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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

निर्भया कोष से संबंधित समस्याएँ और आगे की राह

  • 23 Sep 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया कोष के तहत यौन हिंसा पीडितों को दिये जाने वाले मुआवज़े को लेकर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि इस कोष के तहत भुगतान के संबंध में अनिश्चितताएँ बनी हुई हैं।
  • न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ का कहना है कि पीड़ितों के मुआवज़े के लिये निर्धारित धनराशि के वितरण और प्रबंधन की समेकित प्रणाली का अभाव है।

मुआवज़े को लेकर समेकित प्रणाली का अभाव क्यों?

  • पीठ ने कहा कि इस मामले में बहुत अधिक भ्रामक स्थिति है, क्योंकि इससे तीन मंत्रालय गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय जुड़े हैं, परंतु वे यह नहीं जानते कि करना क्या है।
  • यद्यपि केंद्र सरकार इस योजना के तहत राज्यों को धन मुहैया करा रही है लेकिन यौन हिंसा पीडितों को मुआवज़ा कब और किस चरण में देना है इस बारे में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है और यह बहुत ही निराशाजनक स्थिति है।
  • इस कोष के तहत यौन हिंसा पीड़ितों को आर्थिक सहयोग प्रदान करने से संबंधित नियमों में कोई एकरूपता नहीं है। गोवा जैसे राज्य में ऐसे मामले में दस लाख रुपए का प्रावधान है जबकि कुछ अन्य राज्यों में एक लाख रुपए ही देने की व्यवस्था है।

क्या है निर्भया कोष?

  • देश को हिला देने वाले 2012 के निर्भया गैंगरेप कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक कोष की ज़रूरत महसूस की गई। तत्पश्चात् संप्रग सरकार ने वर्ष 2013 में निर्भया कोष का गठन किया था और एक हज़ार करोड़ रुपए की शुरुआती राशि इसमें डाली गई थी। बाद में 2014-15 और 2015-16 में भी एक-एक हज़ार करोड़ रुपए इसमें और डाले गए।
  • वर्ष 2015 में सरकार ने गृह मंत्रालय की जगह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्भया कोष के लिये नोडल एजेंसी बना दिया था, क्योंकि तब गृह मंत्रालय इस कोष का सिर्फ एक फीसद ही इस्तेमाल कर पाया था। 

आगे की राह

  • महिलाओं की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के उद्देश्य से गठित निर्भया कोष का बड़ा हिस्सा सरकारी उदासीनता के कारण अभी तक खर्च नहीं किया जा सका है।
  • विदित हो कि कोष का जो पैसा खर्च भी किया गया है वह किन्हीं अन्य मदों पर व्यय हुआ है न कि महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े इंतजामों पर।
  • ऐसे में सरकार को इस बारे में राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी एक प्रभावी योजना बनानी चाहिये।
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