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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बाज़ार में उपलब्ध मछलियाँ कितनी सुरक्षित हैं?

  • 26 Mar 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
पिछले कुछ समय से बाज़ार में उपलब्ध मछलियों के स्वास्थ्यकारी होने तथा खतरनाक रासायनिक तत्त्वों से सुरक्षित होने का मुद्दा तूल पकड़ा हुआ है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मछली उत्पादकों द्वारा मछलियों को बाज़ार तक पहुँचाने के लिये बर्फ से भरे डिब्बों/बर्तनों आदि का प्रयोग किया जाता है। इन डिब्बों/बर्तनों में पैक मछलियों में फॉर्मेल्डिहाइड और अमोनिया जैसे हानिकारक रसायन उपस्थित होते हैं।

फॉर्मेल्डिहाइड और अमोनिया का इस्तेमाल

  • मछली कारोबारी लंबे समय तक मछली में ताजगी बनाए रखने के लिये इन खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। फॉर्मेल्डिहाइड मछली को अधिक समय तक ताज़ा बनाए रखता है और कृत्रिम रूप में मछलियों का ताज़ा स्वरूप बनाए रखने में मददगार साबित होता है। इसकी सहायता से मछली कारोबारी लंबे समय तक बाज़ार में इन्हें बेच पाते हैं।
  • वहीं दूसरी तरफ अमोनिया बर्फ पिघलने की प्रक्रिया को धीमी करने में सहायक होती है, स्पष्ट रूप से यह मछलियों की सड़ने की दर को तो कम करती ही है साथ ही उनमें होने वाली सड़न का पता भी नहीं लगने देती है। इससे मछलियों के गिल का लाल रंग बरकरार रहता है और उनकी त्वचा की चमक भी बनी रहती है।

स्वास्थ्य के लिये खतरे का संकेत

  • आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की संस्था इंटरनैशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर द्वारा फॉर्मेल्डिहाइड को कैंसर का कारण बनने वाले तत्त्व के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यह तत्त्व नाक के पीछे वाले भाग और गले के ऊपरी भाग के कैंसर का कारण बन सकता है, इसके संबंध में उक्त संस्था द्वारा विभिन्न साक्ष्य भी मौजूद कराए गए हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए बहुत से देशों द्वारा खाद्य उत्पादों में इसका इस्तेमाल तक को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • कोच्चि स्थित सेंटर इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज़ टेक्नोलॉजी (Central Institute of Fisheries Technology-CIFT) के वैज्ञानिकों के अनुसार, खाद्य पदार्थ में फॉर्मेल्डिहाइड की अधिक मात्रा होने से पेट दर्द, दस्त, गुर्दे संबंधी समस्याएँ होती हैं। कुछ मामलों में तो इसके कारण मौत भी हो सकती है। 
  • फॉर्मेल्डिहाइड और इसके संकेद्रित घोल फॉर्मेलिन का इस्तेमाल जीवाणु (बैक्टीरिया) को मारने के लिये किया जाता है। इतना ही नहीं, इसका इस्तेमाल प्लास्टिक, पेंट और वस्त्र जैसे उद्योगों में भी होता है।
  • स्पष्ट है कि इतने खतरनाक तत्त्व का इस्तेमाल मछलियों में किये जाने का सीधा असर मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है और वह विभिन्न प्रकार की खतरनाक बीमारियों का शिकार हो जाता है। 
  • हालाँकि, इसी तुलना में अमोनिया उतना खतरनाक नहीं माना जाता है, तथापि मछलियों को ज़्यादा देर तक ताज़ा बनाए रखने में इसका इस्तेमाल अनुचित माना गया है।
  • इस विषय में की गई शोध में यह जानकारी सामने आई है कि मछलियों के कारोबार, इसके परिवहन तथा मछलियों को सुरक्षित बनाए रखने हेतु प्रयुक्त बर्तनों में अमोनिया की मौजूदगी की पुष्टि की है।
  • इस तरह का अनुचित व्यवहार रोकने के लिये खाद्य गुणवत्ता के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसियों के साथ-साथ सरकार को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।

समाधान हेतु किये गए उपाय 

  • इन अशुद्धियों का पता लगाने के लिये सीआईएफटी द्वारा पोर्टेबल रैपिड टेस्टिंग किट विकसित की गई है। इस किट को 'सीआईएफटी टेस्ट किट' नाम दिया गया है।
  • इस किट में एक विशेष कागज़ की पट्टी (पेपर स्ट्राइप), रीएजेंट सॉल्यूशन और एक स्टैंडर्ड कलर चार्ट होता है।
  • अशुद्धियों का पता लगाने के लिये सबसे पहले मछली के शरीर के विभिन्न हिस्सों के ऊपर पेपर स्ट्राइप रखी जाती है, इसके बाद रीएजेंट सॉल्यूशन डाला जाता है। ऐसा करने के एक से दो मिनट के बाद पेपर स्ट्राइप के रंग में आए बदलाव का मिलान स्टैंडर्ड चार्ट से किया जाता है।
  • प्रत्येक जाँच पर इस समय 2 रुपए खर्च होते हैं, क्योंकि यह बहुत सस्ती और प्रयोग में सरल होती है।
  • कुछ मछली कारोबारियों द्वारा दूसरे हानिकारक तत्त्वों जैसे- सोडियम बेंजोएट आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके संदर्भ में सीआईएफटी द्वारा एक डिटेंशन किट विकसित की जा रही है।
  • आपको बता दें कि कुछ समय पहले भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India –FSSAI) को मछली और मछली उत्पादों की गुणवत्ता की जाँच के लिये आधिकारिक प्रयोगशाला घोषित किया गया है।
  • कई राज्य, जैसे- त्रिपुरा, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु द्वारा भी मछली संरक्षण एवं परिवहन के क्षेत्र में इन हानिकारक तत्त्वों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये इस किट में विशेष रुचि प्रकट की गई है।

निष्कर्ष
ग्राहकों की अच्छी गुणवत्ता वाली ताज़ा एवं स्वास्थ्यवर्द्धक मछलियों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी कुछ कड़े एवं प्रभावी कदम उठाने चाहियें। साथ ही प्रदेश के मछलीपालन केंद्रों और खाद्य विभागों द्वारा इस प्रकार की किट के इस्तेमाल को अधिक-से-अधिक बढ़ावा देने पर भी बल दिया जाना चाहिये।

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