिक नीति के ज़रिये वित्तीय स्थिरता को लक्षित करना आर्थिक स्थिरीकरण के उद्देश्य से उपयुक्त नहीं हो सकता है।

मौद्रिक नीति संचरण (Monetary Policy Transmission-MPT)

  • मौद्रिक नीति संचरण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा लिये गए मौद्रिक नीतिगत निर्णयों का सम्पूर्ण वित्तीय व्यवस्था में संचार होता है। इसके प्रभाव अर्थव्यवस्था में ब्याज दर, मुद्रास्फीति जैसे कारकों के माध्यम से परिलक्षित होते हैं। 
  • RBI द्वारा इसके लिये कई नीतिगत संकेतों का प्रयोग किया जाता है, जिनमे रेपो रेट (जिसे नीतिगत दर भी कहा जाता है) सर्वप्रमुख संकेत है।
  • रेपो रेट में परिवर्तन अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों में परिवर्तन के माध्यम से निवेश, बचत आदि की दरों को प्रभावित करता है।
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