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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में न्यूनतम वेतन की आवश्यकता

  • 21 Nov 2019
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

वेतन संहिता, 2019 क्या है

मेन्स के लिये

भारत में न्यूनतम वेतन के निर्धारण का सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment) ने वेतन संहिता, 2019 के क्रियान्वयन हेतु एक मसौदा (Draft) तैयार किया है तथा सरकार ने 1 दिसंबर 2019 तक सभी हितधारकों से इसपर प्रतिक्रिया मांगी है।

मुख्य बिंदु:

  • 8 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति द्वारा वेतन संहिता विधेयक, 2019 को स्वीकृति देने के बाद इसे क़ानून के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • इस संहिता में पहले से चले आ रहे चार अधिनियमों- वेतन भुगतान अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 तथा समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को शामिल किया गया है।
  • इस संहिता के तहत सभी प्रकार के उद्योगों, व्यवसायों या विनिर्माण संबंधी कार्यों में संलग्न कर्मचारियों के वेतन, बोनस एवं अन्य भत्तों को विनियमित किया गया है।
  • केंद्र सरकार ने इस संहिता के तहत न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये तैयार मसौदे पर राज्यों तथा अन्य हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी है। इसके द्वारा विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम वेतन निर्धारित किये जाएंगे।
  • विभिन्न हितधारकों से परामर्श के पश्चात् सरकार श्रमिकों की विभिन्न श्रेणियों जैसे- अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल तथा अत्यधिक कुशल के लिये न्यूनतम वेतन निर्धारित करने हेतु नियमों को अधिसूचित करेगी।

न्यूनतम वेतन संहिता 2019 का महत्त्व:

  • किसी देश में गरीबी उन्मूलन तथा अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता के लिये न्यूनतम वेतन एक आवश्यक कारक है।
  • वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद यह महसूस किया गया कि विभिन्न सामाजिक कारकों को ध्यान में रख कर वेतन में निरंतर समायोजन (Adjustment) करना चाहिये। इससे न सिर्फ सामाजिक असमानता में कमी आएगी बल्कि मांग में वृद्धि होगी तथा अर्थव्यवस्था में स्थायित्व बना रहेगा।
  • इस संहिता द्वारा निर्धारित किया गया है कि किसी कर्मचारी का न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिये एक न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाए।
  • वर्ष 1957 के 15वें भारतीय श्रमिक सम्मेलन के सुझावों को ध्यान में रखते हुए इस मसौदे के प्रावधान बनाए गए हैं। इन प्रावधानों के निर्धारण में एक परिवार के लिये आवश्यक भोजन, कपड़े, घर का किराया, बच्चों की शिक्षा तथा अन्य आकस्मिकताओं पर होने वाले कुल खर्च आदि को शामिल किया गया है।
  • इस संहिता के निर्माण में वेतन संबंधी सभी मानकों को जैसे- कार्य करने की समयावधि, महँगाई भत्ते की समय-समय पर पुनरावृत्ति, रात्रि में कार्य करने की शर्तें, ओवरटाइम तथा वेतन में कटौती आदि को ध्यान में रखा गया है।
  • वेतन संहिता, सभी कर्मचारियों के लिये न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक तौर पर सुनिश्चित करेगा।
  • साथ ही इससे प्रत्येक कर्मचारी के भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और वर्तमान के लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्यूनतम वेतन का वैधानिक संरक्षण प्राप्त होगा।
  • न्यूनतम वेतन के निर्धारण से देश में गुणवत्‍तापूर्ण जीवन स्तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे।
  • इस संहिता में राज्‍यों द्वारा कर्मचारियों को डिजिटल मोड से वेतन के भुगतान करने की परिकल्पना की गई है।
  • विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएँ हैं, जिन्‍हें लागू करने में कठिनाई होती हैं तथा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है। मुकदमेबाजी कम करने और नियोक्‍ता के लिये इसका अनुपालन आसान बनाने के लिये इसमें वेतन की परिभाषा को सरल बनाया गया है।
  • वर्तमान में अधिकांश राज्‍यों में अलग-अलग न्यूनतम वेतन हैं। इस संहिता के माध्यम से न्‍यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है। रोज़गार के विभिन्न प्रकारों को वर्गीकृत करके न्‍यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये एक ही मानदंड बनाया गया है।

न्यूनतम वेतन संहिता 2019 का प्रभाव:

  • इस संहिता के माध्यम से संगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि होगी। यह असंगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे श्रमिकों के लिये लाइटहाउस इफ़ेक्ट (Lighthouse Effect) का कार्य करेगा। इसका अभिप्राय यह है कि न्यूनतम वेतन में वृद्धि से असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे कर्मचारी भी अपने वेतन में बढ़ोतरी की मांग करेंगे।
  • न्यूनतम आय में वृद्धि होने से आय असमानता में कमी आएगी। आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, वर्ष 1993 से 2011 में औसत वास्तविक वेतन (Average Real Wages) में वृद्धि से असंगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे श्रमिकों की स्थिति में सुधार हुआ है।
  • न्यूनतम आय में वृद्धि से नए रोज़गारों का सृजन होगा तथा महिला एवं पुरुष श्रमिक इससे समान रूप से लाभान्वित होंगे। आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, न्यूनतम आय में 10 प्रतिशत की वृद्धि से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार में 6.34 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है।
  • न्यूनतम वेतन के बढ़ने से लोगों में क्रय शक्ति में वृद्धि होगी जिससे सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) में वृद्धि होगी तथा अर्थव्यवस्था का विकास होगा।

स्रोत: द हिंदू, पी.आई.बी.

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