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अपर कृष्णा सिंचाई परियोजना के आधुनिकीकरण को पर्यावर्णीय मंज़ूरी

  • 07 Feb 2017
  • 7 min read

सन्दर्भ

कर्नाटक सरकार को अपर कृष्णा सिंचाई परियोजना (Upper Krishna Irrigation project – UKIP) के सिंचित क्षेत्र को बढ़ाने की मंज़ूरी मिल गई है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन  मंत्रालय ने कर्नाटक में अपर कृष्णा सिंचाई परियोजना के आधुनिकीकरण के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु 

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कर्नाटक में अपर कृष्णा सिंचाई परियोजना के आधुनिकीकरण के लिये 3710 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है। 
  • इसके तहत बीजापुर, बागलकोट व रायचूर ज़िले के सूखा प्रभावित इलाकों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जानी है। 
  • इस समय इस योजना के तहत सिंचित क्षेत्र 6,22,000 हेक्टेयर है और इससे बीजापुर ज़िले के रेगिस्तानी इलाकों व बागलकोट, गुलबर्ग, यादागिर व रायचूर ज़िलों के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा दी जा रही है।
  • क्षेत्रीय अंसुतलन को समाप्त करने के लिये राज्य के कृष्णा भाग्या जल निगम लिमिटेड  (Krishna Bhagya Jala Nigam Ltd) ने यूकेआईपी के सिंचित क्षेत्र को बढ़ाने का प्रस्ताव किया है। 
  • आधुनिकीकरण प्रस्ताव के तहत चार स्थानों से कृष्णा के पानी की सीधी आपूर्ति की जाएगी। ये चार स्थान हैं-  बुधाल-पीरापुर (बीजापुर), नंदवादगी (रायचूर) और रामाथल एवं थिम्मापुर (बागलकोट)|
  • इस योजना से 291 गाँव और कुल 1.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होगा|  
  • वस्तुतः मंत्रालय द्वारा यह पर्यावरणीय मंज़ूरी सशर्त दी गई है, इस संबंध में राज्य सरकार से कहा गया है कि वह इस परियोजना के पर्यावरण व पारिस्थितिकी पर प्रभाव का आकलन करे और छह महीनों में अपनी रपट सौंपे।

पृष्ठभूमि 

  • एक ओर देश के कई प्रदेशों में अतिवृष्टि एवं बाढ़ का प्रकोप है, तो दूसरी तरफ देश के कई प्रदेशों में वर्षा की कमी के कारण भीषण सूखे की स्थिति पैदा हो गई, यह एकदम विरोधाभासी स्थिति है|
  • वर्षा से जितना जल धरती को प्राप्त होता है, उसका संग्रहण नहीं हो पाता और नालों व नदियों में बहता हुआ अनन्त समुद्र में विसर्जित हो जाता है| पानी को संग्रहित करने की दिशा में भी यदि प्रभावी व स्थायी पहल की जाए तो परिणाम बड़े हितकारी हो सकते हैं।
  • कर्नाटक की सिंचाई परियोजनाएँ अपने लक्ष्य से पीछे हैं जिससे बड़े स्तर पर फसलों को क्षति होती है| इसके लिये कभी सरकारी योजनाओं में विद्यमान कमियों की ओर इशारा किया गया तो कभी मानव संसाधन की कमी बताई गई|
  • सिंचाई के विकास हेतु सिंचाई तथा शक्ति के साधन महत्त्वपूर्ण हैं। भारत में कृषि हेतु क्षेत्र विस्तार की संभावना बहुत ही सीमित है।  इसलिये यह आवश्यक है कि जितनी भूमि उपलब्ध है, उसी पर उत्पादन को बढ़ाने का प्रयत्न किया जाना चाहिये ताकि देश की बढ़ती जनसंख्या की मांगों को पूरा किया जा सके।  इसलिये शुष्क प्रदेशों में सिंचाई के साधनों का विकास ज़रूरी है। भारत में हरित क्रांति का पहला चरण सफल होने का एक कारण सिंचाई के साधनों की उपलब्धता थी। देश में सिंचाई के साधन पूर्ण या आंशिक रूप से शक्ति के साधनों पर निर्भर करतें है,  इसलिये सिंचाई की सुविधाएँ तथा शक्ति के साधनों का विकास साथ-साथ करने का प्रयास किया गया है। इसी सन्दर्भ में अनेक परियोजनाओं का निर्माण किया गया है।
  • कई विशेषज्ञों का कहना है कि हमें नई सिंचाई परियोजनाओं से ज़्यादा ज़रूरत इस बात की है कि जो परियोजनाएँ बनी हुई हैं या चल रही हैं, उनकी वास्तविक क्षमता का उपयोग किया जाए|
  • कमांड एरिया विकास परियोजनाओं की शुरुआत 1974 में हुई थी जिसका मकसद था सिंच्हाई क्षमताओं और उसके वास्तविक प्रयोग को के बीच के अंतर को कम करना| 
  • इस उद्देश्य के लिये केंद्र एवं राज्य स्तर पर विभिन्न योजनाओं का सहारा लिया गया| स्थानीय स्तर पर काम को ठीक से संचालित करने के लिये 1980 में कर्नाटक कमांड एरिया विकास क़ानून बना| 
  • इसके तहत जो प्राधिकरण अस्तित्व में आए उनमें अपर कृष्णा परियोजना के अतिरिक्त तुंगभद्रा, भद्रा परियोजना और कावेरी घाटी परियोजना इत्यादि प्रमुख हैं|


कृष्णा नदी 

  • कृष्णा दक्षिण भारत में बहने वाली एक अन्य प्रमुख नदी है, जो पश्चिमी घाट के महाबलेश्वर पर्वत से निकलती है। 
  • इसकी लम्बाई लगभग 1290 किलोमीटर है और यह दक्षिण-पूर्व में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। 
  • कृष्णा नदी की उप-नदियों में तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा प्रमुख हैं: इसके मुहाने पर बहुत बड़ा डेल्टा  है, जो भारत के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है। 
  • कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन में कच्चे तेल और गैस के भण्डार मौजूद हैं, जो आंध्र प्रदेश की दो प्रमुख नदियों कृष्णा और गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित हैं। 
  • तेल के ये क्षेत्र लगभग 50 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं जिसमें से 21,000 वर्ग किलोमीटर जलीय क्षेत्र है, जबकि 28,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र तटवर्ती क्षेत्र है।
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