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जैव विविधता और पर्यावरण

तेलंगाना के नलगोंडा में चमगादड़ों के लिये काली रात

  • 06 Aug 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

येरूकाला आदिवासियों द्वारा परंपरागत रूप से चमगादड़ों का शिकार किया जाता है, लेकिन अब चमगादड़ों की मांग जादू- टोने और विश्वास-चिकित्सा आदि के चलते बढ़ती जा रही है।

प्रमुख बिंदु

  • तेलंगाना में येरूकाला समुदाय के पुरुष चमगादड़ों का शिकार करते हैं। येरूकाला  समुदाय जो अनुसूचित जनजातियों के अंतर्गत आते हैं, के कुछ सदस्य परंपरागत रूप से चमगादड़ के माँस को स्थानीय भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। 
  • येरूकाला जनजाति के अनुसार, बकरियों और मुर्गों का माँस महँगा होता है लेकिन उनकी तुलना में चमगादड़ का माँस निःशुल्क होता है और फलों के पराग से पोषित होने के कारण प्राकृतिक रूप में स्वादिष्टता से भरपूर होता है। 
  • मुर्गे की तरह चमगादड़ को भूना, भरा, तला या पकाया जाता है और चावल के साथ खाया जाता है। इसे पकाने के दौरान एकमात्र समस्या यह उत्पन्न होती है कि ये एक तीक्ष्ण गंध उत्पन्न करते हैं जो मूत्र के समान होती है। 
  • आमतौर पर एक परिवार के लिये चार चमगादड़ पकड़े जाते हैं, जिनमें प्रत्येक का वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है। हाल के दिनों में येरूकाला आदिवासियों द्वारा थोड़े से धन के लिये गैर-आदिवासी ग्राहकों की चमगादड़ों की मांग को पूरा किया जाता है। 
  • इनके ग्राहक वर्ग में प्राकृतिक चिकित्सक, जादू-टोना करने वाले, कुछ वैद्य और अधिकारी तथा कुछ "शोध उद्देश्यों" का हवाला देने वाले लोग शामिल होते हैं। 

मिथकों में विश्वास 

  • कुछ खरीदारों का मानना ​​है कि चमगादड़ का माँस श्वसन और संधि रोगों का इलाज करने में मदद करता है। अन्य लोग यह मिथक मानते हैं कि इसकी वसा एक कामोत्तेजक औषधि है। 
  • येरूकाला द्वारा जीवन निर्वाह हेतु किया जाने वाला चमगादड़ों का शिकार नगण्य है। आवासों का विनाश, फलदायक वृक्षों को काटना और वन भूमि का एसईजेड के रूप में संरक्षण किया जाना आदि चमगादड़ों की समाप्ति के प्रमुख कारण हैं। 
  • बगीचे में कीटनाशकों का उपयोग भी चमगादड़ों के लिये एक प्रमुख खतरा है जिस पर चमगादड़ भोजन के लिये निर्भर हैं। 
  • यद्यपि चमगादड़ की कई प्रजातियाँ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत सूचीबद्ध हैं, लेकिन फ्रूट्स बैट्स वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची-v में नाशक जीव के रूप में सूचीबद्ध है। 
  • चमगादड़ जीवविज्ञानी कहते हैं कि फ्रूट्स बैट्स कीट नियंत्रण में मदद करते हैं और परागण तथा बीज के फैलाव में सहायक हैं।
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