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डेली न्यूज़

भारतीय समाज

पूर्वोत्तर भारत एवं एक्सोन

  • 18 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

एक्सोन 

मेन्स के लिये:

पूर्वोत्तर जनजातीय  संस्कृति में एक्सोन का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मेलबोर्न के मानवविज्ञानी (Melbourne Anthropologist), जो वर्तमान में किण्वन पर अपना शोधकार्य कर रहे हैं, के द्वारा पूर्वोत्तर भारत में  खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किये जाने वाले एक्सोन (Axone) की प्रासंगिकता के बारे में बताया गया है। 

Axone

प्रमुख बिंदु:

  • एक्सोन को पूर्वोत्तर भारत के  विभिन्न हिस्सों में कई आदिवासी समुदायों द्वारा अलग-अलग नामों से पकाया, खाया और जाना जाता है।
  • इसे किण्वित सोयाबीन (Fermented Soyabean) के रूप में भी जाना जाता है। 
  • नगालैंड के कुछ हिस्सों में इसे एक्सोन के नाम से जाना जाता है। 
  • इसकी मुख्य विशेषता इसकी  विशिष्ट गंध (Distinctive Smell) है, जिसे आदिवासी पहचान एवं संस्कृति के साथ जोड़कर देखा जाता है।

क्या है एक्सोन? 

  • यह एक किण्वित भोज्य पदार्थ है, जिसे अकुनि (Akhuni) भी कहा जाता है। 
  • इसका प्रयोग पूर्वी हिमालय क्षेत्र में किया जाता है।
  • यह किण्वन की एक विस्तृत/व्यापक अवधारणा है जो खाद्य पदार्थों के संरक्षण के लिये कुछ विशेष पारिस्थितिक संदर्भों में ज़रूरी है।
  • किण्वन एक उपापचय प्रक्रिया है यह एंज़ाइमों के माध्यम से कार्बनिक पदार्थों में रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करती है।
  • एक्सोन का उपयोग अचार और चटनी बनाने के साथ-साथ सूअर का मांस, मछली, चिकन, बीफ इत्यादि की करी को स्वादिष्ट बनाने के लिये किया जाता है।
  • इसका प्रयोग माँसाहारी के साथ-साथ शाकाहारी खाद्य पदार्थों में भी एक विशिष्ट स्वाद उत्पन्न करता है। 
  • इसका प्रयोग मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, मणिपुर के साथ-साथ अन्य दक्षिण, दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशियाई देशों में अलग- अलग नामों के साथ किया जाता हैं। जिनमें नेपाल, भूटान, जापान, कोरिया, चीन, म्यांमार, वियतनाम एवं इंडोनेशिया इत्यादि देश शामिल हैं ।
  • एक्सोन का स्वाद जापानी मिसो जो कि जापानी रेस्तरां में प्रयोग किये जाना वाला एक खाद्य पदार्थ है, से काफी समानता रखता है।

नगालैंड में यह कितना लोकप्रिय है?

  • एक्सोन नगालैंड में सूमी (Sumi) जनजाति जिसे सेमा (Sema) भी कहा जाता है, के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है।
  • इस जनजाति द्वारा इसका प्रयोग सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
  • नगालैंड की खाद्य संस्कृति चावल पर केंद्रित है है जिसमे नमकीन, मसालेदार, उत्तेजक एवं किण्वित एक्सोन को मुख्य भोजन (चावल) के साथ प्रयोग किया जाता है।

एक्सोन कैसे तैयार किया जाता है?

  • इसे बनाने की दो विधियाँ है- 
    • पहली सुखाकर  
    • दूसरी पेस्ट बनाकर
  • दोनों ही विधियों में समान रूप से तैयारी की जाती हैं।
  • रात भर सोयाबीन को पानी में भिगोते हैं इसके बाद इस पानी को तब तक उबालते हैं जब तक कि यह नरम न हो जाए। 
  • अब सोयाबीन को पानी से निकालकर केले के पत्तों के साथ पंक्तिबंध रूप में बाँस की टोकरी में रखा जाता है। 
  • इसके बाद इसे किण्वन की प्रक्रिया के लिये रखा जाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में किण्वन की प्रक्रिया के लिये इसे रसोईघरों की चिमनी में ऊपर तथा शहरी क्षेत्रों में इसे छत पर सीधे धूप में रखा जाता है।
  • किण्वित हो जाने के बाद इसे मैश (mashed) करके केक बनाया जाता है तथा केले के पत्तों में लपेटकर फिर से किण्वन के लिये रखा जाता है। 

क्या एक्सोन आदिवासी पहचान और संस्कृति में भूमिका निभाते हैं?

  • पूर्वोत्तर भारत की आदिवासी लोककथाओं में भी एक्सोन की उत्पत्ति, इसकी विशिष्ट गंध तथा इससे बनने वाले खाद्य पदार्थों का वर्णन मिलता है।
  • पिछले दो दशकों में नगालैंड से लोग दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में जा रहे हैं जिसके चलते एक्सोन का विस्तार अन्य महानगरों में भी हो गया है।
  • इसके अलावा, देश के अन्य क्षेत्रों में भी पूर्वोत्तर जनजातीय भोजन परोसने वाले  रेस्तरां की संख्या देखने को मिलती है अतः एक्सोन की न केवल पूर्वोत्तर भारत में नहीं बल्कि अन्य महानगरों में भी पसंद किया जाने वाला भोज्य पदार्थ है।
  • इसकी तीखी गंध के कारण रेस्तरां मेनू आदि में इसे शामिल करने के कारण एक प्रकार की नस्लीय राजनीति को भी बढ़ावा मिला है अर्थात किण्वित भोजन की गंध के आधार पर वर्ग विशेष को बहिष्कार के अनुभवों का सामना करना पड़ सकता है।
  • इस प्रकार की कोई भी घटना आदिवासी पहचान और संस्कृति के लिये भविष्य में संकट उत्पन्न कर सकती है। 

निष्कर्ष:

भारत विश्वपटल पर सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ-साथ विश्व के सबसे अधिक विविधतापूर्ण  सांस्कृतिक देश का  प्रतिनिधित्व भी करता है जिसमे विभिन्न वर्गों के साथ जनजातीय समुदाय द्वारा अपनी विशिष्ट भाषा संस्कृति एवं खानपान पद्धति को संजोया गया है। भारतीय संविधान में वर्णित  मूल अधिकार जो जीने के लिये मौलिक एवं अनिवार्य है, जनजातीय समुदाय के इन हितों को संरक्षण प्रदान करते हैं, अतः एक भारतीय होने के साथ-साथ नैतिक स्तर पर भी  इस बात की आवश्यकता है कि हम सभी को एक दूसरे के सांस्कृतिक एवं अन्य परम्पराओं का सम्मान करना चाहिये  ताकि इस विविधतापूर्ण संस्कृति को संरक्षित किया जा सके एवं एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साकारित किया जा सके। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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