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डेली न्यूज़

शासन व्यवस्था

स्थानीय लोगों के लिये नौकरियों की बढ़ती प्रवृत्ति

  • 09 Nov 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19

मेन्स के लिये: 

स्थानीय लोगों के लिये नौकरियों के बढ़ते चलन और इससे जुड़ी चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा विधानसभा ने राज्य के 75% निजी क्षेत्र की नौकरियों को स्थानीय निवासियों के लिये आरक्षित करने हेतु  हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोज़गार विधेयक, 2020 (Haryana State Employment of Local Candidates Bill, 2020) पारित किया है।

  • इसने स्थानीय लोगों के लिये नौकरियों के बढ़ते चलन और इससे जुड़ी चिंताओं पर एक नई बहस छेड़ दी है।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक के प्रावधान:
    • प्रत्येक नियोक्ता ऐसे पदों पर 75% स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करेगा जिनका सकल मासिक वेतन या मज़दूरी 50,000 रुपए अथवा सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित वेतन से अधिक न हो।
    • स्थानीय उम्मीदवार राज्य के किसी भी ज़िले से हो सकते हैं, लेकिन नियोक्ता किसी भी ज़िले के स्थानीय उम्मीदवार के रोज़गार को स्थानीय उम्मीदवारों की कुल संख्या के 10% तक सीमित कर सकता है।
    • एक नामित पोर्टल (A Designated Portal) बनाया जाएगा, जिस पर स्थानीय उम्मीदवारों और नियोक्ता को पंजीकरण करना होगा तथा स्थानीय उम्मीदवार तब तक लाभ प्राप्त करने के लिये पात्र नहीं होंगे जब तक कि वे नामित पोर्टल पर अपना पंजीकरण नहीं करते।
  • कानून बन जाने के बाद यह राज्य भर में स्थित कंपनियों, ट्रस्टों, सीमित देयता भागीदारी फर्मों, साझेदारी फर्मों आदि पर लागू होगा।
  • उद्योगों के हित में न होने के कारण इसकी आलोचना की गई  है क्योंकि इससे उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित होगी और हरियाणा में निवेश को नुकसान होगा।

स्थानीय लोगों के लिये नौकरियाँ

  • स्थानीय लोगों के लिये नौकरी में आरक्षण:
    • देशीयतावाद (Nativism), भारत में स्थानीय लोगों की नौकरी की सुरक्षा का मुद्दा हाल ही में बढ़ा है।
    • विभिन्न राज्यों ने स्थानीय लोगों के आरक्षण (Job Reservation For Locals-JRFL) के लिये नौकरी में आरक्षण के संबंध में समान कदम उठाए हैं, जिसमें प्रस्तावित आरक्षण 30% से 70-80% अधिक है।
    • यह कदम सरकारी और/या निजी दोनों क्षेत्रों पर लागू है।
  • हाल के प्रयास:
    • महाराष्ट्र (वर्ष 1968 और 2008), हिमाचल प्रदेश (वर्ष 2004), ओडिशा (वर्ष 2008), कर्नाटक (वर्ष 2014, 2016 और 2019), आंध्र प्रदेश (वर्ष 2019), , मध्य प्रदेश (वर्ष 2019) जैसे राज्यों में कई दलों (सत्तारूढ़ या विपक्षी नेताओं) द्वारा भी इस पर विचार किया गया है।
    • हालाँकि इनमें से किसी को भी लागू नहीं किया गया है और यह कार्यान्वयन तंत्र की कमी तथा उद्योगों, निकायों के अनिच्छुक दृष्टिकोण के कारण केवल कागज़ों तक ही सीमित रह गया है।
  • भारत का संविधान अपने कई प्रावधानों के माध्यम से आवागमन की स्वतंत्रता और इसके परिणामस्वरूप भारत में रोज़गार की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद-14 भारत के प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार प्रदान करता है
    • अनुच्छेद- 15 जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध है।
    • अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोज़गार में जन्म-आधारित भेदभाव नहीं होने की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 19 यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूम सकते हैं।
  • ऐसे विधानों के पीछे का कारण:
    • वोट बैंक की राजनीति: अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों (Inter-State Migrant Workers)  का वृहत स्तर पर एक ऐसा समूह होता है जो प्रायः अपने मतों का उपयोग नहीं करता। यदि इन श्रमिकों और संभावित प्रवासियों को JRFL के माध्यम से बनाए रखा जा सकता है तथा नौकरी प्रदान की जा सकती है जिससे चुनावी लाभों की पूर्ति होती है।
    • आर्थिक सुस्ती: स्थानीय बेरोज़गारी का मुद्दा प्रासंगिक है क्योंकि सरकारी रोज़गार कम होने से बेरोज़गारी बढ़ गई है।
    • बढ़ी हुई आय और प्रतिभा: JRFL न केवल प्रतिभा बल्कि आय को बनाए रखेगा जो अन्यथा ‘अन्य क्षेत्रों’ में जाएगा।
    • भूमि अधिग्रहण के लिये पूर्व शर्त: किसान और ग्रामीण जो कि उद्योगों के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में अपनी ज़मीन खो देते हैं, ऐसी पूर्व शर्त रखते हैं जिसमें उद्योगों को स्थानीय युवाओं को रोज़गार प्रदान करना होता है।
  • प्रभाव:
    • ऐसे प्रतिबंधों वाले राज्य में उद्योगों के अवरोध के कारण रोज़गार सृजन कम हो गया। यह वास्तव में लाभान्वित करने की तुलना में मूल निवासियों को अधिक नुकसान पहुँचाएगा।
    • इस तरह के प्रतिबंध व्यापार को प्रभावित करके संबंधित राज्य और देश के विकास तथा उसकी संभावनाओं को बाधित कर सकते हैं।
    • श्रम गतिशीलता पर प्रतिबंध, विविध प्रकार के श्रम से होने वाले ऐसे लाभ की उपेक्षा करेगा जो भारतीय अर्थव्यवस्था की एक ज़रूरत है।
    • यह आक्रामक क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे सकता है और इस प्रकार भारत की एकता तथा अखंडता के लिये खतरा है।
    • श्रम की कमी के कारण जोखिम में वृद्धि, बेरोज़गारी में वृद्धि, बढ़ती मज़दूरी, मुद्रास्फीति और बढ़ती क्षेत्रीय असमानता आदि  कुछ इसके अन्य संभावित प्रभाव हो सकते हैं।

आगे की राह

  • JRLF का विचार एक देश के भीतर एक अलग देश बनाने या फिर किसी एक क्षेत्र विशिष्ट के भीतर एक अलग क्षेत्र बनाने जैसा है, जो कि पूर्णतः इस संदिग्ध अवधारणा पर आधारित है कि स्थानीय बाज़ार में कौशल की कोई कमी नहीं है।
  • इससे बाहर बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका आर्थिक सुधार सुनिश्चित करना और कौशल प्रशिक्षण तथा फोकस किये गए क्षेत्रों में उचित शिक्षा के साथ युवाओं के लिये पर्याप्त रोज़गार के अवसर प्रदान करना है, ताकि  जनता को मुक्त बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • राज्यों को एक ऐसा ढाँचा बनाने की ज़रूरत है, जहाँ काम के लिये सुरक्षित अंतर्राज्यीय प्रवास की सुविधा हो और सामाजिक सुरक्षा लाभों की सुगम पहुँच को सक्षम करने के लिये राजकोषीय समन्वय किया जाए। यदि ऐसा किया जाता है तो अंतर्राज्यीय प्रवास बढ़ जाएगा और यह क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने के अधिक अवसर प्रदान करेगा।

स्त्रोत: द हिंदू

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