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दृष्टि द विज़न

चीन की नीतियों के विरुद्ध क्या हो भारत का रुख?

  • 11 May 2017

संदर्भ
भारत ‘अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये चीन के ‘वन बेल्ट और रोड फोरम’ (Belt and Road Forum for International Cooperation) में भागीदारी करेंगे| इसकी शुरुआत 14 मई से होगी| यह प्रधानमंत्री के उस कदम के समान होगा जब वर्ष 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों के प्रतिनिधयों को आमंत्रित किया था| भारत द्वारा की गई यह एक अच्छी पहल है जिसका महत्त्व दीर्घकालिक होगा|

प्रमुख बिंदु

  • यह चीन की चार सूत्री पहल का उत्तर तथा उसकी मंशा का परीक्षण होगा| चीन इससे पूर्व ‘अच्छे पड़ोसियों और मित्रवत सहयोग के लिये चीन-भारत संधि’ पर भी वार्ता करने का सुझाव दे चुका है| इसके अतिरिक्त, चीन ने भारत-चीन के मुक्त व्यापार समझौते, सीमा संबंधी मुद्दों के समाधान तथा भारत की एक्ट ईस्ट नीति और चीन की वन बेल्ट वन रोड पहल पर पर भी पुनः वार्ता करना प्रारंभ कर दिया है|  
  • एक महाद्वीपीय शक्ति के रूप में चीन केवल सड़कों, रेल, बंदरगाह और फाइबर ऑप्टिक्स के माध्यम से ही एशियाई बाज़ार से नहीं जुड़ रहा है बल्कि मुद्रा विनिमय, मानकों, उद्योगों के स्थानांतरण और बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रति समान दृष्टिकोणों के कारण भी उससे जुड़ रहा है| 
  • यह अनुमान लगाया गया है कि विश्व की अर्थव्यवस्था वर्ष 2050 तक तीन गुनी हो जाएगी तथा एशिया के पास पुनः वैश्विक धन संपदा का 50% होगा| ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप से अमेरिका के निकल जाने के पश्चात चीन उस स्थान को भरेगा तथा भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने हेतु इसमें अन्य तत्त्वों का भी समावेश करना होगा|
  • कुछ ही वर्षों में विभिन्न देशों के बीच संबंधों में हुए इन परिवर्तनों के मद्देनज़र यह प्रश्न भी उठता है कि मौजूदा दृष्टिकोण, संस्थान और नियम अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को संगठित करने का उत्तम मार्ग उपलब्ध कराते हैं अथवा नहीं? बड़ी शक्तियों के मध्य समन्वय बहुध्रुवीय विश्व में वैश्विक शासन व्यवस्था का एक अच्छा मार्ग बनकर उभर रहा है| इसके अलावा, विभिन्न देशों के मध्य क्षेत्रीय विवाद, सामरिक अंतर और दक्षिण चीन सागर में सेना की तैनाती भी अच्छा मार्ग बनकर उभर रहे हैं| 
  • चीन और जापान ने हाल ही में वित्तीय सहयोग को मज़बूत करने पर अपनी सहमति जाहिर की है, इसके अलावा यह फोरम भारत और चीन के मध्य उपजे सीमा विवाद के समाधान में भी उपयोगी सिद्ध होगा|

क्या होना चाहिये भारत का रुख?

  • चीन के इस सुझाव पर भारत की प्रतिक्रिया उसके दीर्घकालिक हितों पर आधारित होनी चाहिये न कि अल्पकालिक चिंताओं पर| 

