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भारतीय अर्थव्यवस्था

मीडिया प्लेटफॉर्म बिल: ऑस्ट्रेलिया

  • 23 Feb 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

दिग्गज टेक कंपनियों द्वारा उनके प्लेटफॉर्म पर मीडिया कंपनियों से समाचार कंटेंट साझा करने के लिये मुआवज़े को लेकर चल रहे विवाद के बीच ऑस्ट्रेलिया ने भारत समेत कनाडा, फ्रांँस और यूनाइटेड किंगडम आदि से दिग्गज टेक कंपनियों जैसे- गूगल और फेसबुक के विरुद्ध एक वैश्विक गठबंधन स्थापित करने हेतु कदम उठाने का आग्रह किया है।

  • ऑस्ट्रेलिया द्वारा प्रस्तावित कानून ‘न्यूज़ मीडिया एंड डिजिटल प्लेटफॉर्म्स मैंडेटरी बार्गेनिंग कोड बिल 2020’, ‘गूगल’ और ‘फेसबुक’ जैसी दिग्गज टेक कंपनियों को समाचार कंपनियों के कंटेंट का उपयोग करने के लिये उन्हें क्षतिपूर्ति देना अनिवार्य बनाता है।
  • बिल सोशल मीडिया को विनियमित करने के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • ऑस्ट्रेलियाई प्रतिस्पर्द्धा एवं उपभोक्ता आयोग (ACCC) ने अपनी वर्ष 2019 की रिपोर्ट में समाचार मीडिया कंपनियों और इंटरनेट प्लेटफाॅर्मों के बीच बुनियादी शक्ति असंतुलन का उल्लेख किया था।
  • गूगल और फेसबुक का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इन प्लेटफाॅर्मों के पास कई समाचार मीडिया कंपनियों से पर्याप्त सौदेबाज़ी करने शक्ति है।
  • रिपोर्ट में कहा गया कि मीडिया विनियमन इन प्लेटफाॅर्मों पर लागू नहीं हो रहे हैं, जबकि ये प्लेटफॉर्म तेज़ी से स्वयं को मीडिया कंपनियों के रूप में परिवर्तित कर रहे हैं। 
  • इस रिपोर्ट के आधार पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने लोकतंत्र में एक मजबूत और स्वतंत्र मीडिया की आवश्यकता को महसूस करते हुए ऑस्ट्रेलियाई प्रतिस्पर्द्धा एवं उपभोक्ता आयोग (ACCC) को इस संबंध में एक मसौदा संहिता प्रस्तुत करने के लिये कहा, जो कि आयोग द्वारा जुलाई 2020 में प्रस्तुत की गई।
  • कुछ परिवर्तनों के पश्चात् ट्रेज़री कानून संशोधन (न्यूज़ मीडिया एंड डिजिटल प्लेटफॉर्म्स मैंडेटरी बार्गेनिंग कोड) बिल को दिसंबर 2020 में प्रस्तुत किया गया था।

बिल संबंधित मुख्य विशेषताएँ

  • न्यूज़ आउटलेट्स को भुगतान: फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी टेक और सोशल मीडिया कंपनियों को स्थानीय समाचार कंपनियों के कंटेंट का प्रयोग करने हेतु उन कंपनियों को भुगतान करना होगा।
    • भुगतान करने से संबंधित तंत्र और प्रणाली को लेकर बड़ी टेक और सोशल मीडिया कंपनियों को स्थानीय समाचार कंपनियों के साथ वार्ता करनी होगी।
  • मध्यस्थता और अर्थदंड का प्रावधान: यदि कोई समझौता नहीं हो पाता है तो एक मध्यस्थ को मामले का निपटान करने का अधिकार दिया गया है, साथ ही ऐसी स्थिति में भारी जुर्माने का भी प्रावधान है।

