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डेली न्यूज़

शासन व्यवस्था

EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित मुद्दा

  • 08 Jan 2020
  • 3 min read

प्रीलिम्स के लिये:

आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण, आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग, 103वाँ संविधान संशोधन, अनुच्छेद 15 (6), अनुच्छेद 16 (6)

मेन्स के लिये:

आरक्षण संबंधी मुद्दे, केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

7 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार ने तमिलनाडु एवं कर्नाटक में आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया। ध्यातव्य है कि तमिलनाडु एवं कर्नाटक में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (Economic Weaker Sections- EWS) को दिया जाने वाला 10% आरक्षण अभी लागू नहीं किया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • गौरतलब है कि तमिलनाडु और कर्नाटक में आर्थिक आधार पर आरक्षण कानून लागू नहीं है इसके संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट दायर की गई थी जिसके जवाब में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना मत प्रस्तुत किया है।
  • केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया है कि सरकारी नौकरियों में और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिये 10% आर्थिक आरक्षण देना राज्यों का विशेषाधिकार है।
  • संविधान के अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) के प्रावधानों के अनुसार, राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिये आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आरक्षण प्रदान करने या नहीं करने की शक्ति राज्य सरकार के पास है। अतः किसी भी राज्य की आरक्षण नीति को तय करने में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

आर्थिक आरक्षण कानून से संबंधित तथ्य

  • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training) द्वारा 19 जनवरी, 2019 को जारी अधिसूचना के अनुसार, जिन व्यक्तियों के परिवार की कुल वार्षिक आय 8 लाख रूपए से कम है, उनकी पहचान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों में की जाती है।
  • यह कानून अनारक्षित श्रेणी में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • ध्यातव्य है कि इस कानून को वैद्यता परीक्षण हेतु सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है किंतु सर्वोच्च न्यायलय ने अभी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है और न ही इस कानून के लिये किये गए 103वें संविधान संशोधन को अमान्य करने से संबंधित कोई फैसला सुनाया है।

स्रोत: द हिंदू

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