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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम 2.0

  • 20 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय रिज़र्व बैंक, सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम, यील्ड कर्व, सरकारी प्रतिभूतियाँ

मेन्स के लिये

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम का महत्त्व और इससे संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ (RBI) ने घोषणा की है कि वह ‘सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम’ के दूसरे चरण (G-SAP 2.0) के तहत 25,000 करोड़ रुपए की सरकारी प्रतिभूतियों की खुले बाज़ार में खरीद करेगा।

  • इससे पूर्व G-SAP 1.0 कार्यक्रम के तहत कुल 25,000 करोड़ रुपए की राशि की सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदी गई थीं।

प्रमुख बिंदु

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP):

  • परिचय: सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) मूलतः एक व्यापक आकार का बिना शर्त ‘संरचित ओपन मार्केट ऑपरेशन’ (OMO) है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने G-SAP कार्यक्रम को एक 'विशिष्ट विशेषता’ वाले ‘ओपन मार्केट ऑपरेशन’ के रूप में परिभाषित किया है।
    • यहाँ 'बिना शर्त' होने का अर्थ है कि रिज़र्व बैंक ने पहले ही प्रतिबद्धता व्यक्त की है कि वह बाज़ार की भावना के बावजूद सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदेगा।
  • उद्देश्य: अर्थव्यवस्था में तरलता के प्रबंधन के साथ-साथ ‘यील्ड कर्व’ का एक स्थिर और व्यवस्थित विकास सुनिश्चित करना।
  • महत्त्व: सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) से मुख्य तौर पर सरकार को लाभ होगा।
    • सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदकर रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति करता है, जो बदले में यील्ड को कम रखता है और सरकार की उधार लागत को कम कर देता है।
    • जब तक दीर्घावधिक उधार लागत कम रहेगी, भारत सरकार को अपने व्यापक उधार कार्यक्रम (उदाहरण के लिये राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा पाइपलाइन परियोजना) के लिये अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा।
  • मुद्दे: सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) के आलोचकों का कहना है कि इसके कारण रुपए पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
    • आलोचकों के मुताबिक, सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम की घोषणा से पहले ही रुपए का मूल्यह्रास (मुद्रा के मूल्य में गिरावट) हो चुका है।
    • इसलिये आलोचक इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि गिरते रुपए और कम उधार लागत/कम यील्ड के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।
    • इसके अलावा यह तरलता मुद्रास्फीति को भी बढ़ावा देती है।

खुला बाज़ार परिचालन (OMO):

  • खुला बाज़ार परिचालन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रयोग किये जाने वाला एक मात्रात्मक मौद्रिक उपकरण है, जिसका उपयोग RBI द्वारा वर्ष भर तरलता की संतुलित स्थिति को बनाए रखने और ब्याज़ दर तथा मुद्रास्फीति के स्तर पर इसके प्रभाव को सीमित करने के लिये किया जाता है।
  • मुद्रा आपूर्ति शर्तों को समायोजित करने के लिये RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों (g-sec) की बिक्री या खरीद के माध्यम से OMO आयोजित किये जाते हैं।
  • केंद्रीय बैंक संपूर्ण प्रणाली से तरलता को दूर करने के लिये सरकारी प्रतिभूतियों को बेचता है और पुनः प्रणाली में तरलता को समाविष्ट करने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ वापस खरीदता है
  • ये परिचालन प्रायः दिन-प्रतिदिन के आधार पर इस तरह से आयोजित किये जाते हैं कि मुद्रास्फीति को संतुलित करते हुए बैंकों को उधार देना जारी रखने में मदद मिलती है।
  • RBI वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से OMO का संचालन करता है और जनता के साथ प्रत्यक्ष लेन-देन नहीं करता है।
  • RBI, प्रणाली में मुद्रा की मात्रा और कीमत को समायोजित करने के लिये अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों जैसे- रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात तथा वैधानिक तरलता अनुपात के साथ OMO का उपयोग करता है।

सरकारी प्रतिभूति

  • सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी एक व्यापार योग्य लिखत (Instrument) है। 
  • यह सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर एक वर्ष से भी कम समय की परिपक्वता अवधि वाली इन प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है जिसे वर्तमान में तीन रूपों में जारी किया जाता है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है) होती हैं।
  • भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है।
  • सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है इसलिये इन्हें जोखिम मुक्त गिल्ट-धारित लिखत/उपकरण के रूप में भी जाना जाता है।
    • गिल्ट-धारित प्रतिभूतियाँ उच्च श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं जिन्हें सरकारों और बड़े निगमों द्वारा उधार लेने के साधन के रूप में पेश किया जाता है।

यील्ड कर्व

  • बॉण्ड यील्ड वह रिटर्न है जो एक निवेशक को बॉण्ड पर मिलता है।
  • प्रतिफल/यील्ड की गणना के लिये वार्षिक कूपन दर (बॉण्ड जारीकर्त्ता द्वारा करार/स्वीकृत किया गया ब्याज दर) को बॉण्ड के मौजूदा बाज़ार मूल्य से विभाजित किया जाता है।
  • प्रतिफल/यील्ड में उतार-चढ़ाव ब्याज दरों के रुझान पर निर्भर करता है, इसके परिणामस्वरूप निवेशकों को पूंजीगत लाभ या हानि हो सकती है।
    • बाज़ार में बॉण्ड यील्ड बढ़ने से बॉण्ड की कीमत नीचे आ जाएगी
    • बॉण्ड यील्ड में गिरावट से निवेशक को लाभ होगा क्योंकि बॉण्ड की कीमत बढ़ेगी, जिससे पूंजीगत लाभ होगा।
  • यील्ड कर्व एक ऐसी रेखा है, जो समान क्रेडिट गुणवत्ता वाले, लेकिन अलग-अलग परिपक्वता तिथियों वाले बॉण्ड की ब्याज़ दर को दर्शाती है।
  • ‘यील्ड कर्व’ का ढलान भविष्य की ब्याज़ दर में बदलाव और आर्थिक गतिविधि को आधार प्रदान करता है।

स्रोत: द हिंदू

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