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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नैनोफार्मास्युटिकल्स हेतु दिशा-निर्देश

  • 26 Oct 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

दिशा-निर्देश के विकास से जुड़े मंत्रालय, विस्तार-क्षेत्र

मेन्स के लिये:

दिशा-निर्देश की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने भारत में नैनोफार्मास्युटिकल्स (Nanopharmaceuticals) के मूल्यांकन हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

संदर्भ:

  • नैनोफार्मास्यूटिकल्स एक उभरता हुआ क्षेत्र है जो लक्षित दवा वितरण के लक्ष्य के साथ उसकी प्रभावकारिता और सुरक्षा प्रोफाइल में सुधार के उद्देश्य से फार्मास्यूटिकल और बायोमेडिकल साइंस के साथ नैनो टेक्नोलॉजी को एकीकृत करती है।
  • ये दिशा-निर्देश नवीन नैनोफ़ॉर्मूलेशन (Nanoformulations) की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता के आकलन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य भारत में नैनोफार्मास्यूटिकल्स के लिये पारदर्शी, सुसंगत और पूर्वानुमेय नियामक मार्ग प्रदान करना है।

विस्तार-क्षेत्र:

  • तैयार फार्मूलेशन के रूप में नैनोफार्मास्यूटिकल्स।
  • एक नए अणु के सक्रिय फार्मास्यूटिकल संघटक (Active Pharmaceutical Ingredient- API)।
  • पहले से स्वीकृत या अनुमोदित वैसे अणु जिनके नैनोस्केल आयामों और गुणों में परिवर्तन किया गया हो।
  • उपचार, इन विवो परीक्षण (In Vivo Diagnosis), शमन, इलाज या बीमारियों और विकारों की रोकथाम के लिये इस्तेमाल की जाने वाली नैनो तकनीक के अनुप्रयोग से जुड़ी घटनाएँ।

इन विवो (In Vivo) और इन विट्रो (In Vitro) में अंतर:

  • इन विवो (In Vivo): इन विवो (In Vivo) शब्द एक चिकित्सा परीक्षण, प्रयोग या प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो एक जीवित जीव (प्रयोगशाला जीव या मानव) पर किया जाता है।
  • इन विट्रो (In Vitro): इन विट्रो (In Vitro) शब्द इन विवो के विपरीत, एक चिकित्सा अध्ययन या प्रयोग को संदर्भित करता है जो प्रयोगशाला में एक परीक्षण ट्यूब आदि उपकरणों में किया जाता है।

उपयोगिता एवं संभावित लाभ:

  • नैनोफार्मास्यूटिकल्स की शुरुआत के साथ नैनोकैरियर आधारित लक्षित दवा वितरण (Nanocarrier Based Targeted Drug Delivery) एक उभरता हुआ क्षेत्र है।
  • उच्च प्रभावकारिता, कम विषाक्तता के साथ-साथ ये नैनोफ़ॉर्मूलेशंस पारंपरिक दवाओं की तुलना में अधिक सुरक्षित होते हैं।
  • भारतीय शोधकर्त्ताओं को नियामक दिशा-निर्देशों के अनुरूप अनुसंधान करने की सुविधा होगी।
  • उत्पाद विकास और व्यावसायीकरण से संबंधित अनुसंधान पाइपलाइन की शुरुआत में उद्योगों की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
  • दिशा-निर्दश जारी किये जाने से नियामक प्रणाली मज़बूत होगी जिससे निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
  • दिशा-निर्देश नियामक आवश्यकताओं के अनुरूप अनुवाद संबंधी सुविधा प्रदान करेंगे।
  • दिशा-निर्देश नैनो तकनीक पर आधारित नए उत्पादों की मंज़ूरी के दौरान नियामक द्वारा निर्णय लेने की सुविधा भी देंगे और इसी तरह शोधकर्त्ताओं को अपने उत्पादों को बाज़ार में लॉन्च करने के लिए मंज़ूरी लेनी होगी।
  • बाज़ार में दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रत्याशित एवं सुनिश्चित गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति से अंतिम उपयोगकर्त्ता भी लाभान्वित होंगे।
  • यह दस्तावेज़ नैनो-तकनीक पर आधारित कृषि में प्रयुक्त कच्चेमाल व कृषि-उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन एवं प्रत्यारोपण उपकरण जैसे अन्य क्षेत्रों के लिये सुरक्षा दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु प्रोत्साहित करेगा।
  • दिशा-निर्देश नैनोफार्मास्यूटिकल्स जैसी अत्याधुनिक तकनीक के महत्त्वपूर्ण लाभों के दोहन हेतु मार्ग प्रशस्त करेंगे और ‘सभी के लिये सस्ती स्वास्थ्य देखभाल’ के मिशन को पूरा करने में सहयोगी सिद्ध होंगे।

विकासकर्त्ता:

इन दिशानिर्देशों का विकास जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT) के समन्वय से निम्नलिखित मंत्रालयों के अंतर-मंत्रालयी प्रयासों के परिणाम हैं।

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT)
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
    • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) एवं
    • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO)

स्रोत: PIB

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