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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रक्षा क्षेत्र के शक्ति संवर्द्धन में कारगर रहेगी 'आर्टिलरी गन'

  • 16 Sep 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

डीआरडीओ और निजी क्षेत्र के सहयोग से बने एक स्वदेशी ‘आर्टिलरी गन’ (तोप के समान एक बंदूक) ने 48 किमी की दूरी पर स्थित लक्ष्य को भेदकर एक नया विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। विदित हो कि इस ‘आर्टिलरी गन’ का नाम ‘एडवांस्ड टॉवड आर्टिलरी गन सिस्टम’ (Advanced Towed Artillery Gun System-ATAGS) है।

एटीएजीएस से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • सेना के तोपखाने के आधुनिकीकरण कार्यक्रम के एक भाग के रूप में डीआरडीओ द्वारा 155 एमएम और 52 कैलिबर के ‘आर्टिलरी गन’ को मिशन मोड में विकसित किया गया है।
  • इसका विकास परस्पर सहयोग आधारित एक मॉडल के माध्यम से किया जा रहा है। गौरतलब है कि ‘पिनाका बहु-बैरल रॉकेट लांच प्रणाली’ के लिये भी यही सिस्टम अपनाया गया है।
  • इसे डीआरडीओ द्वारा डिज़ाइन किया गया है, जबकि निजी क्षेत्र से ‘कल्याणी ग्रुप’, ‘टाटा पावर स्ट्रेटेजिक इंजीनियरिंग डिवीज़न’ और ‘महिंद्रा डिफेंस नेवल सिस्टम’ ने इसमें भागीदारी की है।
  • इस ‘आर्टिलरी गन’ में उन्नत संचार प्रणाली, स्वचालित कमांड और नियंत्रण प्रणाली सहित कई महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं।

आधुनिकीकरण और स्वदेशी निर्माण

  • वर्तमान समय में भारतीय सेना बदलाव के दौर से गुज़र रही है, सामरिक नीतियों में रक्षा क्षेत्र का महत्त्व बढ़ता ही जा रहा है। भारत क्षेत्रीय शक्ति से वैश्विक शक्ति बनने की राह पर अग्रसर है और इन सबके बीच भारतीय सेना का आधुनिकीरण किया जाना अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • परंपरागत और अप्रचलित हथियारों को आधुनिक हथियारों से बदलने की आवश्यकता तो है ही, साथ में यह भी आवश्यक है कि सेना को बदलते वक्त की चुनौतियों के अनुरूप बनाया जाए।
  • इसी क्रम में रक्षा मंत्रालय अब स्वदेश निर्मित अस्त्र-शस्त्रों पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है और इस कार्य में स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। देश की सीमाओं पर संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है और ऐसे में हमें अपनी सेना का आधुनिकीकरण करना होगा।
  • आधुनिकीकरण के लिये सेना को नए उपकरणों एवं तकनीकों से लैस करना होगा, पुरानी तकनीकों एवं उपकरणों को नवीनतम और आधुनिक तकनीकों तथा उपकरणों से बदलना होगा। इसके लिये सरकार उपकरणों के स्वदेशीकरण के प्रयास भी कर रही है।
  • भारत द्वारा स्वनिर्मित यह ‘आर्टिलरी गन’ सेना के आधुनिकरण और स्वनिर्माण को बढ़ावा देगा।
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