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डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

दसवीं अनुसूची के तहत विलय

  • 30 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

दसवीं अनुसूची, व्हिप, राष्ट्रीय राजनैतिक दल

मेन्स के लिये:

राजनैतिक दलों को स्थिरता प्रदान करने में दलबदल विरोधी कानून का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने राजस्थान विधानसभा मे व्हिप (Whip) जारी कर अपने छह विधान सभा सदस्यों (Member of Legislative Assemblies-MLAs) को बहुमत परीक्षण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरुद्ध मतदान करने के लिये कहा है। हालाँकि BSP के ये 6 विधायक विलय घोषणा के साथ सितंबर 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे।

प्रमुख बिंदु:

  • BSP का तर्क है कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विलय किये बिना किसी राष्ट्रीय पार्टी की राज्य इकाई का विलय नहीं किया जा सकता है।
  • BSP द्वारा इन 6 विधानसभा सदस्यों के विलय को अवैध और असंवैधानिक करार दिया गया है तथा सर्वोच्च न्यायालय के दो निर्णयों का हवाला दिया गया है-
    • जगजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य, 2006: इस वाद में, हरियाणा विधानसभा में एकल सदस्यीय दलों (Single-Member Parties) के चार विधायकों द्वारा कहा गया कि उनकी पार्टियाँ विभाजित हो गईं है और वे बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। न्यायालय ने इस मामले में सदस्यों को अयोग्यता ठहराने के अध्यक्ष के निर्णय को बरकरार रखा।
    • राजेंद्र सिंह राणा और अन्य बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य, 2007: वर्ष 2002 में उत्तर प्रदेश में, समाजवादी पार्टी को समर्थन देने के लिये BSP से 37 विधानसभा सदस्य सरकार गिराने के उद्देश्य से अपनी पार्टी से अलग हो गए जिनकी कुल संख्या दल की सदस्य संख्या की एक-तिहाई थी। यहाँ सर्वोच्च न्यायालय यह कहते हुए इस विभाजन को अमान्य घोषित करार दिया कि ये सभी विधायक एक साथ पार्टी से अलग नहीं हुए हैं।
  • ध्यातव्य है कि उपर्युक्त दोनों मामले 91वें संवैधानिक संशोधन, 2003 से पूर्व हुए थे जिसके द्वारा दसवीं अनुसूची के अनुच्छेद 3 को हटा दिया गया था।
  • विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा 'हॉर्स ट्रेडिंग’ (सदन के सदस्यों की खरीद-फरोख्त) द्वारा एक-तिहाई विभाजन के नियम के दुरुपयोग को रोकने के लिये यह संशोधन लाया गया। किसी भी राजनैतिक दल द्वारा दल-बदल हेतु एक-तिहाई सदस्यों के लक्ष्य को प्राप्त करना आसान था जबकि वर्तमान प्रावधानों के अनुसार दलीय विभाज़न की स्थिति में दल के कुल सदस्यों के दो-तिहाई सदस्य किसी दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं तो उन्हें दल-बदल के नियमों से छूट प्रदान की गई है।

विलय के संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान:

  • पी.डी.टी. आचार्य के अनुसार, दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत विलय केवल दो मूल राजनीतिक दलों (Original Political Parties) के मध्य  हो सकता है जिसके लिये दो शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता है-
    • विलय दो मूल राजनीतिक दलों के बीच होना चाहिये।
    • इसके बाद सदन के दो-तिहाई सदस्य जो उस पार्टी से संबंधित है उन्हें इस विलय को स्वीकार करना होगा यदि  दो-तिहाई सदस्य इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो इस विलय को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
  • आचार्य के अनुसार, दलबदल विरोधी कानून केवल दल बदल पर अंकुश नहीं लगता है बल्कि मूल रूप से यह दलीय प्रणाली की भी रक्षा करता है।
  • संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, पी.डी.टी. आचार्य के इस मत से सहमत हैं कि वह पार्टी चुनाव के लिये उम्मीदवारों को खड़ा कर सकती है जिसका विलय दसवीं अनुसूची के तहत हुआ हो तथा एक आवश्यक शर्त यह है कि उस पार्टी के दो-तिहाई विधानसभा सदस्य विलय के लिये सहमत हों।
    • हालाँकि, फैजान मुस्तफा ने उपरोक्त स्थिति से असहमति व्यक्त करते हुए दो मूल दलों के बीच विलय की अवधारणा पर सवाल उठाया है। उनके अनुसार, इसका मतलब यह होगा कि विधायक दल को किसी भी राज्य में किसी के साथ विलय करने का कोई अधिकार नहीं है।
    • उन्होंने दसवीं अनुसूची के तहत 'विधानमंडल दल' की परिभाषा का उल्लेख किया, जिसे उन्होंने 'उस सदन के सभी सदस्यों से युक्त समूह' (group consisting of all the members of that House) के रूप में परिभाषित किया है
    • फैजान मुस्तफा के अनुसार, विलय को स्थानीय स्तर पर देखा जाना चाहिये न कि राष्ट्रीय स्तर पर। इन्होंने इस तथ्य की और ध्यान दिलाया कि दसवीं अनुसूची ’राष्ट्रीय पार्टी’ या क्षेत्रीय पार्टी के विभाजन के विषय में सूचित नहीं करती है।

पूर्व निर्णय:

  • जून 2019 में, तेलुगु देशम पार्टी (Telugu Desam Party-TDP) के पाँच में से चार संसद सदस्यों द्वारा भाजपा में शामिल होने के बाद उपराष्ट्रपति द्वारा तेलुगु देशम पार्टी को राज्यसभा में सत्तारुढ़ भाजपा के साथ ‘विलय’ करने के आदेश जारी किया गया था।
    • हालाँकि अभी भी उच्च सदन में अपने एक सांसद के माध्यम से तेलुगु देशम पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ की हुई है।
    • तेलुगु देशम पार्टी ने भी बसपा की तरह ही अपनी दलील दी थी कि ‘विलय’ केवल पार्टी के संगठनात्मक स्तर पर हो सकता है न कि सदन में।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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