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आंतरिक सुरक्षा

नगा युद्धविराम समझौते का विस्तार

  • 21 Apr 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नगा युद्धविराम समझौता, नगा शांति प्रक्रिया, कार्बी आंगलोंग समझौता, 2021, ब्रू समझौता, 2020, बोडो शांति समझौता, 2020, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर

मेन्स के लिये:

उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व के दृष्टिकोण का महत्त्व, पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष की स्थिति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र ने केंद्र सरकार और तीन नगा समूहों के बीच संघर्ष विराम समझौते को एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया है जिस पर 19 अप्रैल, 2022 को हस्ताक्षर किये गए थे।

नगा युद्धविराम समझौता:

  • नगा समूहों में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-एनके ((NSCN-NK), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-रिफॉर्मेशन (NSCN-R) तथा नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के-खांगो (NSCN-K-Khango) शामिल हैं।
    • ये सभी समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-IM) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग (NSCN-K) के अलग-अलग गुट हैं।
  • यह समझौता नगा शांति प्रक्रिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण है तथा यह भारत के प्रधानमंत्री के 'उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व' के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • सितंबर 2021 में केंद्र ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (K) निकी ग्रुप के साथ एक वर्ष के लिये संघर्ष विराम समझौता किया था।
  • केंद्र ने इससे पहले अगस्त, 2015 में NSCN (IM) के साथ एक "फ्रेमवर्क एग्रीमेंट" पर हस्ताक्षर किये थे।

The-Naga-Struggle

नगा शांति प्रक्रिया 

  • वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद ‘नगा’ क्षेत्र प्रारंभ में असम का हिस्सा बना रहा। हालाँकि एक मज़बूत राष्ट्रवादी आंदोलन ने नगा जनजातियों के राजनीतिक संघ की मांग करना शुरू कर दिया और कुछ चरमपंथियों ने भारतीय संघ से पूरी तरह से अलग होने की मांग की।
  • वर्ष 1957 में असम के ‘नगा पहाड़ी क्षेत्र’ और उत्तर-पूर्व में ‘त्वेनसांग फ्रंटियर’ डिवीज़न को भारत सरकार द्वारा सीधे प्रशासित एक इकाई के तहत एक साथ लाया गया था।
  • वर्ष 1960 में यह तय किया गया कि नगालैंड को भारतीय संघ का एक घटक राज्य बनना चाहिये। नगालैंड ने वर्ष 1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया और वर्ष 1964 में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार ने सत्तासीन हुई।

उग्रवाद मुक्त समृद्ध पूर्वोत्तर  का दृष्टिकोण (विज़न) 

  • यह माना जाता हैं कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से पूर्वोत्तर राज्य देश के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
  • इसलिये इसका उद्देश्य 2022 तक पूर्वोत्तर में सभी प्रकार के विवादों को समाप्त करना तथा वर्ष 2023 में पूर्वोत्तर में शांति और विकास के एक नए युग की शुरुआत करना है।
  • इसके तहत सरकार पूर्वोत्तर की गरिमा, संस्कृति, भाषा, साहित्य और संगीत को समृद्ध कर रही है।
  • हालिया वर्षों में सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में सैन्य संगठनों के साथ कई शांति समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये हैं। उदाहरण 
    • कार्बी एंगलोंग समझौता, 2021: इसमें असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और असम की राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • ब्रू समझौता, 2020 : ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति व्यक्त की गई है।
    • बोडो शांति समझौता, 2020: वर्ष 2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसमें असम में बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) को अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई।
    • यह शांति समझौता एनएससीएन (एनके), एनएससीएन (आर), एनएससीएन (के)- खांगो, एनएससीएन (आईएम) जैसे नगा विद्रोह में शामिल विभिन्न सैन्य संगठनों के साथ किया 

पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष की स्थिति:

  • राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष: इसमें एक अलग राष्ट्र के रूप में एक विशिष्ट 'मातृभूमि' की अवधारणा को शामिल है।
    • नगालैंड: नगा विद्रोह, स्वतंत्रता की मांग के साथ शुरू हुआ।
      • हालांँकि आजादी की मांग काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन 'ग्रेटर नगालैंड' या 'नगालिम' की मांग सहित अंतिम राजनीतिक समझौते का लंबित मुद्दा बना हुआ है।
  • जातीय संघर्ष: प्रमुख जनजातीय समूह की राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभावशाली समूहों के  खिलाफ संख्यात्मक रूप से छोटे और कम प्रभावशाली जनजातीय समूहों के दावे को शामिल करना।
    • त्रिपुरा: वर्ष 1947 के बाद से राज्य की जनसांख्यिकीय प्रोफाइल परिवर्तित हुई है, जब नए उभरे पूर्वी पाकिस्तान/बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर पलायन ने बड़ी तादात में  आदिवासी क्षेत्र से बंगाली भाषी लोगों के बहुमत वाले क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया।
      • आदिवासियों को सीमितमूल्यों पर उनकी कृषि भूमि से वंचित कर दिया गया और उन्हें जंगलों में रहने के लिये मज़बूर कर दिया गया।
      • परिणामी तनाव बड़ी हिंसा और व्यापक आतंक का कारण बना।
  • उप-क्षेत्रीय संघर्ष:  उप-क्षेत्रीय संघर्ष में ऐसे आंदोलनों को शामिल किया जाता है जो उप-क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मान्यता देने को प्रेरित करते हैं और प्रायः राज्य सरकारों या यहाँ तक ​​कि स्वायत्त परिषदों के साथ सीधे संघर्ष में व्याप्त हो जाते हैं।
    • मिज़ोरम: हिंसक विद्रोह के अपने इतिहास और उसके बाद शांति की ओर लौटने वाला यह राज्य अन्य सभी हिंसा प्रभावित राज्यों के लिये एक उदाहरण है।
      • वर्ष 1986 में केंद्र सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच 'मिज़ो शांति समझौते' और अगले वर्ष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद मिज़ोरम में पूर्ण शांति और सद्भाव कायम है।
    • इसके अलावा मिज़ोरम के गठन के समय से ही असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद व्याप्त है।
  • अन्य कारण: प्रायोजित आतंकवाद, सीमापार से प्रवासियों की निरंतर आवाजाही के परिणामस्वरूप उत्पन्न संघर्ष, महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण को और मज़बूत करने के उद्देश्य के परिणामतः आपराधिक स्थितियाँ बन गई हैं।
    • असम: राज्य में प्रमुख जातीय संघर्ष 'विदेशियों' की आवाजाही के कारण है यहाँ विदेशियों से तात्पर्य सीमा पार ( बांग्लादेश) से असमिया से काफी अलग भाषा और संस्कृति वाले लोगों से है।
      • असम में हालिया तनाव नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की बहस से उत्पन्न हुआ है।
  • संघर्ष समाधान के तरीके:
    • सुरक्षा बलों/पुलिस कार्रवाई' को मज़बूत करना।
    • राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची, संविधान के भाग XXI के तहत विशेष प्रावधान जैसे तंत्र के माध्यम से अधिक स्थानीय स्वायत्तता।
    • उग्रवादी संगठनों से बातचीत।
    • विशेष आर्थिक पैकेज सहित विकास गतिविधियाँ।

Assam

 स्रोत :द हिंदू

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