भारतीय राजव्यवस्था
स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटा
- 20 May 2022
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प्रिलिम्स के लिये:OBC आरक्षण, शहरी स्थानीय निकाय। मेन्स के लिये:स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने मध्य प्रदेश को स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण प्रदान करने की अनुमति दी, जो आँकड़ों की कमी के कारण कोटा को निलंबित करने वाले पहले के आदेश को संशोधित करता है।
- वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थानीय निकायों में केवल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिये आरक्षण का प्रावधान है।
- यह पहली बार है कि किसी राज्य सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों में OBC को आरक्षण प्रदान करने के संदर्भ में शीर्ष न्यायालय द्वारा अनिवार्य ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले को मंज़ूरी देने में कामयाबी हासिल की है।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने दिसंबर 2021 के आदेश को वापस लेने का फैसला किया, जिसके माध्यम से स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 27% आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटा खत्म कर दिया तथा ओडिशा उच्च न्यायालय ने राज्य में इसी तरह के एक कदम को रद्द कर दिया क्योंकि यह अभ्यास ट्रिपल टेस्ट से नहीं गुज़रा था।
- मार्च 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 2010 में निर्धारित तीन शर्तों का पालन करने के लिये कहा था- ओबीसी जनसंख्या से संबंधित अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने के लिये एक समर्पित आयोग की स्थापना, आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना और यह सुनिश्चित करना कि आरक्षित सीटों का संचयी हिस्सा कुल सीटों के 50% की निर्धारित सीमा का उल्लंघन न करे।
निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश द्वारा गठित तीन सदस्यीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की एक रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए राज्यों को OBC सीटों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया।
- इस आयोग ने राज्य में OBC की आबादी को 48% निर्धारित किया और प्रत्येक नगरपालिका सीट पर अलग-अलग मात्रा में आरक्षण की अनुमति दी, जिसे अधिकतम 35% तक बढ़ाया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग को राज्य सरकार द्वारा पहले से जारी परिसीमन अधिसूचनाओं को ध्यान में रखते हुए संबंधित स्थानीय निकायों के लिये चुनाव कार्यक्रम को अधिसूचित करने की अनुमति दी।
- यह आदेश एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका के बाद पारित किया गया था, जिसने अप्रैल 2022 में मध्य प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1956; मध्य प्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 तथा मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 में संशोधन को चुनौती दी थी।
- इन संशोधनों द्वारा राज्य सरकार ने संबंधित स्थानीय निकायों में वार्डों की संख्या और सीमा निर्धारित करने के निर्णय को अपने अधिकार में ले लिया था।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2010 में दिया गया निर्णय:
- के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघ वाद (2010) में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6) की व्याख्या की थी, जो एक कानून के अधिनियमन द्वारा क्रमशः पंचायतों और नगर निकायों में पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की अनुमति देते हैं। इसमें सर्वोच्च न्ययालय ने यह माना था कि राजनीतिक भागीदारी की बाधाएँ, शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच को सीमित करने वाली बाधाओं के समान नहीं हैं।
- समान अवसर देने हेतु आरक्षण को वांछनीय माना जाता है, जैसा कि उपरोक्त अनुच्छेदों द्वारा अनिवार्य है जो कि आरक्षण के लिये एक अलग संवैधानिक आधार प्रदान करते हैं, जबकि अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) के तहत शिक्षा व रोज़गार में आरक्षण की परिकल्पना की गई है।
- यद्यपि स्थानीय निकायों को आरक्षण की अनुमति है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि यह आरक्षण स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ेपन के अनुभवजन्य डेटा के अधीन है।
स्थानीय सरकार:
- स्थानीय स्वशासन ऐसे स्थानीय निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन है जो स्थानीय लोगों द्वारा चुने गए हैं।
- स्थानीय स्वशासन में ग्रामीण और शहरी दोनों निकाय शामिल हैं।
- यह सरकार का तीसरा स्तर है।
- स्थानीय सरकारें दो प्रकार की होती हैं- ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें और शहरी क्षेत्रों में नगर पालिकाएँ।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है: (2017) (d) संघवाद का उत्तर: B
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर; B
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