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शासन व्यवस्था

OBC उप-श्रेणीकरण आयोग के कार्यकाल का विस्तार

  • 27 Jun 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

OBC उप-श्रेणीकरण आयोग, अनुच्छेद 340

मेन्स के लिये

भारतीय संविधान में आरक्षण संबंधी प्रावधान, OBC उप-श्रेणीकरण की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes-OBC) के उप-श्रेणीकरण के मुद्दे के परीक्षण हेतु गठित आयोग के कार्यकाल विस्तार को स्वीकृति दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता में गठित आयोग के कार्यकाल को 6 माह के लिये विस्तृत कर दिया गया है, जिसका अर्थ है कि आयोग के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये 31 जनवरी, 2021 तक का समय है।

कार्यकाल विस्तार का कारण

  • इस संबंध में आयोग ने कहा है कि वर्तमान OBC की केंद्रीय सूची में आ रहे दोहराव, अस्पष्टताओं, विसंगतियों, भाषाई त्रुटियों को दूर किये जाने की आवश्यकता है, जिसके कारण उसे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में कुछ अधिक समय लगेगा।
    • इसलिये आयोग ने अपने कार्यकाल को 31 जुलाई, 2020 तक बढ़ाने की मांग की थी।
  • हालाँकि COVID-19 महामारी के चलते देश भर में लागू किये गए लॉकडाउन और यात्रा पर प्रतिबंधों के कारण आयोग अपने कार्य को पूरा नहीं कर पा रहा है, इसलिये आयोग के कार्यकाल में 6 महीने यानी 31 जनवरी, 2021 तक विस्तार किया जा रहा है।

OBC का उप-श्रेणीकरण 

  • मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने OBC आरक्षण की व्यवस्था तो कर दी गई, किंतु OBC के ही अंतर्गत आने वाले अत्यधिक कमज़ोर वर्ग के लिये कुछ विशेष व्यवस्था नहीं की गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि OBC आरक्षण का अधिकांश लाभ OBC वर्ग से संबंधित कुछ ताकतवर जातियों के पास ही सिमटकर रह गया।
    • दरअसल भारतीय सामाजिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि OBC के तहत आने वाली कुछ जातियाँ इसी श्रेणी के तहत आने वाली कुछ अन्य जातियों से सामाजिक और आर्थिक ही आधार पर बेहतर स्थिति में हैं।
  • इसी स्थिति के मद्देनज़र OBC वर्ग के ही अंदर श्रेणीकरण की मांग कई वर्षों से की जा रही है। ध्यातव्य है कि देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहाँ श्रेणीकरण की इस व्यवस्था को लागू भी कर दिया गया है, हालाँकि OBC आरक्षण से संबंधित केंद्रीय सूची में इस प्रकार के वर्गीकरण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

आयोग का गठन

  • ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (National Commission for Backward Classes-NCBC) ने OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों जैसी तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किये जाने की सिफारिश की थी।
  • इसी को ध्यान में रखते हुए 2 अक्तूबर, 2017 को संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन किया गया था।
    • इस आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य अति पिछड़े वर्ग (OBC) के अंतर्गत सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था।
  • इस आयोग का गठन केंद्रीय OBC सूची में मौजूद 5000 जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने हेतु किया गया था, ताकि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अवसरों के अधिक न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस आयोग में OBC के तहत आने वाली जातियों, उप-जातियों और समुदायों की पहचान करने तथा उन्हें उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिये तंत्र और मापदंड विकसित करने का कार्य भी सौंपा गया था।

आयोग के गठन से लाभ

  • OBC की वर्तमान केंद्रीय सूची में शामिल ऐसे समुदाय जिन्हें केंद्र सरकार के पदों पर नियुक्ति और केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण योजना का उचित लाभ नहीं मिला है, उनको आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन से लाभ मिलने का अनुमान है। 
  • ध्यातव्य है कि ऐसी जातियों और ऐसे समुदायों के पास आरक्षण व्यवस्था होने के बावजूद भी उनका उत्थान नहीं हो पाया है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 340 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, भारतीय राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच करने के लिये तथा उनकी दशा में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान के लिये एक आदेश के माध्यम से आयोग की नियुक्ति कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त आयोग संदर्भित मामलों की जाँच करेगा और उनके द्वारा पाए गए तथ्यों तथा अपनी सिफारिशों समेत अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

भारत में OBC आरक्षण का इतिहास

  • ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम वर्ष 1953 में गठित कालेलकर आयोग (Kalelkar Commission) ने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के अतिरिक्त अन्य पिछड़े वर्गों की पहचान की थी।
  • गौरतलब है कि वर्ष 1979 में ‘सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान’ के उद्देश्य से  मंडल आयोग का गठन किया गया, आयोग ने समूहों के पिछड़ेपन का निर्धारण के लिये ग्यारह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक संकेतकों का इस्तेमाल किया गया और वर्ष 1980 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लिये सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की।
  • वर्ष 1990 में सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। हालाँकि कई जगह सरकार के इस निर्णय का व्यापक विरोध होने लगा, किंतु इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस निर्णय पर मुहर लगा दी।
  • वर्ष 1993 में संसद में पारित कानून के तहत ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) का गठन एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया, जिसे 1993 से वर्ष 2016 के बीच कुल 7 बार पुनर्गठित किया गया।
  • इस आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं में सुधार करना था।
  • अगस्त 2018 में 102वें संविधान संशोधन के माध्यम से ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) को संवैधानिक दर्ज़ा प्रदान कर दिया गया और भारतीय संविधान में अनुच्छेद 338B शामिल किया गया।

स्रोत: द हिंदू

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