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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम में पुनः संशोधन का विचार

  • 11 May 2017
  • 7 min read

संदर्भ
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी द्वारा विदेश से फंड प्राप्त करने के मामले में कोई कठोर कार्यवाही न किये जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा खरी खोटी सुनने के बाद गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम,1976 (Foreign Contribution Regulation Act -FCRA) में संशोधन के लिये महान्यायवादी के विचारों को संज्ञान में लेने का निर्णय लिया है| विदित हो कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने ‘वेदांता’ (यू.के. की कंपनी) की दो सहायक कंपनियों से ‘विदेशी फंड’ प्राप्त किया था| 

प्रमुख बिंदु

  • पिछले वर्ष एनडीए सरकार ने वित्त विधेयक के माध्यम से विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम में संशोधन किया था| इस संशोधन के पश्चात विदेशी मूल की कंपनियों को भारत के गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को फंड देने की अनुमति प्रदान कर दी गई थी| इसके अतिरिक्त, इसमें ‘विदेशी कंपनियों’ (foreign companies) की परिभाषा को बदलकर राजनीतिक दलों को दिये जाने वाले दान के तरीके को भी परिवर्तित कर दिया गया था| 
  • विडम्बना यह थी कि संशोधन के पश्चात भी इस अधिनियम ने मात्र वर्ष 2010 के पश्चात प्राप्त होने वाले ‘विदेशी दान’ को ही वैधता प्रदान की थी| विदित हो कि वर्ष 2010  में ही वर्ष 1976 के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम में संशोधन किया गया था|
  • गौरतलब है कि यह पूर्ववर्ती संशोधन वर्ष 2010 से पूर्व के विदेशी दान पर लागू नहीं होता था, इसी कारण एक राजनीतिक संस्था ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’  (Association for Democratic Reforms) ने मार्च 2017 में गृह मंत्रालय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक अवमानना याचिका दायर की जिसमें यह संकेत दिया गया था कि विदेशी दान प्राप्त करने वाले दो राजनीतिक दलों (कांग्रेस एवं बीजेपी) के विरुद्ध उच्च न्यायालय द्वारा जारी किये गए निर्देशों का अनुसरण नहीं किया गया|
  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के जगदीप चोक्कर का कहना है कि सरकार एक मृत विधान में परिवर्तन कैसे कर सकती हैं| ऐसा केवल पहले संशोधन को गलत साबित करने के लिये किया जा रहा है| इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि मानों सरकार पहले से ही समाप्त हो चुके ‘सती अधिनियम’ में संशोधन करने पर विचार कर रही है|

पृष्ठभूमि

  • दरअसल, कांग्रेस और बीजेपी दोनों राजनीतिक दलों पर राजनीतिक गतिविधियों के लिये गैर-कानूनी तरीके से विदेशी फंड प्राप्त करने का आरोप था| उनके द्वारा यह धन वर्ष 2004 से 2012 के मध्य यूं.के. की वेदांता नामक कंपनी से प्राप्त किया गया था| इसीलिये एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम का उल्लंघन करने के लिये दोनों दलों के खिलाफ याचिका दायर की थी| 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाया कि वर्ष 2014 में इन दोनों दलों द्वारा प्राप्त किया गया दान अवैध था; परन्तु दोनों ही दलों ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी फलस्वरूप यह याचिका वापस ले ली गई| 
  • इस वर्ष पुनः एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की है| ध्यातव्य है कि इस प्रकार के अपराध के लिये उन व्यक्तियों के लिये पाँच वर्ष के कारावास और आर्थिक दंड का प्रावधान है जो इस फंड को प्राप्त करने में राजनीतिक दलों का सहयोग करते हैं|

गृह मंत्रालय के तर्क एवं मनःस्थिति

  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment – FDI) के मानदंडों को समाप्त करने के पश्चात विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के तहत विदेशी कंपनियों की परिभाषा के संबंध में कई विसंगतियाँ उत्पन्न हो गई थीं| वस्तुतः विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के प्रावधान वित्त और वाणिज्य मंत्रालय के दृष्टिकोण के समान नहीं थे| 
  • दरअसल, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम में कई विसंगतियाँ हैं और इसके लिये संशोधनात्मक उपायों की आवश्यकता है| इसके लिये महान्यावादी के सुझावों पर विचार करना चाहिये| चूँकि 1976 के वास्तविक विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम को समाप्त कर दिया गया है|
  • गृह मंत्रालय ने 5,845 गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संगठनों को बैंकों में ऐसे खाते खोलने को कहा है जिनमें कोर-बैंकिंग की सुविधा हो और वे इन खातों का ब्यौरा सुरक्षा एजेंसी को उपलब्ध कराएंगे|
  • मंत्रालय ने 3,768 गैर-सरकारी संगठनों से यह कहा गया था कि उनके खातों में कोर बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है जबकि 2,077 एनजीओ से यह कहा गया कि वे अपने बैंक खाते का ब्यौरा दें क्योंकि मंत्रालय के पास ऐसे आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं|
  • वस्तुतः गृह मंत्रालय ने यह कदम इसलिये उठाया है क्योंकि कई एनजीओ का बैंक खाता को-ऑपरेटिव बैंकों अथवा राज्य सरकारों के प्रमुख बैंकों अथवा ऐसे बैंकों में है जिनमें कोर बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है|

विदेशी कम्पनियाँ और भारतीय कम्पनियाँ 
विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के प्रावधानों के तहत 50% से अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश वाली कंपनी को ‘विदेशी कंपनी’ कहा जाता है| वस्तुतः वित्त और वाणिज्य मंत्रालय उन कंपनियों को भारत की कम्पनियाँ मानते हैं जिनमें भारतीय निदेशक होते हैं तथा उनके सहायक के रूप में भारतीय कर्मचारी होते हैं|

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