लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एक देश, एक चुनाव ज़रूरी क्यों?

  • 20 Sep 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग के बाद हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के प्रति वैचारिक सहमति व्यक्त की है। विदित हो कि हाल ही में नीति आयोग ने भी कहा है कि वर्ष 2024 से लोकसभा और विधानसभा, दोनों चुनाव एक साथ कराना राष्ट्रीय हित में होगा।

क्या कहा था नीति आयोग ने?

  • नीति आयोग ने लोकसभा और विधानसभाओं के लिये दो चरणों में चुनाव करवाने का समर्थन किया है, ताकि चुनाव प्रचार के कारण शासन में कम से कम व्यवधान सुनिश्चित हो सके।
  • एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिये नीति आयोग ने विशेषज्ञों का एक समूह गठित किये जाने का सुझाव दिया है जो इस संबंध में सिफारिशें देगा।
  • दरअसल, वर्ष 2024 में एक साथ चुनाव कराने के लिये पहले कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में कटौती करनी होगी या कुछ के कार्यकाल को विस्तार देना होगा।
  • आयोग ने कहा है कि इसे लागू करने के लिये विशेषज्ञों, थिंक टैंक, सरकारी अधिकारियों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों सहित पक्षकारों का एक विशेष समूह गठित किया जाना चाहिये।

चुनाव आयोग को नोडल एजेंसी बनाने का सुझाव

  • अपनी एक रिपोर्ट में नीति आयोग ने कहा है कि ‘एक देश एक चुनाव’ की योजना को असली जामा पहनाने के लिये:

♦ संवैधानिक और वैधानिक संशोधनों के लिये मसौदा तैयार करना होगा।
♦ एक साथ चुनाव कराने के लिये संभव कार्ययोजना तैयार करना होगी।
♦ संबंधित सभी पक्षों के साथ बातचीत के लिये योजना बनानी होगी।

  • नीति आयोग ने इन सिफारिशों का अध्ययन करने और इस संबंध में मार्च 2018 की ‘समय सीमा’ तय करने के लिये चुनाव आयोग को नोडल एजेंसी बनाने का सुझाव दिया है।
  • आयोग की सिफारिशें इसलिये भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया है।

निष्कर्ष

  • विदित हो कि वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव पर 1,100 करोड़ रुपए खर्च हुए और वर्ष 2014 में यह खर्च बढ़कर 4,000 करोड़ रुपए हो गया।
  • बार-बार चुनाव कराने से एक ओर जहाँ सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है वहीं शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में भी काम-काज प्रभावित होता है।
  • ऐसा इसलिये क्योंकि बड़ी संख्या में शिक्षकों सहित एक करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
  • बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को भी चुनाव कार्य में लगाना पड़ता है जबकि देश की सीमाएँ संवेदनशील बनी हुई हैं और आतंकवाद का खतरा बढ़ गया है।
  • दरअसल, आज़ादी के बाद शुरुआती दशकों में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित किया गया था। अतः स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद चुनाव सुधारों के संबंध में रचनात्मक पहल का यह उचित समय है।
  • यह चुनाव आयोग का दायित्व है कि राजनीतिक दलों के साथ परामर्श के बाद वह इस पहल को आगे बढ़ाए।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2