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भारतीय अर्थव्यवस्था

विलफुल डिफॉल्टर टैग के बिना बिजली कंपनियाँ NCLT में शामिल नहीं होंगी

  • 04 Jun 2018
  • 5 min read

संदर्भ

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया है कि एक बिजली कंपनी को ऋण चुकाने के लिये तब तक दिवालियापन अदालत (bankruptcy court) में नहीं ले जाया जा सकता है जब तक कि उसे विलफुल डिफाल्टर घोषित नहीं किया जाता है| न्यायालय ने वित्त सचिव को जून में बिजली उत्पादकों से मिलकर उनसे बातचीत करने के निर्देश दिये हैं ताकि वे वित्तीय संकटों पर चर्चा कर सकें।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • यह निर्णय रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के फरवरी के निर्देश के अनुपालन के क्रम में दिया गया है जो कि ऋणदाताओं को व्यतिक्रम के लिये 180 दिनों के भीतर संकटग्रस्त ऋणों के समाधान के लिये कहता है, जिसमें विफल होने पर कंपनी को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) को संदर्भित किया जाना था।
  • यह बिजली क्षेत्र की कंपनियों सहित सभी क्षेत्रों के लिये 2,000 करोड़ रुपए से ऊपर के ऋणों पर लागू था जो बिजली खरीद समझौतों (PPA) पर हस्ताक्षर करने में असमर्थता, सरकारी मंज़ूरी में देरी और कोयले की अनुपलब्धता जैसे कई कारकों के कारण पीड़ित थे।
  • एक विलफुल डिफॉल्टर वह होता है जिसके पास ऋण चुकाने की सामर्थ्य होती है फिर भी वह जानबूझकर ऋण नहीं चुकाना चाहता| 
  • एसएमए -1 या एसएमए -2 श्रेणी में 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक बकाया वाली कंपनियों को वर्गीकृत किया गया है जिसका मतलब है कि उन्होंने देय तिथि 30 से 60 दिनों के भीतर अपनी मासिक किस्तों का भुगतान नहीं किया है|
  • एसएमए का तात्पर्य विशेष उल्लेख खाते से है। अदालत के फैसले से बैंकों को संकटग्रस्त खातों के लिये समाधान खोजने को अधिक समय मिलेगा।

स्थायी समिति की रिपोर्ट 

  • आरबीआई सर्कुलर ने 1 मार्च को 180 दिनों की अवधि के लिये संदर्भ तिथि के रूप में निर्धारित किया था और इस प्रकार दिवालियापन अदालत के बाहर तनावग्रस्त खातों को हल करने के लिये बैंकों के पास अगस्त के अंत तक का समय था।
  • साथ ही, भारत की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 22% पहले ही गैर-निष्पादित संपत्ति के रूप में गिना जाता है।
  • आरबीआई के आँकड़ों के मुताबिक अप्रैल में बिजली क्षेत्र में भारत के बैंकों का अनाश्रयता 5.19 लाख करोड़ रुपए थी।
  • इंडियन पावर प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिका के जवाब में उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया।
  • अदालत ने वित्त सचिव से बिजली उत्पादकों की ‘शिकायत पर विचार’ करने के लिये कहा और यह भी कहा कि समस्या का कोई समाधान संभव है या नहीं, इसपर विचार किया जाए|
  • खंडपीठ ने तनावग्रस्त ऋण के संबंध में मार्च 2018 में प्रस्तुत ऊर्जा पर स्थायी समिति की 37वीं रिपोर्ट में किये गए एक अवलोकन को भी संदर्भित किया।

बैठक को रोक दिया जाना 

  • एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स के अनुसार, नए आरबीआई मानदंडों के कारण 70,000 मेगावाट उत्पादन क्षमता को ऋणशोधन के खतरे का सामना करना पड़ता है।
  • हाल ही में बिजली क्षेत्र में तनावग्रस्त ऋण को हल करने के तरीकों को खोजने के लिये  बिजली मंत्रालय, आरबीआई और उधारदाताओं की बैठकें दो बार रद्द कर दी गई हैं|
  • बिजली क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिये सरकार और नियामकों द्वारा किये गए उपायों में 8-12 महीने लग सकते हैं, अतः बैंकों द्वारा  उत्पादकों को अधिक समय देने की ज़रूरत है।
  • उपरोक्त उद्धृत संसदीय रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली क्षेत्र दबाव में है।
  • हज़ारों मेगावाट वाले संयंत्र गंभीर वित्तीय तनाव में हैं और वर्तमान में एसएमए-1 या 2 चरण या एनपीए बनने के कगार पर हैं|
  • यह ईंधन की कमी, सब-ऑप्टीमल लोडिंग, अप्रत्याशित क्षमताओं, FSA की अनुपस्थिति और PPA की कमी आदि के कारण है।
  • इन परियोजनाओं को राष्ट्रीय ज़रूरतों और बिजली की मांग के साथ सभी आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता के आधार पर शुरू किया गया था।
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