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भारतीय राजनीति

स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण

  • 22 Jan 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ओबीसी आरक्षण, शहरी स्थानीय निकाय।

मेन्स के लिये:

स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण का महत्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने दिसंबर 2021 के आदेश को वापस लेने का फैसला किया, जिसके माध्यम से स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 27% आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण देने की ज़िम्मेदारी पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपी है।
  • महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहाँ स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगाई गई थी। दिसंबर 2021 में, शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार के लिये एक समान आदेश पारित किया, जिसमें ओबीसी सीटों को तीन-परीक्षण मानदंडों (जैसा कि 2010 के फैसले में कहा गया है) का पालन करने में विफल रहने पर सामान्य श्रेणी के रूप में अधिसूचित किया गया था।
    • इसी तरह मध्य प्रदेश सरकार ने भी इसी तरह का एक आवेदन किया है, जिसमें राज्य में 51% ओबीसी आबादी होने का दावा किया गया है।

The-Gist

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • मार्च 2021 में SC ने राज्य सरकार को तीन शर्तों का पालन करने के लिये कहा था- ओबीसी आबादी से संबंधित अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने के लिये एक समर्पित आयोग की स्थापना, आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना और यह सुनिश्चित करना कि आरक्षित सीटों का संचयी हिस्सा कुल सीटों में से 50% का उल्लंघन न करे।
    • सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने ओबीसी के अनुभवजन्य डेटा के लिये समर्पित आयोग की नियुक्ति की और 50% आरक्षण की सीमा को पार किये बिना स्थानीय निकायों में ओबीसी को 27% तक आरक्षण देने के लिये एक अध्यादेश भी जारी किया।
    • हालाँकि शीर्ष अदालत ने दिसंबर 2021 में यह कहते हुए रोक लगा दी कि इसे अनुभवजन्य डेटा के बिना लागू नहीं किया जा सकता है और राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को ओबीसी सीटों को सामान्य श्रेणी में रखकर चुनाव कराने को कहा है।
  • दलील:
    • महाराष्ट्र सरकार ने दावा किया कि शीर्ष अदालत द्वारा दिये गए दिसंबर के आदेश के दो प्रतिकूल प्रभाव होंगे।
    • ओबीसी से संबंधित व्यक्ति लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्वाचित पदों पर चुने जाने के अवसर से वंचित होंगे, जो न केवल ओबीसी समुदाय के निवासियों की आकांक्षाओं को पूरा बल्कि अन्य सभी समुदायों के विकास में मदद करते थे।
    • ओबीसी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्त्व या गैर-प्रतिनिधित्त्व संवैधानिक योजना के उद्देश्य व मंशा के बिल्कुल विपरीत है।
    • राज्य ने यह भी दावा किया कि उसने पहले ही एक आयोग नियुक्त करके और डेटा एकत्र करके तीन परीक्षण दिशा निर्देशों में से दो का पालन किया था।
    • महाराष्ट्र के कुछ ज़िलों में आरक्षण ओबीसी की जनसंख्या के अनुपात पर आधारित है और पूरे महाराष्ट्र राज्य के सभी ज़िलों में 27% का समग्र आरक्षण नहीं है।
    • स्थानीय निकायों में 27% ओबीसी कोटा को सही ठहराने हेतु एक मध्यवर्ती उपाय के रूप में  राज्य ने एक नमूना सर्वेक्षण का उल्लेख किया जिसमें कहा गया कि नमूना आकार में ओबीसी का वितरण 48.6% पाया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को ‘महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग’ (MSCBC) द्वारा ओबीसी डेटा की जांँच करने और स्थानीय निकायों के चुनावों में उनके प्रतिनिधित्व पर सिफारिशें करने का निर्देश दिया।
  • निहितार्थ: 
    • सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटा बहाल करने की संभावना को बढ़ा दिया है।
    • सरकारी आंँकड़ों में राज्य के ग्रामीण विकास विभाग और शहरी विकास विभाग के गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्रों हेतु स्थानीय निकायों द्वारा विभिन्न सर्वेक्षण शामिल हैं।
    • सरकार पूर्व पिछड़ा वर्ग आयोग के आंँकड़ों और वर्ष 2011 की जनगणना के आंँकड़ों का भी हवाला दे सकती है।
    • सरकार को MSCBC और राज्य चुनाव आयोग के साथ उचित समन्वय सुनिश्चित करना होगा और स्थानीय निकायों में ओबीसी कोटा बहाल करने हेतु मिलकर कार्य करना चाहिये।

वर्ष 2010 का निर्णय

  • के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघ वाद (2010) में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6) की व्याख्या की थी, जो कानून के अधिनियमन द्वारा क्रमशः पंचायतों और नगर निकायों में पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की अनुमति देते हैं। इसमें सर्वोच्च न्ययालय ने यह माना था कि राजनीतिक भागीदारी की बाधाएँ, शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच को सीमित करने वाली बाधाओं के समान नहीं हैं।
  • समान अवसर देने हेतु आरक्षण को वांछनीय माना जाता है, जैसा कि उपरोक्त अनुच्छेदों द्वारा अनिवार्य है जो कि आरक्षण के लिये एक अलग संवैधानिक आधार प्रदान करते हैं, जबकि अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) के तहत शिक्षा व रोज़गार में आरक्षण की परिकल्पना की गई है।
  • यद्यपि स्थानीय निकायों को आरक्षण की अनुमति है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि यह आरक्षण स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ेपन के अनुभवजन्य डेटा के अधीन है।

स्रोत: द हिंदू

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