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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

हिमालयन आईबेक्स

  • 31 Mar 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

हिमालयन आईबेक्स, एलोपैट्रिक, सिम्पैट्रिक

मेन्स के लिये:

हिमालयन जैव विविधता 

चर्चा में क्यों?

‘एंडेंजर्ड स्पीशीज़ रिसर्च’ (Endangered Species Research) पत्रिका में प्रकाशित लेख के अनुसार ‘भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण’ (Zoological Survey of India- ZSI) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन में यह देखा गया है कि हिमालयन आईबेक्स (Himalayan Ibex) प्रजाति, साइबेरियन आईबेक्स (Siberian Ibex) प्रजाति से अलग तथा विशिष्ट प्रजाति है।

मुख्य बिंदु:

  • पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित ‘हिमालय अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Himalayan Studies) के माध्यम से वित्त पोषित एक परियोजना के तहत, लाहौल तथा स्पीति (हिमाचल प्रदेश) में आईबेक्स पर फील्ड सर्वेक्षण किया किया तथा इसके मल के नमूने एकत्र किये गए।
  • मध्य एशिया, ताजिकिस्तान, अल्ताई पर्वत, मंगोलिया और रूस की श्रेणियों में पाई जाने वाली आईबेक्स की प्रजातियों के आनुवांशिक अनुक्रम विश्लेषण किया गया तथा इसमें यह पाया गया कि हिमालयन साइबेरियाई आईबेक्स की अन्य सभी श्रेणियों से आनुवंशिक रूप से अलग है।
  • आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला कि साइबेरियन आईबेक्स की आनुवांशिक संरचना में प्लीस्टोसिन युग (2.4 मिलियन वर्ष पहले) में परिवर्तन आया था न कि मायोसीन-प्लायोसीन (6.6 मिलियन वर्ष) युग के दौरान।

आईबेक्स का वितरण:

  • भौगोलिक क्षेत्र:
    • साइबेरियन आईबेक्स जंगली बकरी की एक प्रजाति है जो शीत मरुस्थल, चट्टानी दृश्य भूमि, तीव्र ढाल के क्षेत्र, उच्च समतल भूमि, पर्वतीय कगार तथा पहाड़ों की तलहटी जैसे विभिन्न आवासों में निवास करती है।
  • वैश्विक वितरण: 
    • इसकी आबादी मंगोलिया से अल्ताई, हंगाई (Hangai), गोबी-अल्ताई, हुरुख पर्वत (Hurukh Mountain) जैसी पर्वत शृंखलाओं के साथ-साथ सयान पर्वत (Sayan Mountains) तक पाई जाती है तथा कुछ-कुछ आबादी ट्रांस-अल्ताई गोबी के छोटे पहाड़ों में पाई जाती है।
  • एशिया में वितरण:
    • एशिया में आईबेक्स भारत, कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान, मंगोलिया, पाकिस्तान, दक्षिणी साइबेरिया तथा चीन में 500 मीटर से 6,700 मीटर की ऊँचाई के पर्वतीय आवसों में निवास करती है। 
  • भारत में वितरण:
    • भारत में आईबेक्स मुख्य रूप से लद्दाख, जम्मू-कश्मीर के ट्रांस-हिमालय पर्वत श्रेणियों तथा हिमाचल प्रदेश के सतलज नदी क्षेत्र तक पाई जाती है।

हिमालयन आईबेक्स:

  • इसे IUCN (International Union for Conservation of Nature) की लीस्ट कंसर्ड (Least Concerned) श्रेणी में रखा गया है। 
  • इसका वैज्ञानिक नाम कैप्रा सिबेरिका (Capra Sibirica) है। 
  • इसे वन्यजीव (संरक्षण अधिनियम) की सूची-1 में रखा गया है। 
  • यह भारत में मुख्यत: पिन वैली (हिमाचल प्रदेश) तथा कांजी अभयारण्य (जम्मू-कश्मीर) में पाई जाती है। 

शोध का महत्त्व:

  • इस अध्ययन से आईबेक्स के वितरण तथा विकास प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी।
  • यह अध्ययन वैश्विक विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित करेगा तथा IUCN के तहत प्रजातियों का फिर से मूल्यांकन करने में मदद करेगा।
  •  भारत-ताजिकिस्तान आईबेक्स की विशिष्ट पहचान वैश्विक स्तर पर इस प्रजाति के संरक्षण को प्राथमिकता देगा।

आगे की राह:

  • वैज्ञानिक समुदाय अब यह समझने की कोशिश कर रहे है कि किस प्रकार पर्वतीय दोलन (Mountain Oscillations: पर्वतीय ऊँचाई में समय के साथ परिवर्तन) एलोपैट्रिक प्रजातियों को जन्म देता है। 

प्रजातीयकरण (Speciation):

  • प्रजातीयकरण नए प्रकार के पौधे या जानवरों की प्रजाति उत्पत्ति संबंधी अवधारणा है। प्रजातीयकरण तब होता है जब एक प्रजाति के भीतर एक समूह अपनी प्रजातियों के अन्य सदस्यों से अलग हो जाता है तथा अपनी अनूठी विशेषताओं को विकसित करता है।
  • प्रजातीयकरण के पाँच प्रकार के होते हैं, इनमें से एलोपैट्रिक तथा सिम्पैट्रिक महत्त्वपूर्ण हैं।

एलोपैट्रिक (Allopatric):

  • जलवायु परिवर्तन की एक श्रृंखला, कालिक स्थलाकृतिक रुपांतरण प्रजातियों के सतत वितरण को प्रभावित करती है तथा एलोपैट्रिक प्रजातियों को जन्म देती है क्योंकि भौगोलिक तथा प्रजनन अलगाव के कारण विशिष्ट प्रजातियों की उत्पत्ति होती है।

सिम्पैट्रिक (Sympatric):

  • यहाँ भौतिक बाधा नहीं होती परंतु नई प्रजाति, शायद एक अलग खाद्य स्रोत या विशेषता के आधार पर अकस्मात विकसित होने लगती है, अर्थात कुछ प्रजातियाँ पर्यावरण के कुछ विशिष्ट कारकों पर निर्भर हो जाते हैं, जैसे कि आश्रय या भोजन के स्रोत, जबकि अन्य प्रजातियाँ इन पर निर्भर नहीं होते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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