→ चीन की ‘बेल्ट और रोड पहल’ (Belt and Road Initiative –BRI) 60 देशों को कवर करती है तथा इसकी लागत 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है| इसे देशों के मध्य समन्वय तथा डिजिटल एशिया के रूप में देखा जा रहा है| भारत स्वयं को एशियाई बाज़ार, इसकी आपूर्ति, विनिर्माण और बाज़ार नेटवर्कों के साथ समन्वित किये बिना वर्ष 2032 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था नहीं बन सकता है|
→  चीन की इस पहल के समान ही व्यापार, निवेश और व्यापार समन्वय के लिये एशिया की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के साथ कई ऐसे देशों का भी विकास करना होगा जो बेल्ट और रोड पहल की परिधि में हैं, जैसे- बांग्लादेश, वियतनाम और इंडोनेशिया|
→  वैश्विक चुनौतियों के सापेक्ष दक्षिण एशिया में नया सहयोग ढाँचा खड़ा करना होगा| उदाहरण के लिये, अपनी सुरक्षा की चिंता न करते हुए मौसम संबंधी जानकारी, क्षेत्र विशेष मौसम अनुसंधान और डिजिटल आधार के अनुभवों को अन्य देशों के साथ साझा करना होगा|

  • यद्यपि अच्छा नेतृत्व वैश्विक मंच पर देश को आगे बढ़ता है तथापि वाणिज्य के साथ-साथ पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया में हिन्दूवाद और बौद्ध धर्म का प्रसार भी हुआ है| 
  • ध्यातव्य है कि भारत में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता है और इस फोरम में प्रधानमंत्री की भागीदारी केवल इसलिये महत्त्वपूर्ण नहीं है कि इसमें 110 भागीदार देश शामिल हो रहे हैं बल्कि प्रधानमंत्री ने इस फोरम में शामिल होने का निर्णय इसलिये लिया है क्योंकि एक सहयोगी के रूप में भारत इसे एक नया स्वरूप प्रदान करेगा| 
  • वर्तमान में देशों को उनकी सैन्य क्षमता की बजाय अर्थव्यवस्था के बल पर आँका जाता है| हालाँकि, भारत के विश्लेषकों को इन वैश्विक रुझानों को मान्यता प्रदान करनी होगी और एक सुरक्षा घेरे के माध्यम से चीन के पुनरुत्थान (re-emergence) को देखना होगा| भारत के पश्चिमी पड़ोसियों के चारों ओर द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न करने के लिये भारत को ईरान, इराक और अफगानिस्तान के साथ सहयोग करना होगा; परन्तु इसके साथ ही उत्तर के सहयोगियों की ओर भी सहयोग का हाथ बढ़ाना होगा|
  • इसके अतिरिक्त, चीन की बेल्ट और रोड पहल के सामरिक प्रभाव को नज़रंदाज़ करना होगा जिसकी सराहना जापान के अलावा विश्व के अन्य सभी देश करते हैं तथा भारत को स्वयं के पुनरुत्थान को सुरक्षित करने के लिये नए दृष्टिकोण की भी आवश्यकता होगी|

‘बेल्ट और रोड’ पहल क्या है?

  • यह चीन की एक विकास रणनीति है जिसका उद्देश्य विभिन्न देशों (मुख्यतः चीन गणराज्य और शेष यूरोप-एशिया) के मध्य संपर्क स्थापित करना है| इसके दो प्रमुख अवयव हैं-  प्रथम स्थल-आधारित सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट (land based silk road economic belt) और दूसरा जल आधारित ‘मेरीटाइम सिल्क रोड’ (maritime silk road)|
  • इसके माध्यम से चीन वैश्विक मामलों में अपनी भागीदारी को बढ़ाना चाहता है|
  • इसे ‘वन बेल्ट, वन रोड पहल’ अथवा ‘सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट’ भी कहा जाता है|

निष्कर्ष
चीन की ‘बेल्ट और रोड’ पहल का उद्देश्य दो देशों के मध्य पूरकता लाना है| इसका तात्पर्य यह है कि अपने विकास के साथ-साथ ही अन्य देशों का भी विकास किया जाए| यद्यपि इसके लक्ष्यों को अभी औपचारिकता मिलनी शेष है| भारत एक ऐसी रणनीति बनाने का पक्षधर है जो यह सुनिचित करेगी कि विभिन्न देशों के एकसमान लक्ष्यों को नज़रंदाज़ न किया जाए|

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