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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट 2014-17

  • 09 Dec 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (National Trachoma Survey Report, 2014-17) जारी की गई। आपको जानकारी देते चलें कि भारत अब ‘रोग पैदा करने वाले ट्रेकोमा’ से मुक्‍त हो गया है। यह स्वास्थ्य देखभाल के संबंध में भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वेक्षण के निष्‍कर्षों से प्राप्त जानकारी से स्पष्ट संकेत मिलता है कि जिन ज़िलों में सर्वेक्षण कार्य को संपन्न किया गया, वहाँ बच्‍चों में ट्रेकोमा का संक्रमण लगभग पूरी तरह से समाप्‍त हो चुका है। 
  • इसकी मौजूदगी मात्र 0.7 प्रतिशत ही रह गई है। यह डब्‍ल्‍यू.एच.ओ. द्वारा परिभाषित ट्रेकोमा की समाप्ति के मानक से बहुत कम है। 
  • वस्तुतः ट्रेकोमा को उस स्थिति में समाप्‍त माना जाता है, जब 10 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों में उसके सक्रिय संक्रमण की मौजूदगी 5 प्रतिशत से भी कम हो। 
  • इस संबंध में एंटीबायोटिक आईड्रॉप के प्रावधान, निजी स्तर पर सफाई, सुरक्षित जल की उपलब्‍धता, पर्यावरण संबंधी बेहतर स्‍वच्‍छता व्यवस्था, क्रोनिक ट्रेकोमा के लिये सर्जिकल सुविधाओं की उपलब्‍धता और देश में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सामान्‍य सुधार जैसे प्रयासों के पश्चात् इस स्थिति को हासिल किया गया है। 

सरकार का लक्ष्य क्या है?

  • सरकार का लक्ष्‍य देश से ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस (Trachomatoustrichiasis) को पूरी तरह से समाप्‍त करना है। 
  • ऐसे राज्‍य जिनसे अभी भी सक्रिय ट्रेकोमा के मामलों की जानकारी प्राप्त हो रही है, उन्‍हें ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस के मरीजों के समुदाय आधारित निष्‍कर्षों को प्राप्‍त करने के लिये एक रणनीति विकसित करने की ज़रूरत है।

आगे की राह

  • ऐसे मामलों की स्‍थानीय अस्‍पतालों में मुफ्त एंट्रोपियन सर्जरी/इलाज (entropion surgery/ treatment) की भी व्‍यवस्‍था की जानी चाहिये। 
  • इस संदर्भ में पहचाने गए प्रत्‍येक मामले को सावधानी से दर्ज़ किया जाना चाहिये तथा इसके प्रबंधन की स्थिति का डब्‍ल्‍यू.एच.ओ. के दिशा-निर्देशों के अनुसार रखरखाव किया जाना चाहिये। 
  • साथ ही भारत को ट्रेकोमा मुक्‍त प्रमाणित करने के लिये देश भर में इस बीमारी की पर्याप्‍त निगरानी किये जाने की आवश्यकता है। 
  • डब्‍ल्‍यू.एच.ओ. के दिशा-निर्देशों के अनुसार ट्रेकोमा निगरानी के संकेतों पर मासिक आँकड़े नियमित रूप से एन.पी.सी.बी. (राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम) को भेजे जाने चाहिये।
  • साथ ही राज्यों द्वारा ट्रेकोमा के किसी भी नए मामले तथा ट्रेकोमा सीक्‍वल (टीटी मामलों) की जानकारी देने के लिये लगातार निगरानी रखी जानी चाहिये।

ट्रेकोमा (Trachoma) क्या है?

  • ट्रेकोमा [रोहे-कुक्‍करे (Rohe/Kukre)] आंखों का एक दीर्घकालिक संक्रमण रोग है। यह अंधेपन का सबसे अहम् कारण है। 
  • यह खराब पर्यावरण और निजी स्तर पर स्‍वच्‍छता के अभाव तथा पर्याप्‍त पानी नहीं मिलने के कारण होने वाली बीमारी है। 
  • यह आंखों की पलकों के नीचे की झिल्‍ली को प्रभावित करता है। बार-बार संक्रमण होने पर आंखों की पलकों पर घाव होने लगते हैं। इससे कोर्निया को नुकसान पहुँचता है और अंधापन होने का खतरा पैदा हो जाता है। 
  • वर्ष 1950 में भारत में अंधेपन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण ट्रेकोमा संक्रमण ही था। उस समय गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश राज्य की कम से कम 50 प्रतिशत आबादी इस संक्रमण से प्रभावित थी।

राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा प्रचार सर्वेक्षण और ट्रेकोमा रैपिड असेसमेंट सर्वेक्षण

  • राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा प्रचार सर्वेक्षण (National Trachoma Prevalence Surveys) और ट्रेकोमा रैपिड असेसमेंट सर्वेक्षण (Trachoma Rapid Assessment Surveys) नामक इस कार्य को डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑपथैलमिक साइंस (Dr. Rajendra Prasad Centre for Ophthalmic Sciences), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान द्वारा नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्‍लाइंडनेस एंड विजुअल इम्‍पेयरमेंट (National Program for Control of Blindness & Visual Impairemet) के सहयोग से सम्पन्न किया गया। 
  • इस सर्वेक्षण को 23 राज्‍यों और संघ- शासित प्रदेशों के 27 सबसे अधिक जोखिम वाले ज़िलों में आयोजित किया गया था।
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