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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कैग द्वारा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं का अवलोकन

  • 17 Aug 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों ?
हाल ही में गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में हुई घटना ने ग्रामीण भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमज़ोर प्रकृति और कुछ रेफरल अस्पतालों पर रोगियों की असाधारण भीड़ से उत्पन्न होने वाली परेशानियों का एक स्पष्ट चित्र प्रस्तुत किया है। मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन विभाग की लापरवाही के कारण हुई कई बच्चों की मौत के कारण यह संस्थान कुछ दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है, हालाँकि इस क्षेत्र में महामारी और उच्च मृत्यु दर कोई नई बात नहीं है। ये यहाँ की पुरानी विशेषताएँ हैं।

  • उल्लेखनीय है कि न केवल इस क्षेत्र के आसपास के कईं ज़िलों बल्कि इसके समीप के पड़ोसी राज्यों में भी चिकित्सा का बुनियादी ढाँचा इतना अधिक कमज़ोर है कि अंतिम उपाय के रूप में बड़ी संख्या में बीमार मरीज़ों को आस-पास के बड़े अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है।

एन.आर.एच. एम. पर कैग की रिपोर्ट 

  • मार्च 2016 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission) के तहत प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य पर आधारित नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) की रिपोर्ट में ग्रामीण भारत की चिकित्सा प्रणाली के सभी कमज़ोर पहलुओं को स्पष्ट किया गया है।
  • यदि इस संबंध में वित्तीय प्रशासन पर लेखापरीक्षा की आपत्तियों के पहलू को नज़रअंदाज़ भी कर दिया जाए, तो भी कई राज्यों की जो वास्तविक स्थिति उभर कर सामने आती है वह इस संपूर्ण स्थिति को और भी अधिक भयावह रूप प्रदान करती है।
  • वस्तुतः कईं राज्यों की चिकित्सा व्यवस्था इतनी अधिक जीर्ण अवस्था में है कि वे आवंटित धन का भी पूरी तरह से उपयोग करने में असमर्थ है।

वास्तविक स्थिति

  • वास्तविक स्थिति यह है कि कहीं तो प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (primary health centres - PHCs), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (community health centres - CHCs) और ज़िला अस्पतालों में पर्याप्त कर्मचारियों की कमी हैं, तो कहीं आवश्यक मात्रा में दवाइयों की कमी है।
  • इसके अतिरिक्त चिकित्सा उपकरणों की कमी, पर्याप्त मात्रा में डॉक्टरों की नियुक्ति न होना इत्यादि ऐसे पक्ष है जो इस बात की ओर इशारा करते है कि 'मेक इन इंडिया' एवं 'स्मार्ट इंडिया' की ओर अग्रसर भारत का एक चेहरा यह भी है। एक ऐसा चेहरा जो उसकी बुनियादी व्यवस्था का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करता है।
  • उत्तर प्रदेश के मामले में, कैग की रिपोर्ट में यह पाया गया कि लगभग 50% प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में एक भी डॉक्टर नहीं है, जबकि वर्तमान में देश में 13 ऐसे राज्य हैं जहाँ वृहद स्तर पर रिक्तियों मौजूद है।

इस दिशा में सरकार द्वारा किये गए प्रयास 

  • हालाँकि, देश में एक उन्नत ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को स्थापित करने के लिये काफी लंबे समय से प्रयास किया जा रहा है, यह और बात है कि इस संदर्भ में अभी तक कोई विशेष सफलता हाथ नहीं आई है।
  • ध्यातव्य है कि इस संबंध में वर्ष 2007 एवं 2012 में भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों को भी जारी किया गया, जिसका उद्देश्य उप-स्वास्थ्य केंद्रों की बुनियादी सुविधाओं के स्तर को ऊपर उठाना था ताकि प्राथमिक स्तर पर आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाओं की बेहतर व्यवस्था की जा सके।
  • इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 तक कुछ अन्य महत्त्वाकांक्षी स्वास्थ्य लक्ष्यों को भी स्थापित किया गया है।
  • इस संबंध में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत निर्धारित विभिन्न लक्ष्यों के लिये आवश्यक वित्तीय खर्चों हेतु सरकार द्वारा अनुमानित वित्तीय आवंटन दर को भी बढ़ा  दिया गया है।
  • हालाँकि, इसके लिये निरंतर निवेश और निगरानी की आवश्यकता होगी ।
  • साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक 3 किलोमीटर की त्रिज्या के भीतर आवश्यक चिकित्सा व्यवस्थाओं एवं नर्सिंग संसाधनों की स्थापना की जाए ताकि आवश्यकता पड़ने पर समय रहते व्यक्ति को प्राथमिक स्तर की चिकित्सा प्रदान की जा सके।
  • भारत की दयनीय शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में तेज़ी से कमी लाने हेतु ऐसी ही प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। संभवतः इसके लिये संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिये जाने वाले प्रयासों के स्थान पर प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य देखभाल के स्तर में बेहतरी करने के प्रयासों की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष 
इस सबके लिये ज़रूरी है कि सरकार बाज़ार आधारित चिकित्सकीय तंत्र की सीमाओं को रेखांकित करते हुए एक बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा की व्यवस्था सुनिश्चित करे । विदित हो कि एजेंडा 2020 के अंतर्गत भी इन्ही सब बातों का उल्लेख किया गया है। इसके लिये ज़रुरी है कि देश भर में चिकित्सा लागत के नियंत्रण के संबंध में एक एकल भुगतानकर्ता प्रणाली की स्थापना की जानी चाहिये। ताकि निजी एवं सार्वजनिक सुविधा प्रणालियों की सहायता से स्वास्थ्य देखभाल की कुशल रणनीति बनाई जा सके। ग्रामीण आबादी के लिये पर्याप्त संख्या में डॉक्टरों एवं नर्सों की नियुक्ति करना, चिकित्सकीय निदान एवं दवाओं तक सभी की सहज पहुँच सुनिश्चित करना इत्यादि बिन्दुओं को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission) के अंतर्गत प्राथमिक आवश्यकता के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिये।

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