संबंधित मुद्दे

  • मीडिया उद्योग पहले से ही डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा दिये जा रहे ट्रैफिक से लाभान्वित हो रहा है और प्रस्तावित नियम इंटरनेट कंपनियों के समक्ष गंभीर ‘वित्तीय एवं परिचालन जोखिम’ उत्पन्न करेंगे।
  • पत्रकारिता को लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है। प्रायः यह देखा जाता है कि सोशल मीडिया और टेक कंपनियाँ बिना राजस्व साझा किये उनके कंटेंट का प्रयोग करती हैं, इसके कारण वस्तुतः पारंपरिक मीडिया, विशेष रूप से क्षेत्रीय समाचार पत्रों की भूमिका काफी प्रभावित हुई है।
  • समाचार फीड के लिये कंपनियों को भुगतान करना टेक और सोशल मीडिया कंपनियों के लिये एक बड़ा विषय नहीं है, क्योंकि गूगल ने पहले ही फ्रांँस में समाचार प्रकाशनों को भुगतान करने पर सहमति व्यक्त कर दी है।
    • गूगल ने हाल ही में ऑनलाइन समाचार कंटेंट के डिजिटल कॉपीराइट भुगतान हेतु फ्रांँस के प्रकाशकों के एक समूह के साथ समझौता किया है।
  • ऑस्ट्रेलिया के इस नए कानून में मुख्य तौर पर इस बात को लेकर विरोध है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया कंपनियाँ इस भुगतान प्रक्रिया पर कितना नियंत्रण रख पाएंगी यानी परिचालन संबंधी पहलू जैसे कि समाचार फीड के लिये भुगतान की मात्रा तय करने में उनकी कितनी भूमिका होगी।
    • फ्रांँस में भुगतान प्रक्रिया को कॉपीराइट से जोड़ा गया है।
    • दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया का बिल लगभग पूरी तरह से समाचार आउटलेट्स की सौदा करने की शक्ति पर केंद्रित है।

भारत के संदर्भ में 

  • भारत में अब तक नीति निर्माताओं ने गूगल और फेसबुक जैसी मध्यवर्ती संस्थाओं के प्रभुत्व पर ध्यान केंद्रित किया है, जो कि वर्तमान में ऐसी स्थिति में हैं, जहाँ कोई भी सेवा प्रदाता इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग किये बिना ग्राहकों तक नहीं पहुँच सकता है।
  • समाचार मीडिया आउटलेट्स पर इन प्लेटफाॅर्मों के प्रभाव को लेकर भी अभी तक भारत में कोई सार्थक चर्चा शुरू नहीं हो सकी है।
  • फिक्की और इर्नस्ट एंड यंग (EY) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में ऑनलाइन समाचार साइटों, पोर्टलों और एग्रीगेटर्स के कुल 300 मिलियन उपयोगकर्त्ता हैं।
    • इसमें भारत के 46 प्रतिशत इंटरनेट उपयोगकर्त्ता और 77 प्रतिशत स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ता शामिल हैं। 
    • 282 मिलियन ‘यूनिक विज़िटर्स’ के साथ भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन समाचार उपभोक्ता है।
  • भारत में वर्ष 2019 में डिजिटल विज्ञापन खर्च वार्षिक आधार पर 24 प्रतिशत बढ़कर 27,900 करोड़ रुपए पहुँच गया है और एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2022 तक यह बढ़कर 51,340 करोड़ रुपए हो जाएगा।
  • भारत में समाचार एग्रीगेटर्स के लिये प्रकाशकों को भुगतान करना अनिवार्य नहीं है। 
    • समाचार एग्रीगेटर एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या एक सॉफ्टवेयर डिवाइस हो सकता है, जो प्रकाशन हेतु खबरों और अन्य सूचनाओं को एकत्रित करता है और उन्हें विशिष्ट तरीके से व्यवस्थित करता है।

आगे की राह

  • भारत के पास एक विशिष्ट मीडिया बाज़ार मौजूद है, जो कि देश की विविधता के कारण और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। उदाहरण के लिये भारत में मीडिया प्लेटफॉर्म कई भाषाओं में कार्य करते हैं। यद्यपि ऑस्ट्रेलिया का बिल भारत की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकता है, हालाँकि भारत के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह ऑस्ट्रेलिया द्वारा निर्धारित फ्रेमवर्क के साथ ही आगे बढ़े। 
  • सोशल डिजिटल प्लेटफाॅर्मों ने सूचना तक पहुँच की लोकतांत्रिक व्यवस्था का काफी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। हालाँकि उनके लगातार बढ़ते आकार और राजस्व मॉडल के कारण समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और कई नवीन चुनौतियाँ जैसे- फेक न्यूज़ और सांप्रदायिक विभाजन आदि की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं। आवश्यक है कि सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिये यथासंभव प्रयास करे, ताकि ऐसी चुनौतियों से लोकतंत्र की रक्षा की जा सके। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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