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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

2018 तक शुरू हो जाएगा चाबहार पर परिचालन

  • 07 Aug 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?

  • ईरान में राष्ट्रपति हसन रूहानी द्वारा दूसरी बार कार्यभार संभालने पर भारत की ओर से प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के तौर पर सड़क परिवहन व राजमार्ग एवं नौवहन मंत्री नितिन गडकरी तेहरान पहुँचे हैं। भारत की ओर से यह दोहराया गया है कि वह ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये कृतसंकल्प है।
  • ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले वर्ष यानी 2018 में इस पर परिचालन आरंभ हो जाएगा। विदित हो कि भारत सरकार ने बंदरगाह के विकास के लिये छः बिलियन रुपए आवंटित किये हैं।
  • चाबहार बंदरगाह दक्षिण-पूर्वी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित है। 
  • चाबहार बंदरगाह दोनों राष्ट्रों के संबंधों एवं इस क्षेत्र में व्यापार एवं कारोबार को बढ़ावा तो देगा ही साथ ही यह भारत के लिये रणनीतिक दृष्टि से बहुत उपयोगी है।

भारत के लिये चाबहार का महत्त्व

  • मध्ययुगीन यात्री अलबरूनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार (मध्य एशिया से) भी कहा था। चाबहार का मतलब होता है चार झरने।
  • ज्ञात हो कि यहाँ से पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी महज़ 72 किलोमीटर दूर रह जाता है जिसके विकास के लिये चीन 46 अरब डॉलर (करीब 3,131 अरब रुपए) का निवेश कर रहा है।
  • चाबहार भारत के लिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के द्वार खोल सकता है। यह बंदरगाह एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने के लिहाज़ से सर्वश्रेष्ठ जगह है।
  • भारत वर्ष 2003 से इस बंदरगाह के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के प्रति अपनी रुचि दिखा रहा है लेकिन ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंधों और कुछ हद तक ईरानी नेतृत्व की दुविधा की वजह से बात आगे बढ़ने की गति धीमी रही। हालाँकि पिछले तीन वर्षों में काफी प्रगति हुई है।
  • चाबहार कई मायनों में ग्वादर से बेहतर है। चाबहार गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यह ज़मीन के साथ मुख्य भू-भाग से भी जुड़ा हुआ है। यहाँ मौसम सामान्य रहता है और हिंद महासागर से गुज़रने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहाँ से पहुँच बहुत आसान है।
  • चाबहार बंदरगाह के ज़रिये अफगानिस्तान को भारत से व्यापार करने के लिये एक और रास्ता मिल जाएगा। विदित हो कि अभी तक पाकिस्तान के रास्ते भारत-अफगानिस्तान के बीच व्यापार होता है, लेकिन पाकिस्तान इसमें रोड़े अटकाता रहता है जिससे अफगानिस्तान तो असहज महसूस करता ही है साथ ही भारत अफगानिस्तान को साधने की अपनी नीति में भी कठिनाइयाँ महसूस करता है। अतः चाबहार परियोजना भारत के लिये अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। 

चाबहार का कूटनीतिक महत्त्व
सुरक्षा की दृष्टि से चाबहार का अपना महत्त्व है। गौरतलब है कि ईरान-इराक युद्ध के समय ईरानी सरकार ने इस बंदरगाह को अपने समुद्री संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये काफी इस्तेमाल किया था। इस सबके बावजूद भारत में एक तबका है जो मानता है कि तालिबान या किसी अन्य चरमपंथी समूह ने अगर काबुल पर कब्ज़ा कर लिया तो चाबहार में भारत का पूरा निवेश डूब जाएगा।

अफगानिस्तान में भी भारत को ऐसे ही कुछ हालातों से दो-चार होना पड़ रहा है, जहाँ भारत लगभग दो अरब डॉलर (करीब 136.5 अरब रुपए) का निवेश कर भी चुका है। लेकिन उसे यह पता नहीं कि इस निवेश का कोई लाभ भी होगा या नहीं?

इन सभी आशंकाओं के बावजूद हमें चाबहार की अहमियत तो पहचाननी ही होगी। अफगानिस्तान तक सामान पहुँचाने के लिये यह सबसे बढ़िया रास्ता है, यहाँ वे तमाम सुविधाएँ  हैं, जिनकी मार्फत सिस्तान, बलूचिस्तान व खुरासान जैसे प्रांतों तक भी आसानी से व्यावसायिक पहुँच बनाई जा सकती है।

भारत का मूंदड़ा बंदरगाह यहाँ से सिर्फ 900 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसका अपना बड़ा बाज़ार है और जहाँ राजनीतिक स्थायित्व भी है। ऐसे में चाबहार मुक्त क्षेत्र में मौजूद असीमित संभावनाओं का पूरा लाभ लिया जा सकता है। संयुक्त, विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित कर यहाँ एक समृद्ध औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा सकता है जो कि भारत को जल्द से जल्द करना चाहिये।टीम दृष्टि इनपुट

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