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नवीन वाहन स्क्रैपेज/कबाड़ नीति

  • 16 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी

मेन्स के लिये:

नवीन वाहन स्क्रैपेज/कबाड़ नीति

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में 'विज्ञान और पर्यावरण केंद्र' (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा पुराने वाहनों के संबंध में प्रभावी स्क्रैपेज नीति और बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर एक रिपोर्ट जारी की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘विज्ञान और पर्यावरण केंद्र’ (CSE) नई दिल्ली स्थित एक सार्वजनिक हित में अनुसंधान और समर्थन करने वाला गैर-लाभकारी संगठन है।
  • वर्तमान में सरकार पुराने वाहनों के बेहतर निपटान के लिये ‘नवीन वाहन कबाड़/परिमार्जन नीति’ को लागू करने की योजना बना रही है। 

नीति की आवश्यकता:

  • वर्ष 2025 तक भारत में लगभग दो करोड़ से अनुपयोगी पुराने वाहन होंगें। इन वाहनों के अलावा अन्य अनुपयुक्त वाहन भारी प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति का कारण बनेंगे।
  • भारत को ‘हरित अर्थव्यवस्था’ की दिशा में आगे ले जाने के लिये कबाड़ नीति को एक साधन के रूप में प्रयोग करने का सुअवसर है।
  • भारत स्टेज VI’ (बीएस-VI) उत्सर्जन मानकों और इलेक्ट्रिक वाहन प्रोत्साहन नीतियों को लागू किया जा रहा है, जिससे पुराने वाहनों के उचित प्रबंधन की आवश्यकता है।
  • प्रदूषित नगरों में 'राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम' (National Clean Air Programme- NCAP) के तहत पुराने वाहनों को 'स्वच्छ वायु कार्रवाई' के हिस्से के रूप में बाहर किया जाना है।

CSE प्रमुख सिफारिश: 

अवसंरचना की स्थापना: 

  • नवीन नीति के तहत पुराने वाहनों के अधिकतम उपयोग का लाभ उठाना चाहिये और इसके लिये वाहनों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण अवसंरचना को स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।  
  •  'वाहन कबाड़/परिमार्जन के निपटान के लिये पर्यावरणीय रूप से अनुकूलित बुनियादी  अवसंरचना को बढ़ाया जाना चाहिये। वाहनों से स्टील, एल्यूमीनियम और प्लास्टिक जैसी सामग्री की पुनर्प्राप्ति के लिये देश-व्यापी स्तर पर आवश्यक अवसंरचना को स्थापित किया जाना चाहिये।

राजकोषीय प्रोत्साहन (Fiscal Stimulus):

  • नवीन परिमार्जन नीति को भारत स्टेज VI वाहनों से पुराने वाहनों को प्रतिस्थापित करने की नीति तथा आर्थिक सुधार एवं राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों को जोड़ने की आवश्यकता है।
  • परिमार्जन नीति में उन प्रोत्साहन उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है जो पुरानी कारों और दोपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रतिस्थापन को बढ़ावा।

विनिर्मंताओं को जिम्मेदारियां:

  • नीति का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिये कि यह वाहन विनिर्माताओं पर पुराने वाहनों के न्यूनतम 80-85 प्रतिशत भाग को पुन: प्रयोज्य, पुनर्प्राप्ति योग्य, पुनर्चक्रण (Reusable, Recyclable,  Recoverable- 3R) करने के लिये बाध्य करती हो।
  • वाहनों के निर्माण में सीसा, पारा, कैडमियम या हेक्सावैलेंट क्रोमियम जैसी ज़हरीली धातुओं का उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
  • नीति में 'विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी' (Extended Producer Responsibility- EPR) जैसे प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिये, नियमों का निर्माण इस प्रकार किया जाना चहिये कि ये कानूनी रूप से बाध्यकारी हो। 

क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण:

  • नीति के तहत बंदरगाहों के पास पुनर्चक्रण क्लस्टर स्थापित किये जाने की योजना है जो देश में ऑटोमोबाइल विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देगी।

नीति का महत्त्व:

  • ऑटोमोबाइल उद्योग के लिये कच्चा माल सस्ते दामों पर उपलब्ध होगा, क्योंकि नवीन वाहनों के उत्पादन में इन पुराने वाहनों से निकले प्लास्टिक, रबर तथा एल्यूमीनियम, ताँबा जैसी धातुओं का प्रयोग किया जाएगा। 
  • वाहन-जनित प्रदूषण में पुराने वाणिज्यिक वाहनों का हिस्सा बहुत अधिक (लगभग 65% तक) है। इन पर प्रतिबंध लगाने से वायु की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • इस नीति के लागू होने से नवीन वाहनों के उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद है। इससे भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का आकार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष:

  • पर्यावरणीय नुकसान और उत्सर्जन को कम करने तथा COVID-19 महामारी के बाद के समय में भारत को ‘हरित अर्थव्यवस्था’ बनाने के हिस्से के रूप में कबाड़ से सामग्री को पुनर्प्राप्त करने के लिये एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की हुई नवीन परिमार्जन/कबाड़ नीति की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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