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भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्लोबल इकनाॅमिक प्राॅसपेक्ट्स: विश्व बैंक

  • 07 Jun 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक ने “ग्लोबल इकनाॅमिक प्राॅसपेक्ट्स: हाईटेन टेंशन, सबड्यूडेड इन्वेस्टमेंट”(Global Economic Prospects: Heightened Tensions, Subdued Investment) रिपोर्ट जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स एक द्वैमासिक रिपोर्ट है। इससे पहले यह जनवरी, 2019 में प्रकाशित हुई थी।
  • विश्व बैंक ने 2019-20 के लिये वैश्विक विकास की संभावनाओं को 0.3% घटाकर 2.6% कर दिया है।
  • इसका कारण वर्ष 2019 की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश अपेक्षित मात्रा से बेहद कम होना है।
  • हालाँकि, विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि इसके पश्चात् वृद्धि दर बढ़ेगी एवं वर्ष 2021 तक 2.8% तक पहुँच सकती है।
  • वैश्विक वृद्धि के कम होने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिरोधों के बढ़ने की संभावना है साथ ही, सरकारों के ऊपर ऋण के बढ़ने एवं कई मुख्य क्षेत्रों में मंदी की भी संभावना है।
  • अमेरिका में वर्ष 2018 में अनुमानित वृद्धि दर, 2.9% से गिरकर इस वर्ष 2.5% तक रहने की उम्मीद है एवं वर्ष 2020 और 2021 में क्रमशः 1.7% और 1.6% तक रहने की उम्मीद है।
  • अमेरिकी नीतियों में अनिश्चितता विकास और निवेश को नुकसान पहुँचा सकती है क्योंकि संरक्षणवादी उपाय वैश्विक व्यापार एवं उद्योगों को प्रभावित करते हैं।
  • ब्रेक्ज़िट (Brexit) के मुद्दे को लेकर ब्रिटेन और इसके यूरोपीय व्यापारिक भागीदारों पर गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है।

भारत के संदर्भ में

  • विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-20 तथा इसके बाद के वर्ष के लिये भारत की वृद्धि दर को 7.5 % पर बनाए रखा है।
  • हालाँकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत-पाकिस्तान के बीच फरवरी, 2019 के हालिया तनाव फिर से बढ़ने के कारण क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ सकती है एवं निवेश पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के लक्ष्य के नीचे मुद्रास्फीति होने के साथ उपभोग बढ़ाने एवं ऋण में वृद्धि को मज़बूत करने से निजी खपत और निवेश को फायदा होगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वस्तु एवं सेवा कर (GST) अभी भी पूरी तरह से स्थापित होने की प्रक्रिया में है जिससे सरकारी राजस्व के अनुमानों के बारे में अनिश्चितता पैदा होती है।

स्रोत: द हिंदू

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