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फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग

  • 13 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, बाढ़ प्रवण क्षेत्र, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग पहल के माध्यम से आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल विधानसभा में बाढ़ की पूर्व-तैयारी और प्रतिक्रिया पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट पेश की गई थी।

  • यह रिपोर्ट वर्ष 2018 में केरल में आई विनाशकारी बाढ़ की पृष्ठभूमि के विरुद्ध तैयार की गई थी।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों को फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग प्रक्रिया के लिये एक मॉडल ड्राफ्ट बिल परिचालित किये जाने के 45 वर्षों बाद भी राज्य ने अब तक फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग कानून नहीं बनाया है।

Liable-Floods

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • अवधारणा: फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग की मूल अवधारणा बाढ़ से होने वाले नुकसान को सीमित करने के लिये बाढ़ के मैदानों में भूमि उपयोग को नियंत्रित करना है।
    • विकासात्मक गतिविधियों का निर्धारण: इसका उद्देश्य विकासात्मक गतिविधियों के लिये स्थानों और क्षेत्रों की सीमा को इस तरह से निर्धारित करना है कि नुकसान कम-से-कम हो। 
    • सीमाओं में वृद्धि : इसमें असुरक्षित और संरक्षित दोनों क्षेत्रों के विकास पर सीमाएँ निर्धारित करने की परिकल्पना की गई है। 
      • असंरक्षित क्षेत्रों में अंधाधुंध विकास को रोकने के लिये उन क्षेत्रों में विकासात्मक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाकर उनकी सीमाओं का निर्धारण करना। 
      • संरक्षित क्षेत्रों में केवल ऐसी विकासात्मक गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है, जिनमें सुरक्षात्मक उपाय विफल होने की स्थिति में भारी क्षति न हो। 
    • उपयोगिता: ज़ोनिंग मौज़ूदा स्थितियों का समाधान नहीं कर सकती है, हालाँकि यह निश्चित रूप से नए विकास क्षेत्र में बाढ़ से होने वाली क्षति को कम करने में मदद करेगी। 
      • फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग न केवल नदियों द्वारा आने वाली बाढ़ के मामले में आवश्यक है, बल्कि यह विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में जल जमाव से होने वाले नुकसान को कम करने में भी उपयोगी है।
  • बाढ़ की संवेदनशीलता:
    • भारत के उच्च जोखिम और भेद्यता को इस तथ्य से आकलित किया गया है कि 3290 लाख हेक्टेयर के भौगोलिक क्षेत्र में से 40 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रवण क्षेत्र है।
    • बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष औसतन 75 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है तथा लगभग 1600 लोगों की मृत्यु हो जाती है एवं इसके कारण फसलों व मकानों तथा जन-सुविधाओं को होने वाली क्षति 1805 करोड़ रुपए है।
  • फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग के लिये मॉडल ड्राफ्ट बिल:
    • परिचय: यह बिल/विधेयक बाढ़ क्षेत्र प्राधिकरण, सर्वेक्षण और बाढ़ के मैदानी क्षेत्र के परिसीमन, बाढ़ के मैदानों की सीमाओं की अधिसूचना, बाढ़ के मैदानों के उपयोग पर प्रतिबंध, मुआवज़े और सबसे महत्वपूर्ण रूप से जल के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये इन बाधाओं को दूर करने के बारे में प्रविष्टि प्रदान करता है।
      • इसके तहत बाढ़ प्रभावी क्षेत्रों के निचले इलाकों के आवासों को पार्कों और खेल मैदानों में प्रतिस्थापित किया जाएगा क्योंकि उन क्षेत्रों में मानव बस्ती की अनुपस्थिति की वजह से जान-माल की हानि में कमी आएगी।
    • कार्यान्वयन में चुनौतियांँ:
      • संभावित विधायी प्रक्रिया के साथ-साथ बाढ़ के मैदान प्रबंधन हेतु विभिन्न पहलुओं का पालन करने के दृष्टिकोण में राज्यों की ओर से प्रतिरोध किया गया है।
        • राज्यों की अनिच्छा मुख्य रूप से जनसंख्या दबाव और वैकल्पिक आजीविका प्रणालियों की कमी के कारण है।
      • बाढ़ के मैदानों के नियमों को लागू करने और लागू करने के प्रति राज्यों की उदासीन प्रतिक्रिया ने बाढ़ क्षेत्रों के अतिक्रमण में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिसमें कभी-कभी अधिकृत और नगर नियोजन अधिकारियों द्वारा विधिवत अनुमोदित अतिक्रमण के मामले देखने को मिलते हैं। 
  • संबंधित संवैधानिक प्रावधान और अन्य उपाय:
    • सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 17 के रूप में जल निकासी और तटबंधों/बांँधों को शामिल करने के आधार पर, "अंतर-राज्यीय नदियों एवं नदी के विनियमन और विकास" के मामले को छोड़कर, बाढ़ नियंत्रण कार्य राज्य सरकार के दायरे में आता है। 'घाटियों', का उल्लेख सूची I (संघ सूची) की प्रविष्टि 56 में किया गया है।  
      • फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग राज्य सरकार के दायरे में है क्योंकि यह नदी के किनारे की भूमि से संबंधित है और सूची II की प्रविष्टि 18 के तहत भूमि राज्य का विषय है।
      • केंद्र सरकार की भूमिका केवल परामर्श देने तथा  दिशा-निर्देश के निर्धारण तक ही  सीमित हो सकती है।
    • संविधान में शामिल सातवीं अनुसूची की तीन विधायी सूचियों में से किसी में भी बाढ़ नियंत्रण और शमन (Flood Control and Mitigation) का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया है।
    • वर्ष 2008 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने  बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण "गैर-संरचनात्मक उपाय" के रूप में बाढ़ के मैदान क्षेत्र के लिये राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किये हैं। 
      • इसने सुझाव दिया कि ऐसे क्षेत्र जहाँ 10 वर्षों में बाढ़ की आवृत्ति के कारण प्रभावित होने की संभावना है, उन क्षेत्रों को पार्कों, उद्यानों जैसे हरे क्षेत्रों के लिये आरक्षित किया जाना चाहिये तथा इन क्षेत्रों में  कंक्रीट संरचनाओं (Concrete Structures) की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
      • इसमें बाढ़ के अन्य क्षेत्रों के बारे में भी बात की गई जैसे-  25 साल की अवधि में बाढ़ की आवृत्ति वाले क्षेत्रों में राज्यों को उन क्षेत्र-विशिष्ट योजना बनाने के लिये कहा गया।

आगे की राह 

  • चूंँकि बाढ़ से हर साल जान-माल की बड़ी क्षति होती है, इसलिये समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक दीर्घकालिक योजना तैयार करें जो बाढ़ को नियंत्रित करने हेतु तटबंधों के निर्माण तथा ड्रेजिंग जैसे उपायों से बढ़कर हो। 
  • एक एकीकृत बेसिन प्रबंधन योजना (Integrated Basin Management Plan) की आवश्यकता है जो सभी नदी-बेसिन साझा करने वाले देशों के  साथ-साथ भारतीय राज्यों को भी जोड़े।
  • राज्य सरकार को फ्लड-प्लेन जोनिंग कानून के लिये मॉडल ड्राफ्ट बिल (Model Draft Bill) को लागू करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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