भारतीय राजव्यवस्था
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर विवाद
- 14 Jul 2020
- 9 min read
प्रीलिम्स के लिये:श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास और इसकी अवस्थिति मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय ने केरल के तिरुवनंतपुरम में प्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार के अधिकारों को बरकरार रखा है।
प्रमुख बिंदु:
- इस संबंध में न्यायालय ने कहा कि प्रथागत कानून के अनुसार, अंतिम शासक की मृत्यु के बाद भी, शबैत अधिकार अर्थात मंदिर से संबंधित मामलों के प्रबंधन करने का अधिकार परिवार के शेष सदस्यों के साथ बना रहता है।
- गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से विश्व के सबसे धनी मंदिरों में से एक के रूप में पहचाने जाने वाले श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को लेकर सरकार और त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार के सदस्यों के बीच चल रही दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई है।
मंदिर के प्रबंधन का इतिहास:
- वर्ष 1949 में त्रावणकोर और कोचीन की रियासत तथा भारत सरकार के बीच इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन (Instrument of Accession-IOA) यानी किसी रियासत के देश में शामिल होने के लिखित पत्र पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके अनुसार श्री
- पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार ‘त्रावणकोर के शासक’ में निहित था।
- वर्ष 1956 में नए केरल राज्य का निर्माण कर दिया गया, किंतु मंदिर का प्रबंधन अभी भी पूर्ववर्ती राजशाही परिवार द्वारा ही किया जाता रहा।
- वर्ष 1971 में सरकार ने संविधान संशोधन के माध्यम से ‘प्रिवी पर्स’ (एक भुगतान, जो शाही परिवारों को भारत के साथ विलय के बाद दिया जाता था) को समाप्त कर दिया।
- जुलाई, 1991 में त्रावणकोर के अंतिम शासक की मृत्यु हो गई और मंदिर का प्रबंधन अंतिम शासक की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा के पास चला गया।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर
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क्या है विवाद?
- वर्ष 2007 में उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा ने दावा किया कि मंदिर का खजाना त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार की संपत्ति है।
- इस दावे पर आपत्ति जताते हुए कई मुकदमे दायर किये गए और केरल की एक निचली अदालत ने दोषियों के विरुद्ध निषेधाज्ञा पारित कर दी।
- वहीं उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा और कुछ अन्य लोग इस मामले को केरल उच्च न्यायालय के समक्ष लेकर गए, न्यायालय ने सभी मामलों की एक साथ सुनाई की और इस विषय पर विचार किया कि क्या त्रावणकोर के अंतिम शासक के छोटे भाई,
- वर्ष 1991 में अंतिम शासक की मृत्यु के बाद ‘त्रावणकोर के शासक’ होने का दावा कर सकते हैं अथवा नहीं।
- वर्ष 2011 में केरल उच्च न्यायालय ने शाही परिवार के विरुद्ध निर्णय देते हुए मंदिर के मामलों का प्रबंधन करने के लिये एक बोर्ड के गठन का आदेश पारित कर दिया।
सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय:
- केरल उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई, याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक
- लगा दी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में वर्ष 2011 के केरल उच्च न्यायलय के निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि एक शासक की मृत्यु से शाही परिवार की मंदिर की विरासत प्रभावित नहीं होती है।
- वर्ष 2011 में केरल उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि वर्ष 1991 में त्रावणकोर के अंतिम शासक की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी मंदिर पर किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकते थे, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च
- न्यायालय के इस तर्क को खारिज कर दिया।
- यह स्वीकार करते हुए कि प्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर एक ‘सार्वजनिक मंदिर’ है, सर्वोच्च न्यायालय ने भविष्य में इसके पारदर्शी प्रशासन के लिये कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं-
- न्यायालय ने तिरुवनंतपुरम ज़िला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक प्रशासनिक समिति के गठन का निर्देश दिया है।
- इस प्रशासनिक समिति में अन्य सदस्यों के तौर पर ट्रस्टी (शाही परिवार) द्वारा नामित व्यक्ति, मंदिर का मुख्य थानथ्री अथवा पुजारी, राज्य सरकार द्वारा नामित व्यक्ति और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा नामित व्यक्ति शामिल होंगे।
- इसके अलावा न्यायालय ने नीतिगत मामलों पर प्रशासनिक समिति को सलाह देने के लिये एक अन्य समिति गठित करने का भी आदेश दिया है। इस समिति की अध्यक्षता केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, इन समितियों का प्राथमिक कार्य मंदिर के खजाने और संपत्ति का संरक्षण करना होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ:
- गौरतलब है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर वर्ष 2011 में अपने भूमिगत तहखानों में आभूषण, जवाहरात और अन्य कीमती सामान के रूप में 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक के खजाने की खोज के बाद चर्चा में आया था।
- तभी से इस विषय पर एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है कि इस मंदिर पर किसका स्वामित्त्व है और इसका संरक्षण किसके द्वारा किया जाना चाहिये।
- त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत किया है, वहीं केरल सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्वीकार करने की बात की है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, ‘यह दुनिया का सबसे धनी मंदिर माना जाता है और यहाँ के स्थानीय श्रद्धालु चाहते थे कि इस मंदिर का प्रबंधन शाही परिवार द्वारा किया जाए, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय मुख्यतः श्रद्धालुओं के पक्ष में दिया है।’
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त की गई पाँच सदस्यीय समिति आगामी समय में मंदिर के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी।